आज दो जून है...हमारी शादी की साल गिरह..सवेरे ही याद आ गया था..साथ ही याद हो आयी एक बरसों पुरानी रचना.....एक बे-मतला गजल ...
जब एक दफा बेगम साहिबा अपने बताये गए समय से कुछ ज्यादा ही रुक गयीं थी मायके में... तब हुयी थी ये....
आज इसे ही पढें आप ....
ये अहले दिल की महफ़िल है कभी वीरान नहीं होती
के जिस दम तू नहीं होता तेरा अहसास होता है
तेरे जलवों से रौशन हो रहे शामो-सहर मेरे
तू जलवागर कहीं भी हो तू दिल के पास होता है
चटखते हैं तस्सवुर में तेरी आवाज़ के गुंचे
जुदाई में तेरी कुर्बत का यूं अहसास होता है
निगाहों से नहीं होता जुदा वो सादा पैराहन
हर इक पल हर घड़ी बलखाता दामन पास होता है
विसाले-यार हो ख़्वाबों में चाहे हो हकीकत में
तेरे दीदार का हर एक लम्हा ख़ास होता है.
नहीं इक बावफा तू ही, तेरे इस हमनवा को भी
वफ़ा की फ़िक्र होती है, वफ़ा का पास होता है