दास्ताँ-ए-इश्क को बस मेरा अफ़साना कहें
इस तरह सब इश्क से क्यूं खुद को बेगाना कहें
अक्स उनका,चाह उनकी,दर्द उनके, उनका दिल,
दिल में हो जिसके उसे सब, क्यों न दीवाना कहें
जाम आखिर जाम की सूरत कभी तो चाहिए
कब तलक तेरी हसीं आँखों को, मयखाना कहें
साथ जीने की ही जब उम्मीद तक बाकी नहीं
तेरे बिन जीने को फिर हम,क्यों न मर जाना कहें.
"बे-तखल्लुस" ये जहां वाले भला समझेंगे क्या.?
जां का जाना है, जिसे सब दिल का आ जाना कहें।
बे-तख़ल्लुस
Tuesday, September 22, 2009
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