बे-तख़ल्लुस

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'बेतख़ल्लुस' हूं मुझे कोई भी अपना लेगा

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Monday, February 14, 2011

प्रेम दिवस पर....

उनके हर इक सवाल का, मैं दे तो दूं जवाब,
मेरे लिए सवाल मगर पेट का भी है...

11 comments:

मनोज कुमार said...

वाह, लाजवाब!

इस्मत ज़ैदी said...

बहुत सुंदर !
वाह ,क्या बात है !

Anonymous said...

उड़ान भरते मन पर गुरुत्वाकर्षण बल लगाती सीमाओं की बेहद सटीक व्याख्या आपके द्वारा प्रस्तुत शेर करता है।
धन्यवाद

daanish said...

हुज़ूर....
चन्द लफ़्ज़ों में ही
बहुत गहरी बात कह दी आपने ...

शब्दों के वन में जा के कहीं गुम भी हो रहूँ
चाव उसको, जानता हूँ कि आखेट का भी है

उम्मतें said...

पोस्ट पर टिप्पणी तो बाद में देखी जायेगी पर सबसे पहले ये बताइये कि इतने दिनों तक कहां थे ?

अमिताभ श्रीवास्तव said...

इस पेट ने हज़म कर रखी है कितनी ही मोहब्बत, और देखो कि डकार भी नहीं मारता....।

बहुत खूब मनुजी..

गौतम राजऋषि said...

इतनी कंजूसी.....!!! इतने दिनों बाद आये हो और वो भी प्रेम-दिवस पर और महज दो पंक्तियाँ...!!

सोच रहा हूँ, प्रेम-दिवस के दिन भी चाय-वाली को तज कर आप मार्निंग-वाक पे तो नहीं चले गये थे कि प्रेम का सवाल उठा तो आपने "पेट" का वास्ता दे दिया उन्हें...हा! हा!!

नहीं चलेगा ये पोस्ट। ग़ज़ल चाहिये एक आपसे और वो भी जल्द-से-जल्द!

दर्पण साह said...

...kaash wo mere dil ke bajaye pet ka haal poochte ! :)

"अर्श" said...

शे'र तो अच्छा है , मगर जी नहीं भरा ...... ग़ज़ल कहाँ है...?????

Unknown said...

badiya hai sir g ,gud 1

Vishal said...

Wah Wah!! anand aa gaya!