एक ग़ज़ल ... बे-kaafiyaa ग़ज़ल...
करवा चौथ par...
शे'र क्या रुक्न भी होता है मुक्कमल मेरा
कुफ्र कहते हो जिसे तुम, कभी दीवानापन
कुछ नहीं और, है ये तौर-ऐ-इबादत मेरा
रश्क होता है फरिश्तों को भी आदम से तो फिर
बोल क्यों खटके मुझे रूतबा-ऐ-आदम मेरा
रात जो हर्फ़, तमन्ना में नया लगता है
सुबह मिलता है वोही हर्फ़-ऐ-मुक़र्रर मेरा
और गहराइयां अब बख्श न हसरत मुझको
कितने सागर तो समेटे है ये साग़र मेरा
आह निकली है ओ यूं दाद के बदले उसकी
कुछ तो समझा वो मेरे शे'र से मतलब मेरा
41 comments:
मनु जी भरपूर दाद कबूल करें...सादगी से बहुत प्यारी बातें कह जाते हैं आप अपनी शायरी में...लाजवाब.
नीरज
भावनाओं को सुंदर शब्दों से सजाया है आपने, बहुत ही ख़ूबसूरत रचना...बधाई।
आह निकली है ओ यूं दाद के बदले उसकी..
ko..
aah nikli hai 'JO' youn daad ke badle uski ....
padhein...
आह निकली है जो यूं दाद के बदले उसकी
कुछ तो समझा वो मेरे शेर से मतलब मेरा
आपके अश`आर पढ़ कर निकली
उस एक 'आह' पर तो
हज़ारों लाखों 'वाह' कुर्बान हैं हुज़ूर.....
ये शेर है,,,,
कि जान ही लिए जाता है
और वो...
"कितने सागर तो समेटे है ये साग़र मेरा"
मान गए जनाब !!!
"मैकशी भी अब दग़ा देने लगी है ,
ये सितम इक और जान-ए-नातवाँ पर"
Jai ho manuji !
कुफ्र कहते हो जिसे तुम, कभी दीवानापन
कुछ नहीं और, है ये तौर-ऐ-इबादत मेरा
intahaa ....
रश्क होता है फरिश्तों को भी आदम से तो फिर
बोल क्यों खटके मुझे रूतबा-ऐ-आदम मेरा
kamaal .....
6.5/10
आप बेहद उम्दा लिखते हैं और कमाल का भी.
जनाब कहना पड़ेगा कि आपकी शायरी का स्टैण्डर्ड बहुत ऊंचा है. लेकिन एक छोटी सी इल्तिजा है. ऐसा भी लिखिए जो ज्यादा से ज्यादा लोगों को अपनी गिरफ्त में ले.
मनु जी आभार आपका मेरे ब्लॉग पर आने के लिए ....
आप अपनी टिप्पणियों में जो कहना चाहते है वो कृपया स्पस्ट कहे ....
कविता की ज्यादा समझ नहीं रखता इसलिए सिर्फ अच्छी प्रस्तुति या फिर बढ़िया जैसे शब्दों का इस्तेमाल नहीं कर सकता ...... क्षमा करे इसके लिए ....
चलिए मनु जी आपकी इस समस्या का भी समाधान कर देते है ... FOLLOW करते है आपके ब्लॉग को .... हम भी आते रहेंगे आपके ब्लॉग पर और आप भी इसी तरह मिलते रहे ... आभार
follow karne se kyaa hogaa...??
jab ki osho ek hi the...
आपके कहने का तात्पर्य नहीं समझा , कृपया स्पस्ट करे
रश्क होता है फरिश्तों को भी आदम से तो फिर
बोल क्यों खटके मुझे रूतबा-ऐ-आदम मेरा
’अशरफ़-उल-मख़्लूक़’ यानी आदम के लिए इस तरह का शेर अलग ही अंदाज़ नज़र आया है...मुबारकबाद
मनु जी, बहुत अच्छा लगा...
बेतख़ल्लुस शायर का बिना क़ाफ़िया ये कलाम.
बडी खूबसूरत गज़ल है जनाब उसके बावज़ूद आप फलों से लदे दरख्तों की मानिन्द झुके जा रहे हैं !
बहुत खूब ! मुबारकबाद ! दिल से लिखा दिल तक पहुंचा ! शुक्रिया !
क्या खूब कहा है इबादत और दीवानापन '
हाँ करवाचौथ का है ये मुक्कमल तोहफा ..
रश्क होता है फरिश्तों को भी आदम से तो फिर
बोल क्यों खटके मुझे रूतबा-ऐ-आदम मेरा..
लाजवाब । वाह जनाब वाह ।
आह निकली है जो यूं दाद के बदले उसकी....
यहाँ तो वाह ही निकली है दाद के लिए..क्या खूब निकाले हैं भाव!
ye gazal maine suni hai pehle.. bahut pyaari rachna hai..
जब से है बज्म में हमराजे सुखनवर मेरा
hamraaz e sukhanwar nahi likha jayega shayad ye izafat galat hai
और गहराइयां अब बख्श न हसरत मुझको
ye misra mujhe samajh na aaya..
Neeraj ji tippanee sab kuchh kah rahee hai!
manu jio arsa ho gaya tha aap ko padhe hue ... chautha aur paanchvan sher pasand aaya....daad kuboolen ...
बिना काफिये के इस कलाम को हमारा सलाम। आपकी बज़्म में आने से यह सुख तो मिलता ही है कि कुछ अच्छा पढने को मिल गया। चूंकि मामला गज़ल का होता है तो इसका रस लेकर निकल जाना और फिर दिमाग में रख कर गुनगुनाने की कोशिश करते रहना ही अपने बस में होता है, इसलिये..ज्यादा कुछ लिख नहीं पाते। गज़ल की समझ बस उतनी तक है जितने से वो रस दे सके..। और मुझ जैसे को यदि यह रस मिलता है तो मैं तो तालियां ठोंकने में फिर कुछ दूसरा नहीं देखता। तो सिर्फ हमारी taaliyaa
वाह वा भाई जान..हर शेर उम्दा... किस शेर की तारीफ करूँ ज्यादा..! बस आफरीन आफरीन आफरीन आफरीन
आह निकली है जो यूं दाद के बदले उसकी
कुछ तो समझा वो मेरे शे'र से मतलब मेरा
..इसे पढ़कर तो वाह ही निकलेगा जनाब।
Manu Jiii
Kitni khoobsurti se bhavnao ko shabdo me piroya hai aapne
:):)
बेहरीन
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एक नज़र : ताज़ा-पोस्ट पर
पंकज जी को सुरीली शुभ कामनाएं : अर्चना जी के सहयोग से
पा.ना. सुब्रमणियन के मल्हार पर प्रकृति प्रेम की झलक
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@मनु जी,
शब्दार्थ दे दिए होते तो हम भी पढ़ लेते :)
इस ज्योति पर्व का उजास
जगमगाता रहे आप में जीवन भर
दीपमालिका की अनगिन पांती
आलोकित करे पथ आपका पल पल
मंगलमय कल्याणकारी हो आगामी वर्ष
सुख समृद्धि शांति उल्लास की
आशीष वृष्टि करे आप पर, आपके प्रियजनों पर
आपको सपरिवार दीपावली की बहुत बहुत शुभकामनाएं.
सादर
डोरोथी.
मनु जी,
नमस्कारम्!
आप भी साक्षी हैं ही...! ब्लॉग्ज़ के मेले में ‘कभी आदतन, कभी मजबूरन, कभी हालातन’ तमाम लोग ‘अल्लम-गल्लम’ रचना तक पर प्रशंसात्मक प्रतिक्रियाएँ टिपिया रहे हैं...!
कुछ लोग तो बिना पढ़े ही ‘गोल-मोल’ टिपिया कर खिसक लेते हैं! एक भाई तो ऐसे हैं कि हर ब्लॉग पर केवल एक ही शब्द 'Nice' टिपियाकर खिसक जाते हैं।
बहरहाल सब ख़ुश हैं...अपने-अपने में! ...हाऽऽ...हाऽऽ...हाऽऽ...!
ये सब आपके ब्लॉग पर आकर लिखने का क्या मतलब...? भाईवर दरअस्ल कई ब्लॉग्ज़ पर मैंने देखा कि आप... और स्वप्निल कुमार ‘आतिश’ ये दो लोग रचना के सम्मुख सच्चा दर्पण रखकर आये हैं...इसके लिए आपके साथ-साथ ‘आतिश’ भाई को भी बधाई!
मनु जी, अब आपकी रचना पर मेरी बेवाक एवं विनम्र...राय!
यह ग़ज़ल मुझे बहुत पसंद आई। कई शे’र आपको बधाई का सु+पात्र बनाते हैं। बस तीसरे शे’र के पहले मिसरे (रश्क होता है फरिश्तों को भी आदम से तो फिर) में प्रवाह कुछ बाधित लग रहा है। अगर उसमें प्रयुक्त ‘तो’ शब्द को ‘त’ पढ़ूँ तब प्रवाह कुछ हद तक सध जा रहा है।
इसके अतिरिक्त, आपकी वह ‘बाल रचना’ जो आपने कुछ ही समय में तत्काल एक विशेष आग्रह पर लिखी है, बहुत ख़ूबसूरत-सी बन पड़ी है...उसके लिए विशेष रूप से बधाई देना चाहूँगा!
आपकी तरह ही मुझे भी कई बार ऐसे आग्रह स्वीकारने पड़े..उनमें से कई रचनाएँ तो कवि-सम्मेलनों और पत्रिकाओं में भी सराही गयीं! उन्हीं में से एक-दो क़व्वलियाँ भी शामिल हैं जिनका मंचन अनेक विद्यालयों में हुआ है। आपसे प्रेरणा लेकर अब मैं अपने ब्लॉग पर उन्हें शीघ्र पोस्ट करने का प्रयास करूँगा...!
रश्क होता है फरिश्तों को भी आदम से तो फिर
बोल क्यों खटके मुझे रूतबा-ऐ-आदम मेरा
और गहराइयां अब बख्श न हसरत मुझको
कितने सागर तो समेटे है ये साग़र मेरा
कुफ्र कहते हो जिसे तुम, कभी दीवानापन
कुछ नहीं और, है ये तौर-ऐ-इबादत मेरा
.............................aafreen ,aafreen ,aafreen
Masterpiece! Sun rakhi thi aapse, dubara padhna bahut achcha laga. Deri se aayi, muaafi chahoongi ...
zindagi se fursat mile to aa jate hain .. u know it :!!
achchaalikhaahai...
be'qaafiya itni khoobsurat ghazal...aap kuch hatkar hi hai, kaun likh sakta hai be'qaafiyaa aisi ghazal...amazing
sunder bhaw.
और गहराइयाँ अब बख्श न हसरत मुझको,
कितने सागर तो समेटे है ये सागर मेरा !
वाह,क्या शेर कहें है ,
मुबारक हो,
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
nice blog..
Please visit my blog..
Lyrics Mantra
अब कुछ नया डाल भी दें .....
इन्तजार की आँखें थक न जायें .....
अब तबियत कैसी है ....
अपना no भी दें ...सारे no डिलीट हो गए हैं ....
गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें.....
---------
हिन्दी के सर्वाधिक पढ़े जाने वाले ब्लॉग।
किधर रहते हैं जनाब .....
क्रिसमस पर नहीं ...नववर्ष पर नहीं ...
कम से कम गणतंत्र पर तो दो पंक्तियाँ होनी चाहिए ....
प्रिय बंधुवर मनुजी
क्या बात है जनाब ? हैं कहां इन दिनों आप ??
जो शिकायत ले'कर मैं आज आया हूं ,
हीर जी भी वही कहने कल पहुंच चुकीं ।
ऐसे मत करो यार ! स्वास्थ्य तो अच्छा है न ?
आपकी आदत भी सही जो नहीं … पहले एक्सिडेंट … फिर चिकनगुनिया …
दर्द तो ख़ैर, हमारा भी अभी तक रह रह कर जागता रहता है …
नव वर्ष , मकर संक्रांति और
गणतंत्र दिवस की हार्दिक बधाई और मंगलकामनाएं !
होली से पहले अवश्य प्रकट हो (जा)आइएगा … :) आपकी ग़ज़ल को तरस रहे हैं …
- राजेन्द्र स्वर्णकार
waha sir ,bhut acha likha hai very meaning fulllll
good lines
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