बे-तख़ल्लुस

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'बेतख़ल्लुस' हूं मुझे कोई भी अपना लेगा

manu

manu

Thursday, July 2, 2009

बस आदमी से उखडा हुआ आदमी मिले
हमसे कभी तो हँसता हुआ आदमी मिले

इस आदमी की भीड़ में तू भी तलाश कर,
शायद इसी में भटका हुआ आदमी मिले

सब तेजगाम जा रहे हैं जाने किस तरफ़,
कोई कहीं तो ठहरा हुआ आदमी मिले

रौनक भरा ये रात-दिन जगता हुआ शहर
इसमें कहाँ, सुलगता हुआ आदमी मिले

इक जल्दबाज कार लो रिक्शे पे जा चढी
इस पर तो कोई ठिठका हुआ आदमी मिले

बाहर से चहकी दिखती हैं ये मोटरें मगर
इनमें, इन्हीं पे ऐंठा हुआ आदमी मिले

देखें कहीं, तो हमको भी दिखलाइये ज़रूर
गर आदमी में ढलता हुआ आदमी मिले

25 comments:

वीनस केसरी said...

देखें कहीं, तो हमको भी दिखलाइये ज़रूर
गर आदमी में ढलता हुआ आदमी मिले

waah manu jee bahut khoob

venus kesari

स्वप्न मञ्जूषा said...

देखें कहीं, तो हमको भी दिखलाइये ज़रूरगर आदमी में ढलता हुआ आदमी मिले
kya baat hai, bahut sahi baat, kam shabdon mein bahut badi baat to aap hi kah sakte hain manu ji....
ham to bas padhte he chale jaate hain ....

"अर्श" said...

KYA BAAT HAI SAHIB... KYA GAZAB KE SHE'R AAPNE KAHE HAI HAR SHE'R DUSARE PE BHARI PADATA HUAA ,AUR SAARE MERE PE.... BAHOT HI KHUBSURATI SE NISAANIYAT KI BAAT KAHI HAI AAPNE... DO SHE'R TO CHUKAA DENE WAALE HAI JO BAHOT HI MUKAMMAL TARIKE SE KAHI GAYEE HAI ... AUR ISME KOI SHAK NAHI KE YE BATAUR SIRF AAP HI KAH SAKTE HAI....AAPKI KALAM SE HI AISE KALAAM NIKAL SAKTE HAI... BAHOT BAHOT BADHAAYE SAHIB...

ARSH

नीरज गोस्वामी said...

इक जल्दबाज कार लो रिक्शे पे जा चढी
इस पर तो कोई ठिठका हुआ आदमी मिले

मनु जी वाह क्या बात है...कहने की ये अनोखी अदा ही आपको सबसे जुदा करती है..आम भाषा और घटनाओं का इतना सजीव चित्रण किसी अजूबे से कम नहीं...बहुत खूब मनु जी मेरी बधाई कबूल करें...
नीरज

daanish said...

वाह ! मनु भाई !!
आज की भागती-दौड़ती जिंदगी और उसके
तल्ख़ असरात का बहुत ही खूबसूरती से बयान
किया है आपने .
और...
इक जल्दबाज़ कार वाला शेर तो बेमिसाल है
लोग आजकल अपने-आप में ही सिमटते जा रहे हैं
हर कोई दुसरे को धकेल कर आगे निकल जाने की होड़ में फंस चूका लगता है
मतले में 'बस' की जगह
'हर' कहें तो कैसा रहेगा...?!?

दौरे-तरक्कियात का ऐसा भी क्या असर
देखो जिधर भी, टूटा हुआ आदमी मिले

एक अछि ग़ज़ल पर मुबारकबाद ,,,,

---मुफलिस---

Ria Sharma said...

बस आदमी से उखडा हुआ आदमी मिले
हमसे कभी तो हँसता हुआ आदमी मिले

बहुत सच और सही बात
बहुत शानदार बात कह गए आप
अपनी इस उम्दा ग़ज़ल में मनु जी !

अभी मुफ़लिस जी की लाजवाब ग़ज़ल पढी

कुछ ऐसी ही !!

अभिषेक मिश्र said...

Har sher laajawab, Badhai.

vijay kumar sappatti said...

manu bhai

poori ki poori gazal zindagi ke aur aadmiyat ke behad kareeb hai .. man ko bahut gahre se choo gayi ji .. aap ko main is gazal ke liye apna salaam bhejta hoon ... har sher itna gahri philsphical touch liye hue hai ki bus poochiye mat ....

रौनक भरा ये रात-दिन जगता हुआ शहरइसमें कहाँ, सुलगता हुआ आदमी मिले

ye amazing thought hai ... mujhe to bhai ,ye aapki ab tak ki sabse behatreen rachana lagi .. meri dil se badhai kabul kare,,,,,,,

aapka
vijay

दर्पण साह said...

TIKTA KAHAN HAI KOI APNI AADAT PE AB YAHAN?
BADLE WQUT SA BADLA HUA AADMI MILE!!

Urmi said...

वाह मनु जी क्या बात है! आपने इतना सुंदर ग़ज़ल लिखा है कि मैं निशब्द हो गई! इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए ढेर सारी बधाइयाँ! आपकी हर एक ग़ज़ल या कविता जो भी लिखते हैं एक से बढकर एक है! मुझे आपकी हर एक ग़ज़ल बेहद पसंद है! इसी तरह लिखते रहिये!

श्रद्धा जैन said...

देखें कहीं, तो हमको भी दिखलाइये ज़रूरगर आदमी में ढलता हुआ आदमी मिले

wah kya kamaal ki gazal kahi hai
bahut sunder sher hai

श्रद्धा जैन said...

इक जल्दबाज कार लो रिक्शे पे जा चढी
इस पर तो कोई ठिठका हुआ आदमी मिले

ye sher to aapne aise kaha hai ki bus nishabd hoon ki baat kahne ka andaaj hi seekha jaaye aapse

दिगम्बर नासवा said...

देखें कहीं, तो हमको भी दिखलाइये ज़रूर
गर आदमी में ढलता हुआ आदमी मिले

vaah manu जी............ आदमी को इतने aadmiyon के beech talaashti आपकी ग़ज़ल लाजवाब है........... हर शेर kaabile taareef है bahoot khoob

अमिताभ श्रीवास्तव said...

सब तेजगाम जा रहे हैं जाने किस तरफ़,कोई कहीं तो ठहरा हुआ आदमी मिले..........

esi gazale dil ko sukoon pahuchati he../ bhid me akele maanas ke liye esi soch aam he.
आदमी में ढलता हुआ आदमी मिले...
mujhe bhi lagataa he, kabhi to...mile.../// par afsos a हँसता हुआ आदमी nahi milta..//
manuji, dil ko chhuti gazalo se rubaru kara aapne man halkaa kar diya.//
yahi khasiyat hoti he gazalo ki jise gungunaa lena..dil halka kar lena hota he//

vijay kumar sappatti said...

manu bhai ,

aaj subah man kuch udaas sa tha ,, aapki gazal bahut der se padh raha hoon ... yaar jab bhi hum milenge , aap mujhe ye gazal sunayenge... ye waada kriye aap....

bahut acch likha hai is baar manu...dil kaisa kaisa ho gaya ji

vijay

गौतम राजऋषि said...

लीजिये हम गुमशुदा क्या हुये आपने दो पोस्ट निकाल दीं?
"मुक्कमल ग़ज़ल" से फुरसत पाऊँ, तो कहीं और निगाह डालूँ न? और फिर मुशायरे की रपट अब तलक पेंडींग है जो आजकल सपनों में भी डराने लगा है।
इस ग़ज़ल पर विलंब से आया तो गुरूजनों ने कहने वाली बातें तो सब कह डाली हैं।
लेकिन इस दुर्लभ रदीफ़ के लिये और उसके इतने खूबसूरत निर्वहन के लिये मेरी समस्त बधाईयां बेतखल्लुस साब।
ऐंठा हुआ आदमी और ठिठका हुआ आदमी- सब तारिफ़ों से ऊपर, हर दाद से पर...!

हरकीरत ' हीर' said...

मनु जी बड़े -बड़े गुरुओं ने तारीफ कर दी तो हम बे बहर के लोग क्या तारीफ करें .........हाँ तारीफ कमेन्ट वाले शे'रों को पढ़ कर ही कर रही हूँ ....क्योकि फॉण्ट का कलर चेंज कर दिया शायद आपने .....

देखें कहीं, तो हमको भी दिखलाइये ज़रूर
गर आदमी में ढलता हुआ आदमी मिले


आदमी में ढलता हुआ आदमी मिले....?????
कहाँ मिलेगा मनु जी ....

इक जल्दबाज कार लो रिक्शे पे जा चढी
इस पर तो कोई ठिठका हुआ आदमी मिले

एक बात पूछूँ .....ऐसे लाजवाब शे'र उपजते कहाँ से हैं....?
बहुत khoob .......!!!

Anonymous said...

यथार्थ और सुन्दर चित्रण किया आपने.......

कंचन सिंह चौहान said...

इक जल्दबाज कार लो रिक्शे पे जा चढी
इस पर तो कोई ठिठका हुआ आदमी मिले

ye sher bhari padata bahut si ghazalo par...! badhi leN hamari

मुकेश कुमार तिवारी said...

मनु जी,

देखें कहीं, तो हमको भी दिखलाइये ज़रूर
गर आदमी में ढलता हुआ आदमी मिले

शायद ऐसी गज़लों की तारीफ श्री गौतम राजऋषि साहब ने की है उस तिलस्माती रात के बारे में।

आनंद आ गया।

सादर,

मुकेश कुमार तिवारी

निर्मला कपिला said...

देखें कहीं, तो हमको भी दिखलाइये ज़रूर
गर आदमी में ढलता हुआ आदमी मिले
सच मे आज सिर्फ आदमी ही नहीं मिलता भीद तो बहुत है बहुत खूब्सूरत गज़ल है बधाइ और आशीर्वाद्

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' said...

उम्दा शेर...रचना बहुत अच्छी लगी....बहुत बहुत बधाई....
"इक जल्दबाज कार लो रिक्शे पे जा चढी,
इस पर तो कोई ठिठका हुआ आदमी मिले.
इसमे ले की जगह गलती से लो टाइप हुआ है... दुरुस्त कर लें

Razi Shahab said...

achanak aap ke blog par aana hua ... yahan jo cheez padhne ko mili us ne dil jeet liya ... har sher aaj ki zindagi ka aaina hai .. bahut achcha likha hai aap ne ...mubarak ho badhai ho...

kalaam-e-sajal said...

मनु जी, खूबसूरत ग़ज़ल। अभी अभी अदा जी की आवाज़ में आपकी ग़ज़ल सुनी। बधाई और शुभ-कामनाएं। लिखते रहिये। ग़ज़ल कहने सुनने का शौक रखता हूँ। ब्लॉग और ईमेल के ज़रिये संवाद होता रहेगा।
डॉ जगमोहन राय
Email: drjagmohanrai@gmail.com

tejaswini said...

achchi kavitaa /
aaj ke aadmi par /