बे-तख़ल्लुस

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'बेतख़ल्लुस' हूं मुझे कोई भी अपना लेगा

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Thursday, November 12, 2009

गजल...

नहीं हो रही है....
जब गजल की मर्जी होती तो ही होती है.....

हमारी मर्जी से कब हुई है ग़ज़ल......?

दिवाली का दिन.....
दर्पण मेरे घर के रास्ते में रिक्शा पे सवार बैठा था...बड़ी भीड़ थी उस मेले में..... पता लगा के लोग उसे ठेल रहे हैं ... और वो अडा हुआ है...
पटरी वाले.. दूकानदार...सिपाही....ट्रेफिक वाले.......
और आजू बाजू से गुजरते लोग....!

सभी तो मिल कर धकिया रहे थे गरीब को.......

उस को भी जाने क्या सूझ गयी.......

बोला........ अभी मेरी वाइफ आ रही है... बस ..ज़रा शौपिंग करने गयी है....

बस.....!!!
फिर क्या था....?
सारे जुल्मो-सितम थम गए

अब इत्ता चिकना छोकरा है...तो उसकी वाइफ कैसी होगी......?????????

????????????????????????
???????


रिक्शा ...वहीँ रुका रहा...दर्पण को लिए....
आने-जाने वाले भी,
पटरी वाले भी ...और सब दूकानदार भी......

एक टक...!!!!!!!

घूरते रहे खाली खाली रिक्शे में बैठे दर्पण को.....
हाँ जी,
वो सिपाही भी......
हा हा हा हा हा .....( ठरकी .............)

कुछ देर बाद वहाँ पर हम प्रगट हुए....

हारे थके....
टमाटर-खीरे-प्याज
हरी मिर्ची.....

एक पोलीथिन में समेटे हुए ... ( एकदम नार्मल से...)

और सब कुछ ले जाकर दर्पण के बराबर में जा धंसे............
और रिक्शा वाले को कहा ..... चल भाई, अब चल जल्दी से.....!


पटरी वाले ने अपने मुंह से तुंरत नेवला छाप की पिचकारी सड़क पे छोड़ दी,
दूकानदार ...खिसिया कर अपने ग्राहकों को पटाने में लग गए....

और सिपहिया बाबू.....???

हमारे रिक्शा में धंसते ही पिछले टायर पर उनके डंडे की सारी खुंदक निकल गई...

आजू बाजू में ठिठके लोग...
बेचारे,,,,,,!!!!!!

''अपना-सा'' मुंह लेकर .........!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!



एक शे'र याद आ गया.... फैज अहमद फैज का.....

वो तो वो है तुम्हे हो जायेगी उल्फत मुझ से
इक नजर तुम मेरा महबूबे-नज़र तो देखो......

19 comments:

manu said...

नहीं हो रही ग़ज़ल....!!!

अगर शायर की मर्जी से ही ग़ज़ल होती है..तो
हम शायर नहीं.......

स्वप्न मञ्जूषा said...

ha ha ha ...
Aisi dubli-patli biwi dekh kar aur kya ummeed thi aapko..??
ha ha ha ha

मनोज कुमार said...

यथार्थ लेखन।

"अर्श" said...

sach kahaa aapne manu bhaaee ji gazal khud apne marji se hoti hai kabhi shayeer ke marji se nahi ... aur jo wakayaa aapne likhaa hai wo apne aap me sara khaka pradarshit karti hui...
aakhiri she'r ne jaan le li ab kya karun....?/?


aabhaar
aapka
arsh

नीरज गोस्वामी said...

क्या अंदाजे बयां है मनु जी...वाह...सुभान अल्लाह...इसे बेहतर ग़ज़ल और क्या होगी...दिलचस्प दास्ताँ...
नीरज

निर्मला कपिला said...

हा हा हा मैने तो सोचा कि चलो आज एक राज़ खुल गया पर इथे ताँ ओहिओ गल रई ए दर्पण मुन्डा वी कमाल ए पर तुसी मनु जी उस तों वी कमाल हो सच एह वी किसे गज़ल तों घट नहीं रचना। मैनू लगदा है हुण तक पंजाबी तुहानू वी आ गयी होवेगी। शुभकामनावां

daanish said...

उस को भी जाने क्या सूझ गयी.......
बोला........ अभी मेरी वाइफ आ रही है... बस ..ज़रा शौपिंग करने गयी है....

मान गए दर्पण भाई ....
"अपनी-अपनी बीवी पे सब को गुरूर है ..."

और उन धक्का-मुक्की वालों को कया पता क
बीवी नहीं, उनके "बावाजी" तशरीफ़ ला रहे हैं

खैर...!!
बहुत अछा किया जो ये हल्का-फुल्का
संवाद डाल दिया है.....
मन को सुकून हासिल हो रहा है

शुक्रिया,,,,,
एक अच्छी पत्नी बनने के लिए ....

और फैज़ साहब का वो शेर भी तो.....
"बड़ा है दर्द का रिश्ता, ये दिल गरीब सही ,
तुम्हारे नाम से आयेंगे गम-गुसार चले "

खुश रहो . . . .

हरकीरत ' हीर' said...

वाह...वाह.....चिकने छोरे की वाइफ जी ....लोग तो हतप्रद रह गए होगें देखकर .....!!

पर आपने किस्सा खूब कहा ....बस यूँ ही जुल्मों सितम थमते रहे ....आप टमाटर, खीरे , प्याज, आलू का जुगाड़ करते रहे ...और यूँ ही "खुश रहो".... का आर्शीवाद मिलता रहे ....!!

स्वप्न मञ्जूषा said...

मनु जी,
आपने बिकुल सही फ़रमाया है....शायर के चाहने से कभी ग़ज़ल नहीं बनती ..वो तभी बनती है जब उसे बननी होती है..
वैसे आपका यह संस्मरण किसी ग़ज़ल से कम नहीं ....
नाज़ुकी से लबरेज़ है...मैं दर्पण की नहीं आपकी नाज़ुकी की बात कर रही हूँ ...
और अभी तक सर पर हाथ रख कर सोच रही हूँ बेचारे पटरीवाले,,..सिपहिया बाबू कैसे उबरे होंगे इनते बड़े सदमें से......कैसे ??????

daanish said...

'khatke' ki taraf dhyaan
dilvaane ke liye
thankoo hai ji,,

डिम्पल मल्होत्रा said...

nahi ho rahi gazal....apni marji se kaha hoti hai....aisa jaise gazal ki baat nahi mahboob ki baat ho ki unki marji ke wo aaye ki na aye....jante hai ki gazal me kuch 2-2-1 aisa koee chakar sa hota hai..kisi ne btaya tha kabhi....fir bhi hume to post gazal si lagi...

गौतम राजऋषि said...

हा हा...अरे ग़ज़ब!

चिकना छोकरा की वाइफ कैसी होगी की कल्पना और फिर वास्तविकता से रू-ब-रू होना....हाय री उनकी किस्मत...

और ऊपर की पंक्तियों का दर्द हमसब का ही तो दर्द है...काश कि ग़ज़ल हमारी मर्जी से हो पाती!

श्रद्धा जैन said...

bahut sahi kaha hai
gazal khud apni marzi se hi hoti hai
nahi to zahan bas uljha uljha

दिगम्बर नासवा said...

JAB DAASTAAN KHUD HI GAZAL HO JAAYE TO CHAND LAFJON KO BAHAR MEIN KYUN KAR KOI RAKKHE .....

ZINDA GAZAL TO AAPNE LIKH SI ... AB KAAGAZ KALE KYON HON ....

BHOOT UMDA RAHI AAPKI GAZAL ...

sandhyagupta said...

Ghazal ho rahi hai aur kya khub ho rahi hai.

दर्पण साह said...

मुझे अब तक उस 'गहनों' के दुकानदार की शकल याद है...
आपको तो बात बाद मैं बताई थी,
ग़ज़ल नहीं हुए ५ महीने हो चुके हैं...
शायद रद्दी की कोई टोकरी मुस्कुरा रही है....
५ महीनो से....
चलो एक चोरी की ही सही, ऐसा लगता है मैंने ही लिखी है:
ये दुनिया भर के किस्से , घर के झगडे, काम की बातें.
बाला हर एक टल जाइये, अगर तुम मिलने आ जाओ...

वैधानिक चेतावनी: ये कमेन्ट दो लोगों द्वारा मेरे सर में पिस्तोल रख के करवाया गया है, अतः इससे सहमत होना या न होना ज़रूरी नहीं है...

स्वप्न मञ्जूषा said...

अजब ज़माना है ...लोग अवैधानिक काम करते हैं और वैधानिक चेतावनी देते हैं....
नहीं .....माने कि हम तो सिर्फ एक ठो बात कह रहे हैं....
बाकि दुनिया इधर से उधर हो जाए हम तुम्हारे साथ हैं बचवा....बेशक पिस्तौल के साथ ;);)

दर्पण साह said...

@ aDaDi....

Mile dost tere jaise to dushmnoo ki zarurat kya hai?
:P

Ria Sharma said...

गज़ब..प्रेम की इन्तहा.....मनु जी......ये दर्पण भाई भी ना.......:))

आप मित्रों का प्रेम बना रहे...!!

आमीन..!!