बे-तख़ल्लुस

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'बेतख़ल्लुस' हूं मुझे कोई भी अपना लेगा

manu

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Saturday, November 29, 2008

आज पूरी रात दिमाग में कैफ़ी आज़मी साहब की नीचे लिखी लाइने घूमती रहीं, और मैं रात भर सोचता रहा के आख़िर मैंने आज तक वोट क्यूं नहीं दिया ......"आज की रात बहोत गर्म हवा चलती है आज की रात न फुटपाथ पे नींद आएगी ,मैं उठूँ,तुम भी उठो,ये भी उठे वो भी उठे,कोई खिड़की इसी दीवार पे खुल जायेगी "चलो वोट दे आयें

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