बे-तख़ल्लुस

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'बेतख़ल्लुस' हूं मुझे कोई भी अपना लेगा

manu

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Friday, December 26, 2008

रंग

कल आफिस में लंच करते समय उन्होंने कहा था....
"मनु यार कम से कम हाथ तो धो ले।"
"धुले तो हैं " मैंने कहा पर उँगलियों पर हल्का गुलाबी रंग, और कहीं एक शोख आसमानी रंग नज़र आ रहा था
"तो ये क्या है....?"
"ये तो रंग हैं ,हाथ तो धो चुका हूँ पर ये नहीं छूट रहे.....आप ही बताओ क्या करुँ "
"दुबारा हाथ गीले कर के स्लैब के उलटी तरफ़ खुरदरी जगह पर जोर से रगड़ ले, सब छूट जाएगा "
मैंने उनके कहे पर अमल करना शुरू किया........पर जाने क्यूं इन शोख रंगों को जोर से रगड़ने की हिम्मत हाथों को ना हुई, कुछ देर वो मेरा इंतज़ार देख के बोले " एक मिनट का काम है, बस,, पर तू ही नहीं चाहता...."

""जी शायद मैं ही नहीं चाहता, आप चाहें तो मेरे बिना अकेले लंच कर सकते हैं ......."

9 comments:

vijay kumar sappatti said...

ab ye jo kuch likha hai , wo ek kalakaar ne likha hai , ya ek kavi ne likha hai ya ek aashiq ne likha hai .... maine isko teen baar padha , aur teen alag shade nazar aaye..
aur kya kahun .teeno to tum hi ho yaar........

bahut si badhai ...

vijay
pls visit my blog :
http://poemsofvijay.blogspot.com/

daanish said...

huzoor ! ab ye rang chahe shokh nazar aaeiN, feeqe parheiN, ya gehre ho jaaeiN...inheiN apnaaye rehna...zindgi ka hr aks nazar aayega inn meiN.
Aur inn Vijay mahashayaji se zra bch ke rehna...kalakaar/kavi to shayad na rehne deiN, lekin jo wo chaahte haiN, wo zroor bna daalenge

Ek ghazal..aapko mansoob ki hai...
nvaazish farmaaiega.
---MUFLIS---

manu said...

ये रंग असल में तीनो ही नहीं हैं.....एक और आयाम है...सबसे पहले का..जब मनु इन तीनों में से कुछ भी नहीं था....बचपन के रंग हैं....सबसे शोख रंग तब ही हो सकते हैं.....
है ना....?
इन्हीं को चुनता फ़िर रहा हूँ बाल-उद्यान पर....

कभी आकर देखें ..टाइम निकाल कर.......

manu said...

vijay ji..
ek baar aur padh lete to ...ek chautha nazariyaa bhi mil jaataa

KK Yadav said...

आपके ब्लॉग पर बड़ी खूबसूरती से विचार व्यक्त किये गए हैं, पढ़कर आनंद का अनुभव हुआ. कभी मेरे शब्द-सृजन (www.kkyadav.blogspot.com)पर भी झाँकें !!

Alpana Verma said...

भाव भरी कविता है.आप एक कलाकार हैं..
कलाकार अपनी हर चीज़ से मन जोड़ बैठता है..
चाहे वे निर्जीव रंग ही क्यूँ न हों!
बहुत ही खूबसूरत कविता है.

Alpana Verma said...

ये रंग असल में तीनो ही नहीं हैं.....एक और आयाम है.

aap ne likha---sach kavita mein ek naya bhaav nazar aaya..

bahut sundar!

manu said...

मेरी सीधी साड़ी लिखी बात को कविता कहा...
अल्पना जी का शुक्रिया...

Rajat Narula said...

its an awesome expression of a true passionate artist...

its very much a same situation where a soldiers dies in the battle field with holding tightly his rifle... same ways for an painter colors are his true friends and best companions..