बे-तख़ल्लुस

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'बेतख़ल्लुस' हूं मुझे कोई भी अपना लेगा

manu

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Wednesday, December 3, 2008

शायरी और कार्टून ....

एक दिल की मजबूरी , दूजा दिमाग का खेल....

कैसे हो ये मेल......

""शौके तीरंदाजी पूरा हो,लहू भी न बहे...

मरहमी कुछ तीर भी मिलते हैं क्या बाज़ार में""

2 comments:

daanish said...

"raah ki sb diqqatteiN hi manziloN ka haiN nishaaN ,
hai chhipa eelaaj bhi sun lo 'manu' aazaar maiN"
---MUFLIS---

neelam said...

wallllllllllaaaaaaaaaaaaaaaaahhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhh