फोन पे उसे हमेशा ही परेशान पाया है मैंने....
कहाँ गयी....?
अभी तो यहीं थी....!!!!!!!
मधुर.... तूने देखी है...?
देख तो तूने कही रखी होगी....!
अरे , भाई साहिब आपके पास माचिस है...?
नहीं...?
रिक्शे वाले भैया , माचिस है....?????????
और मैं मोबाइल फोन कान से लगाए चुप चाप होल्ड पे रह कर उसे तडपते देखता हूँ....और उसके साथ खुद भी तडपने लग जाता हूँ....
मेरी दोनों जेबों में माचिस है....एक सामने टेबिल पे पड़ी है...दो चार और इधर उधर बिखरी होंगी...!!!!
लेकिन उसे बस इस वक्त एक तिल्ली की जरूरत है...!
उसे क्या फायदा है मेरा दिल्ली में रहने का...?
जब के वो एक तिल्ली के लिए यूं आदमी आदमी को पूछता फिरे...???
शायद मिल गयी है उसे...
हाँ मनु जी,
अब बताइये ....कुछ नवीईईईन ........?????
( नवीईईन बोले तो....नवीन......)
मेरी भी रुकी सांस उसकी सिगरेट जलते ही खुद बा खुद चलने लगती है.....पहले जेबों में हाथ लगा कर माचिस को छूता हूँ..फिर सामने टेबल पर पड़ी माचिस को देखने लगता हूँ......चलो शुक्र है मिल गयी...
कल दिन दहाड़े यही काम मेरे साथ हो गया...पता नहीं कहाँ गिरी ..क्या हुआ....
लेकिन कल जब मुंह में सिगरेट रखी तो पाया के पास में माचिस है ही नहीं..जल्दी से सारी जेबें टटोल डालीं...तेज तेज क़दमों से पूरा ऑफिस नाप दिया...फिर बस.... लगा जैसे मैं दर्पण हो गया....
अरे माचिस है किसी के पास ...?
है क्या...?
है क्याआआआ.........!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
पास खडा एक ड्राइवर अपनी जेब से माचिस निकाल कर मेरी तरफ उछाल देता है...और मैं आसानी से कैच कर लेता हूँ...यूं अक्सर मुझ से चीजें छूट जाया करती हैं...!
अब जल्दी से तिल्ली जलाई और मुंह की तरफ बढ़ा दी...होंठ ...नाक अब झुलस गया ...नहीं झुलसी तो बस वो कमबख्त आखिरी सिगरेट ............जो इस हडबडाहट में जाने कहाँ गिर गयी थी...?
जाने दो ...कोई टेंशन नहीं...बाद की बात है...
अभी तो मैंने एक बीडी मुंह में दबाई और दूसरी तिल्ली से सुलगा ली....
इसने बस बीडी ही सुलगाई...और कुछ नहीं....
अब मैं इत्मीनान से पेड़ के निचे कुर्सी डाल कर बैठा सोच रहा हूँ......
उसका मुंह आये दिन कितनी बार जलता होगा