बे-तख़ल्लुस

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'बेतख़ल्लुस' हूं मुझे कोई भी अपना लेगा

manu

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Monday, December 29, 2008

रवानी

|| कौन सी ज़ंजीर पहना दूँ, रवानी को बता,
दरिया हूँ आख़िर, भला मैं कैसे बहना छोड़ दूँ ||

|| बेज़ा ना तोहमत लगा, तर्जे बयानी पर मेरी,
बात कुछ ऐसी नही कहता, के कहना छोड़ दूँ ||

8 comments:

vijay kumar sappatti said...

manu ji ...

aapne itni choti rachan kyon likhi... itna accha likhne ke baad itni choti rahcna padhkar man adhura raha gaya ..

दरिया हूँ आख़िर, भला मैं कैसे बहना छोड़ दूँ ||

बात कुछ ऐसी नही कहता, के कहना छोड़ दूँ |

kya baat hai . wah wah.

behtareen .......

aapko bahut badhai ..

aap bahut dino se mere blog par nahi aaye.. aapke pyar ki raah dekh rahi hai meri nazmen...

vijay
http://poemsofvijay.blogspot.com/

daanish said...

waah waah !!
pukht`gi se labrez aapke iss azm
ko slaam karta hooN, aur aapki baat
ki taaeed karte hue....
aapke liye......

" hai mera kirdaar
meri shkhsiyat ka aaina ,
kyooN bhla halaat ke dr se
ye gehnaa chhorh dooN "

---MUFLIS---

गौतम राजऋषि said...

ये तो नाइंसाफी है मनु जी...सरासर नाइंसाफी..बस एक झलक दिखला कर,पूरी गज़ल छुपा रहे हैं.

या गज़ल पूरी सुना दे या पता अपना बता
देख लूँ तेरी गली मैं फिर भटकना छोड दूँ

हा ! हा!! हा!!!

praveen pandit said...

अच्छा किया आपने मनु भाई!ख़ूबसूरत बात ज़रा कहकर छोड़ दी।

पार हो गया होता तो ख़लिश कहां से होती।
आपको पढ़ने सुनने का सुख नितांत निराला है।

प्रवीण पंडित

ilesh said...

Khubsurat....

daanish said...

sirf kehne tk hi na reh jaaye
aao ! mil-jul kr prarthna kreiN..
k ho bhi ye...
NAYA SAAL 2009...
M U B A A R A K .

---MUFLIS---

रज़िया "राज़" said...

|| कौन सी ज़ंजीर पहना दूँ, रवानी को बता, दरिया हूँ आख़िर, भला मैं कैसे बहना छोड़ दूँ ||
|| बेज़ा ना तोहमत लगा, तर्जे बयानी पर मेरी,बात कुछ ऐसी नही कहता, के कहना छोड़ दूँ ||
hai mera kirdaar
meri shkhsiyat ka aaina ,
kyooN bhla halaat ke dr se
ye gehnaa chhorh dooN "

"मुफ़्लिस" ने जब आपके लिये कुछ अशआर भेजे है तो हम भी इस में अपने को शामिल करते हुए आपके लिये........
ज़िंदगीभर तो हमने खाये हैं ज़खम इतने,
फ़िर थोडी-सी ओर ज़िंदगी को क्यों सहना छोड दूँ॥

"अर्श" said...

हम न दिल्ली थे,न मजदूर की बेटी लेकिन ... काफिले जो भी इधर आये,हमें लूट गए ...



aapke in she'r pe kya kahun lut jaane ko jee chahta hai .... dilli likh dun kya aapko manu ji....?

arsh