कुछ ख़ास नहीं है कहने को...!
होली पर जाने क्या हुआ...पर..अभी तक होली बीती नहीं है....ऐसा कुछ ख़ास अलग खाया पीया भी नहीं था जो......
पर अब के ....बस....होली जैसी ही होली हो गयी.....
फैज़ साहिब कि सुने तो..
यूं तो कब से नहीं सुन सके हैं फैज को...
न गुल खिले हैं न उनसे मिले न मय पी है...
अजीब रंग में अब के बहार गुजरी है...
हमें छोडिये...फैज़ साहिब की बात सुनिए..
6 comments:
आपकी तो हर बात गजल है जी
चाहे कुछ खास कहा हो या नहीं ....:)
शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' said...
मनु जी, ये कोई बात है....क्या साहित्यिक मज़ाक़ है...
गला खराब है...क्या हाल बना रखा है...
कुछ लेते क्यों नहीं?
Sun Mar 07, 01:17:00 AM
शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' said...
आराम मिला?
चलो...अब शुरू हो जाओ.
Sun Mar 07, 01:19:00 AM
सबसे पहले मिर्ज़ा साहिब से हाथ जोड़कर माफ़ी चाहते हैं....
हुज़ूर...
वो कोई पोस्ट नहीं थी...बस पोस्ट हो गयी थी....
बस हम अपनी पोस्ट को एडिट करना सीख रहे थे... नीचे वाली ग़ज़ल में ईंचना/सींचना नहीं कर सके तो कमेन्ट डालना पडा..ऐसे ही इस पोस्ट में सोचा के एडिट करके देखते हैं..पर हमसे हो नहीं सका...
हमारे ब्लॉग का बैक ग्राउंड ही कुछ ऐसा है...
सीधे सीधे काले अक्षर लिखें तो कुछ नजर नहीं आता...
अगर एक पोस्ट को सिर्फ एक ही रंग से लिखें तो अपनी तसल्ली नहीं होती....
अगर एक से ज्यादा रंग का इस्तेमाल करें तो एडिट नहीं कर पाते....
जरूरत से ज्यादा हल्का रंग हो तो गूगल रीडर पर सुना है नहीं दिखता.....
सारे बवाल की जड़...
ब्लॉग का बैक ग्राउंड ........................
जो की हम नहीं बदल सकते..ना ही बदलना चाहते हैं....
ब्लॉग पर आये थे तो इसे देख कर,,,सोच कर ही अपनाया था....
अब बेशक दिक्कत आती है..मगर हमसे नहीं बदला जाता....
एक बार फिर आपके आने का आभार...
और इमानदार कमेन्ट के लिए दिल से आभार...
:)
arsh
holi,kuchh esi hi hamaari beetee..
hamare jeise bhi yadi aapki beetee to lagaa..jo beetee vo bahut khoob beetee..../
holi,kuchh esi hi hamaari beetee..
hamare jeise bhi yadi aapki beetee to lagaa..jo beetee vo bahut khoob beetee..../
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