इतनी कंजूसी.....!!! इतने दिनों बाद आये हो और वो भी प्रेम-दिवस पर और महज दो पंक्तियाँ...!!
सोच रहा हूँ, प्रेम-दिवस के दिन भी चाय-वाली को तज कर आप मार्निंग-वाक पे तो नहीं चले गये थे कि प्रेम का सवाल उठा तो आपने "पेट" का वास्ता दे दिया उन्हें...हा! हा!!
नहीं चलेगा ये पोस्ट। ग़ज़ल चाहिये एक आपसे और वो भी जल्द-से-जल्द!
11 comments:
वाह, लाजवाब!
बहुत सुंदर !
वाह ,क्या बात है !
उड़ान भरते मन पर गुरुत्वाकर्षण बल लगाती सीमाओं की बेहद सटीक व्याख्या आपके द्वारा प्रस्तुत शेर करता है।
धन्यवाद
हुज़ूर....
चन्द लफ़्ज़ों में ही
बहुत गहरी बात कह दी आपने ...
शब्दों के वन में जा के कहीं गुम भी हो रहूँ
चाव उसको, जानता हूँ कि आखेट का भी है
पोस्ट पर टिप्पणी तो बाद में देखी जायेगी पर सबसे पहले ये बताइये कि इतने दिनों तक कहां थे ?
इस पेट ने हज़म कर रखी है कितनी ही मोहब्बत, और देखो कि डकार भी नहीं मारता....।
बहुत खूब मनुजी..
इतनी कंजूसी.....!!! इतने दिनों बाद आये हो और वो भी प्रेम-दिवस पर और महज दो पंक्तियाँ...!!
सोच रहा हूँ, प्रेम-दिवस के दिन भी चाय-वाली को तज कर आप मार्निंग-वाक पे तो नहीं चले गये थे कि प्रेम का सवाल उठा तो आपने "पेट" का वास्ता दे दिया उन्हें...हा! हा!!
नहीं चलेगा ये पोस्ट। ग़ज़ल चाहिये एक आपसे और वो भी जल्द-से-जल्द!
...kaash wo mere dil ke bajaye pet ka haal poochte ! :)
शे'र तो अच्छा है , मगर जी नहीं भरा ...... ग़ज़ल कहाँ है...?????
badiya hai sir g ,gud 1
Wah Wah!! anand aa gaya!
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