बे-तख़ल्लुस

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'बेतख़ल्लुस' हूं मुझे कोई भी अपना लेगा

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Friday, January 15, 2010

जाने कौन था..



जाने कौन था...

आज ऑफिस में आया तो सुबह ११ बजे के करीब देखा..के बाजू में जो शमशान घाट है..वहाँ पर एक अर्थी आई है..महज ६ लोग हैं लाने वाले..
चार कंधे पे उठाये हैं..और एक दो..राम नाम सत्य हैं कह रहे हैं...
बुझी बुझी सी आवाजों में....
इतनी बुझी ..मानो राम नाम के ही सत्य होने में सबसे बड़ा संदेह हो...

खैर...

करीब तीन-चार घंटे के बाद दो आदमी मेरे पास आये...बोले.." बाबूजी, ये जो लकडियाँ आपके ऑफिस में पड़ी हैं पैकिंग वाली...इनमें से कुछ हमें दे दोगे...?"

बकवास सा सवाल लगा पहले तो मुझे ..और मैंने जवाब भी बकवास सा ही दिया....

लेकिन इस सारी बकवास के बाद मालूम हुआ के जो लाश सुबह आई थी, वो अभी तक नहीं जल सकी है..गीली लकड़ियों के कारण...
बड़ी हैरानी हुयी मुझे...
अरे.....!!!
आप लोग सुबह वाले ही हैं...?
अभी तक इधर ही हैं. ...!!

ले जाइए जितनी लकडियाँ भी चाहियें....ये तो ...आपने पहले ही बोलना था.....

और वो दोनों वूडन क्रेट वाली सूखी लकडियाँ लेकर शुक्रिया अदा करते हुए चले गए...

उनके जाने के कुछ देर बाद ही लगने लगा के जैसे मुझे भी वहाँ पर जाना चाहिए..
हाँ ..ना..हाँ..ना....

सोचते सोचते बस...उधर को चल ही पडा.....
ये लोग फिर से अर्थी को आग देने की नाकाम कोशिश कर रहे थे....
पता लगा के ५ लीटर पेट्रोल भी डाल चुके हैं इस काम के लिए....
जाने क्या हुआ.....मैंने एक सूखी जलती हुई लकड़ी हाथ में ली...और बढ़ा दी चिता की तरफ....

चिता ने भी उसी वक़्त आग पकड़ ली....मेरे साथ साथ वो लोग भी हैरान थे...
एक दो आवाज आयीं..''भाई साहब, शायद आपकी ही इन्तजार थी इन्हें..."


लकडियाँ वाकई में गीली थीं....

मैंने जेब से १०० रूपये निकाले और अपने एक आदमी से कहा के भागकर इसकी चीनी ले आ....

चीनी आई और मैंने पूरी चिता पर बिखेर दी...

चिता अब और ठीक से जलने लगी थी...
सब कुछ ठीक ठाक जानकर मैं वापिस आफिस में आया और अपने काम में लग गया...

करीब दो -तीन घंटे के बाद . ...एक आदमी ऑफिस में आया..और बोला...

बाबूजी,
थोड़ा सा पानी भी मिलेगा......?

मैंने कहा के हाँ, किसलिए चाहिए....???

तो उसने बताया के चिता पूरी जल चुकी है.....अब चलते वक़्त उस पर छींटा देना है...
मैंने पानी की बाल्टी का इंतज़ाम किया...दिवार पर टंगे छोटे से मंदिर से उठवाकर उस में गंगाजल भी मिलाया....
जब वो उठा कर चलने लगा
तो मैंने दोबारा पूछ लिया...क्या सचमुच चिता पूरी तरह से जल चुकी है.....???

जवाब आया.....
'' हाँ, बाबूजी, शायद इसे आपके हाथ से ही जलना था...अब तो पूरा जल चुका है....."

मैंने कहा....''चलो जी...शुक्र भगवान् का....हो गया ना....?''
जवाब में उसने हाथ जोड़ लिए..


यकीन कीजिएगा.......

उस के बाल्टी उठा कर चलने के बाद..जाने मुझे क्यूँ लगा...के लाश का बाँया पाँव अभी भी कच्चा है...
माना के मैंने सारी हालत की जानकारी ले ली थी....ये भी पता था के वहाँ पर एक दो ऐसे भी हैं जो कहते हैं के हमें क्रिया कर्म के बारे में सब पता है...
और इस ने भी तो धन्यवाद सहित कह दिया था .....
के चिता जल चुकी है पूरी तरह से...


लेकिन जाने क्या था....
के मैंने अपना काम फ़ौरन बंद किया...और जल्दी जल्दी चलकर उसके पीछे पीछे वहीँ जा पहुंचा....


मेरा ख़याल सही था....

बांये पाँव तक आग पहुंची ही नहीं थी.....

उन लोगों के छींटा देने से पहले ही मैं बोल पडा...की अभी रुको....
अभी नहीं जला है पूरा जिस्म.....!

फिर उन्होंने चेक किया....बांयें पाँव को आग की लपटों छू भी नहीं पायीं थीं....

मैं खामोश खडा देख रहा था...जाने क्या सोच रहा था....
शायद भगवान् से मांग रहा था मैं...के ये ना हो..कल सुबह इस बांये पाँव को इधर रहने वाले कुत्ते मुंह में दबाये घुमते नजर आयें....

वो सब लोग तब तक कई तरकीबें आजमा चुके थे...
पर सब नाकाम ही रहीं.....
अब सब लोग मुझे देखने लगे....मुझे खुद कुछ समझ नहीं आ रहा था के क्या करना चाहिए ऐसे में...???


मेरा पूरा ध्यान उसी में लगा हुआ था...
कभी भी वास्ता नहीं पडा था ऐसी स्थति से....जाने कितना सोचने के बाद....
मैंने चिता की तरफ बढ़कर एक लकड़ी उठायी...और उसका डायरेक्शन चेंज कर दिया.....एक दूसरी लकड़ी को उठाकर अलग तरह से रखा....
अब आग बांये पाँव की तरफ भी आने लगी...अब बाँया पाँव मेरी आंखों के सामने खुले में जल रहा था...मैंने जिंदगी में पहली बार ऐसा देखा ....

उसके बाद तो जैसे भुट्टे को आग पे भूनते हैं.....

जैसा के लोगों का मानना है....शमशान में जाकर कभी भी अलग से कोई वैराग का भाव मन में नहीं आता हमारे...जितना वैराग मन में है..उतना सदा ही है...
अभी भी उलझा हुआ हूँ कल वाली बात में...
वो आवाज अब भी कान में है....
'' भाई साहेब...शायद आपकी ही इंतज़ार थी इन्हें....."