बे-तख़ल्लुस

My photo
'बेतख़ल्लुस' हूं मुझे कोई भी अपना लेगा

manu

manu

Thursday, August 4, 2011

बल्कि तस्वीर हव्वा की बनाने बैठा था..

दुनिया की पहली औरत हव्वा..
पहली औरत जो...

खुदा का शौक थी, शैतां का प्यादा
अजल से खेल बस, औरत की जां थी..


दुनिया..
जो मेरे लिए शायद एक बार फिर से पहली थी..सुनने में आया था कि किस्म किस्म की किताबें पढ़ कर सयाने बन चुके लोग, लोगों के ज़हन में हव्वा की एक तस्वीर बनाए हुए हैं..पढ़ी गयी किताबों के हिसाब से ...
सिर्फ लिखे हुए को ही सब कुछ समझ लेते हैं लोग बाग़ ..किस किस्म के लेखक ने लिखा है सब..किसी को भी क्या मतलब हुआ है कभी...

नाश की जड़, नरक का दरवज्जा. ऐसे ही जाने कितने नामों अब तक से नवाजी गयी हव्वा...जिसके तन पर जाने कहाँ से एक शर्ट पेंट हो गयी थी मुझसे..सोचा तो खूब ही था उस पल..कि ये तो हव्वा जैसी तो कहीं से भी नहीं लग रही उस लाल कमीज़ में...

कमीज़...
जिसे पेंट करने की वजह ..दिल और दिमाग का कैसा भी डर नहीं था ब्रश पर...हजामत किये जाने वाले बाल और उनसे सटे दांतों की हर जद्दो ज़हद तक से शायद वो लाल कमीज़ अनजान थी..या कहें तो बेपरवाह थी ...(लापरवाह नहीं...बेपरवाह..) ....बेपरवाह थी...


कमीज़...

जिसे पेंट करने की वजह कोई भी धार्मिक-अधार्मिक, शारीरिक-अ_शारीरि...ओह शिट.....

उस खाब पे लहरा के उठे जिस्म भी जां भी
जिस खाब से दोनों ही पशेमां थे अगरचे..


हाँ..

धर्म,देश,काल,समय,जात,वर्ण, मतलब-मकसद, सत्ता-कुर्सी.....

यानी किसी भी उल जुलूल फतवे का कोई डर हावी नहीं था....पास का और दूर का चश्मा बारी बारी से चढ़ा कर देखा भी था...

दोनों ही से सिर्र्फ लाल रंग ही तो झलका था...कोई भी रेखा कहाँ नजर आई थी...दोनों ही से...

6 comments:

kshama said...

Hawwa waise to insaanee dimaag ka creation hai!

vijay kumar sappatti said...

मनु जी

बहुत गहरी पोस्ट .. बहुत कुछ कहती हुई , आपने शब्दों और रंगों का ऐसा संयोजन बिठाया है कि क्या कहे .. शब्द कम पढ़ जाते है ..

आभार

विजय

कृपया मेरी नयी कविता " फूल, चाय और बारिश " को पढकर अपनी बहुमूल्य राय दिजियेंगा . लिंक है : http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/07/blog-post_22.html

रचना दीक्षित said...

बहुत गहरी बात

हरकीरत ' हीर' said...

हूँ....
तो aaj कल शब्दों से तस्वीर bnaaii jati है ......
par हमें तो रंगों wali भी देखनी है ....
आदम और hvvaa की .....
देखें तो sahi क्या बनाया है .....

DR. ANWER JAMAL said...

भाई जो आदमी अपनी मां हव्वा अलैहिस्सलाम को शैतान का प्यादा कहता है वह कमफ़हम भी है और कजफ़हम भी। हव्वा अलैहिस्सलाम के आला और पाक किरदार की सही तस्वीर आप क़ुरआन में देख सकते हैं।
शुक्रिया !

मां बाप का आदर करना सीखिए Manu means Adam
http://blogkikhabren.blogspot.in/2012/04/manu-means-adam.html

manu said...

तशरीफ़ लाने का शुक्रिया डॉक्टर साहिब ...आपके आने से कम-स-कम ये तो याद आया कि अपना कोई ब्लॉग भी है..मनु-उवाच करके..

जानकर अच्छा लगा कि किसी धर्म में हव्वा को ऊँचा दर्ज़ा दिया गया है...वरना हमने ना तो सब किताबें ही पढ़ीं हैं और ना ही हर इन्सां से मिल कर बातें कहीं-सुनी हैं....हमारी इस आधी-अधूरी सी पोस्ट में हमने कहीं भी हव्वा को गलत नहीं ठहराया है..शे,र बेहद साफ़ बात कहता है...

ईश्वर ने औरत को बेहद चाव से बनाया..संसार की सबसे खूबसूरत चीज...अब हल्ला तो 'चीज' कहने पर भी मच जाएगा...पर ये हमें सच लगता है कि औरत दुनिया की सबसे जरूरी शै है.. सुना था कि शैतान ने हव्वा को फुसला कर एक वर्जित फल खिलाया ...जिस के कारण आदम और हव्वा ने 'कथित' गुनाह या पाप किया...और ईश्वर ने इस पर क्रोधित हो कर उन दोनों को स्वर्ग से नीचे पटक दिया...

और..अजल से खेल बस औरत की जां थी...


सो हमारा पंगा ईश्वर से और शैतान से है..न कि बेचारी हव्वा से ...