बे-तख़ल्लुस

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'बेतख़ल्लुस' हूं मुझे कोई भी अपना लेगा

manu

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Friday, December 5, 2008

""कितने रदीफ़-ओ-काफिये, कितने ज़वां हुरूफ़,
कब से हैं मुन्तज़िर, तेरे अहसान-ऐ-ग़ज़ल के..""

1 comment:

Bahadur Patel said...

achchha sher hai.jawab nahin hai .