" मांगने वालियां"
हम दोनों करोल बाग़ मैट्रो स्टेशन से निकले और अजमल खान रोड पर आ गए | बाहर निकलते ही उसने मैट्रो व्यवस्था पर झींकते हुए सिगरेट सुलगाई "ये भी कोई सफर हुआ ? बस दम सा घोट के बैठे रहो | बेकार है ये मैट्रो ...!! ...एकदम बस.. !!" कहते हुए पहला भरपूर कश खींचकर, फेफेडों का धुँआ मुंह उठाकर ऊपर छोड़ने लगा | एक यही तरीका था उसका किसी भी अच्छे सिस्टम के ख़िलाफ़ अभिव्यक्ति का | इधर जाने कहाँ से मांगने वालियों की एक छोटी सी टोली हमारे सामने आ खड़ी हुई थी | "ऐ बाबू..!!" "कुछ गरीब के बच्चे को भी दे जा बाबू..?" "भूखा है बाबू..." सीने से नंग धडंग बच्चे चिपकाए अलग अलग कातर स्वरों में बच्चे के लिए कुछ भी दे देने की मार्मिक पुकार थी | मैंने अपनी जेब टटोलनी चाही तो उसने कहा "छोड़ न यार ...! तू भी कहाँ चक्कर में पड़ रहा है..?" फ़िर आदतन वो उन मांगने वालियों को दुत्कारने लगा | ये भी शायद इस डेली पैसेंजर से वाकिफ थीं | मेरे साथ उसे देखकर आसानी से एक तरफ़ हो गयीं |
"तू भी बस खामखा में न धर्मात्मा बनता है" अगला कश कुछ हल्का खींचते हुए उसने ऐसे ढंग से कहा मानो फेफडों की तलब कुछ कम हो गयी हो |
"अरे यार ,अगर दो चार रूपये दे देता तो कौन सी आफत आ जाती ?"
"दो चार की बात नहीं है, बस मुझे भीख देना ही पसंद नहीं है "
"क्यों, इसमें क्या बुराई है..?"
"तो चल तू ही बता के अच्छाई भी क्या है"
उसके धुंए से बचता हुआ मैं जवाब सोच ही रहा था के फेफड़ा खाली होते ही वो बोला "अच्छा चल ये बता के इन मांगने वालियों की कितनी उम्र होगी ?"
"ये कैसा बेहूदा सवाल है ?"
"फ़िर भी तू बता तो , चल यूँ ही गैस कर "
"ऐसे क्या गैस करूं....? ये भी कोई तुक है....? और ये तो ३०-३५ साल की भी हैं और कमती बढती भी हैं ..सबकी एक सी उम्र थोड़े है.?"
"और वो काली कुचेली चद्दर वाली....?"
"हां,उसकी उम्र तो खासी है.....होगी ६०-६५ के लपेटे में "
"इसको मैं पिछले सत्रह सालों से ऐसे ही देख रहा हूँ "
"हाँ, तो इसमें कौन सी बड़ी बात है...? बहुत से लोग होते हैं जिनकी झुर्र्रियाँ पूरी होने के बाद शकल में कोई बदलाव नहीं आता....ये भी कोई बात हुई कोई नयी बात कर"
"इसके कलेजे से चिपका ये बच्चा देखा है "
ये वो ही साल डेढ़ साल का मासूम था जिसके दूध के लिए मैंने पैसे देने चाहे थे और अब सूखे हाडों में से जीवन धारा निचोड़ने की कोशिश कर रहा था अब तक मैं भी अपने इस दोस्त से दुखी हो चुका था "हाँ ,दीख रहा है....!!" खिन्न मन से मैंने जवाब दिया |
"सत्रह सालों से मैं इसे भी ऐसे ही देख रहा हूँ" कहते हुए उसने सिगरेट ख़त्म कर सड़क पर फेंक दी |
अब के मेरा मुंह खुला रह गया और सड़क पर पड़ी सिगरेट कलेजे में सुलगने लगी|
"तू भी बस खामखा में न धर्मात्मा बनता है" अगला कश कुछ हल्का खींचते हुए उसने ऐसे ढंग से कहा मानो फेफडों की तलब कुछ कम हो गयी हो |
"अरे यार ,अगर दो चार रूपये दे देता तो कौन सी आफत आ जाती ?"
"दो चार की बात नहीं है, बस मुझे भीख देना ही पसंद नहीं है "
"क्यों, इसमें क्या बुराई है..?"
"तो चल तू ही बता के अच्छाई भी क्या है"
उसके धुंए से बचता हुआ मैं जवाब सोच ही रहा था के फेफड़ा खाली होते ही वो बोला "अच्छा चल ये बता के इन मांगने वालियों की कितनी उम्र होगी ?"
"ये कैसा बेहूदा सवाल है ?"
"फ़िर भी तू बता तो , चल यूँ ही गैस कर "
"ऐसे क्या गैस करूं....? ये भी कोई तुक है....? और ये तो ३०-३५ साल की भी हैं और कमती बढती भी हैं ..सबकी एक सी उम्र थोड़े है.?"
"और वो काली कुचेली चद्दर वाली....?"
"हां,उसकी उम्र तो खासी है.....होगी ६०-६५ के लपेटे में "
"इसको मैं पिछले सत्रह सालों से ऐसे ही देख रहा हूँ "
"हाँ, तो इसमें कौन सी बड़ी बात है...? बहुत से लोग होते हैं जिनकी झुर्र्रियाँ पूरी होने के बाद शकल में कोई बदलाव नहीं आता....ये भी कोई बात हुई कोई नयी बात कर"
"इसके कलेजे से चिपका ये बच्चा देखा है "
ये वो ही साल डेढ़ साल का मासूम था जिसके दूध के लिए मैंने पैसे देने चाहे थे और अब सूखे हाडों में से जीवन धारा निचोड़ने की कोशिश कर रहा था अब तक मैं भी अपने इस दोस्त से दुखी हो चुका था "हाँ ,दीख रहा है....!!" खिन्न मन से मैंने जवाब दिया |
"सत्रह सालों से मैं इसे भी ऐसे ही देख रहा हूँ" कहते हुए उसने सिगरेट ख़त्म कर सड़क पर फेंक दी |
अब के मेरा मुंह खुला रह गया और सड़क पर पड़ी सिगरेट कलेजे में सुलगने लगी|
16 comments:
कैसी हृदय-विदारक कथा सुनायी है मनु जी...स्तब्ध रह गया हूं पढ़ कर
कुछ रहे वही दर्द के काफिले साथ
कुछ रहा आप सब का स्नेह भरा साथ
पलकें झपकीं तो देखा...
बिछड़ गया था इक और बरस का साथ...
नव वर्ष की शुभ कामनाएं..
blog imtinan se fir padhungi...
नया साल आए बन के उजाला
खुल जाए आपकी किस्मत का ताला|
चाँद तारे भी आप पर ही रौशनी डाले
हमेशा आप पे रहे मेहरबान उपरवाला ||
नूतन वर्ष मंगलमय हो |
mere bhai , ise padhkar man ko jo dukh hua hai ,wo main shabdo mein bayaan nahi kar sakta .. in baccho ko bhavishaya .uff..
vijay
''सत्रह सालों से मैं इसे ऐसे ही देख रहा हूँ...'' ..अर्थात...? हर दिन एक नया बच्चा..? शायद आपके
दोस्त ने ठीक कहा...हमें भीख नहीं देनी चाहिए ...।
मांगने वालों के अपने बहाने हैं ,
देने वाले का अपना नजरिया है ...
लघु - कथा एक संदेश लिए हुए है ,
प्रयास भी अच्छा है , बधाई !!
---मुफलिस---
बहुत बढ़िया कहानी के साथ मनु भाई आपको नए वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं।
नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं !!
मनु जी को नये साल की अरबों-खरबों शुभकामनायें...आपके शब्दों की कशिश,बातॊं का जादू ऐसे ही बरसता रहे सदैव-सदैव....
भीख मांगना ही नहीं वरन देना भी अपराध ही है..
यह आप के इस घटना विवरण से समझ आता है--
'सत्रह सालों से मैं इसे भी ऐसे ही देख रहा हूँ" पंक्तियाँ
सारी कहानी का अर्थ बता जाती है.
-Manu ji aap ko नए साल की ढेर सारी शुभकामनायें!
आपका ब्लाग देखा कफ़ी अच्छा लगा, नववर्ष की शुभकामनाएँ
हुजुरे आला , कहाँ गुमशुदा हो गये हो एकदम से?
बड़ी देर तक ठिठका थमका हुआ हूं आपके ब्लौग-पृष्ठ पर-आपकी तुलिकाओं में आपको ढ़ूंढ़ने की कोशिश.
एक तुलिका पे कुछ पढ़ा तो अवाक हूं ...रंग,स्केच और कुछ शब्दों का जादू "पत्थर ही पूजना है / तो फिर क्या फर्क ठहरा / जाऊं शिवालय में / या कि सजदा करूं तुमको"
मनु जी, कितना इन्तजार करवायेगें..? अब ये खामोशी तोडिये ... कुछ हो जाए ...?
मिलता है जब वो मुझसे टुकडे समेट लेता है
मेरा दोस्त नहीं वो मेरा वजूद बन गया है
delhi mein esaa he hotaa hai yaar
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wakai acchi abhivyakti ye prasang padh ke apni ek mukt sheliy mein likhi poem yaad aa gai.....
वो अपने सर को खुजाती...
बारी बारी ....
अपने दोनों हाथों से.
गोद में पकड़े अबोध जीवन...नंगा अबोध जीवन
....नहीं,
नग्न कहाँ था वो?
पहन रक्खे थे उसने काले कपड़े...
इसमें...
और कम्युनिकेशन रेवोलुशन में.....
क्या सम्बन्ध हो सकता है?
...नही सोचता हूँ मैं...
पकड़ा देता हूँ उसे......
दस का नोट ....
ये 'गाँधी' भी, उससे खर्च हो जाने हैं....
...हेतु,
...एक चाय और बासी बंद.....
उस फ्लाई ओवर से गुजरता हूँ.
...तो सुनाई देती है..
...एक
...नही दो आवाजें......
रुदन की...
एक आवाज जो अब तक पकी नहीं थी...
.....मैं
वापस.....नहीं....इंडियन आइडल ........और फिर पिज्जा भी तो ठंडा हो रहा है...
वहीँ से कामना ........
हे इश्वर...
न हो ये उसकी आवाज...
...कल के अख़बार में भी,
.......पेज ३ के अलावा ......कुछ न पढूंगा....
फिर से झुठला दूँगा सत्य....
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