बे-तख़ल्लुस

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'बेतख़ल्लुस' हूं मुझे कोई भी अपना लेगा

manu

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Saturday, November 21, 2009

कितनी बार...

अक्सर ही होता है ऐसा....
फोन पे उसे हमेशा ही परेशान पाया है मैंने....
कहाँ गयी....?
अभी तो यहीं थी....!!!!!!!
मधुर.... तूने देखी है...?
देख तो तूने कही रखी होगी....!
अरे , भाई साहिब आपके पास माचिस है...?
नहीं...?
रिक्शे वाले भैया , माचिस है....?????????

और मैं मोबाइल फोन कान से लगाए चुप चाप होल्ड पे रह कर उसे तडपते देखता हूँ....और उसके साथ खुद भी तडपने लग जाता हूँ....
मेरी दोनों जेबों में माचिस है....एक सामने टेबिल पे पड़ी है...दो चार और इधर उधर बिखरी होंगी...!!!!
लेकिन उसे बस इस वक्त एक तिल्ली की जरूरत है...!
उसे क्या फायदा है मेरा दिल्ली में रहने का...?
जब के वो एक तिल्ली के लिए यूं आदमी आदमी को पूछता फिरे...???

शायद मिल गयी है उसे...
हाँ मनु जी,
अब बताइये ....कुछ नवीईईईन ........?????
( नवीईईन बोले तो....नवीन......)

मेरी भी रुकी सांस उसकी सिगरेट जलते ही खुद बा खुद चलने लगती है.....पहले जेबों में हाथ लगा कर माचिस को छूता हूँ..फिर सामने टेबल पर पड़ी माचिस को देखने लगता हूँ......चलो शुक्र है मिल गयी...

कल दिन दहाड़े यही काम मेरे साथ हो गया...पता नहीं कहाँ गिरी ..क्या हुआ....
लेकिन कल जब मुंह में सिगरेट रखी तो पाया के पास में माचिस है ही नहीं..जल्दी से सारी जेबें टटोल डालीं...तेज तेज क़दमों से पूरा ऑफिस नाप दिया...फिर बस.... लगा जैसे मैं दर्पण हो गया....
अरे माचिस है किसी के पास ...?
है क्या...?
है क्याआआआ.........!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!


पास खडा एक ड्राइवर अपनी जेब से माचिस निकाल कर मेरी तरफ उछाल देता है...और मैं आसानी से कैच कर लेता हूँ...यूं अक्सर मुझ से चीजें छूट जाया करती हैं...!
अब जल्दी से तिल्ली जलाई और मुंह की तरफ बढ़ा दी...होंठ ...नाक अब झुलस गया ...नहीं झुलसी तो बस वो कमबख्त आखिरी सिगरेट ............जो इस हडबडाहट में जाने कहाँ गिर गयी थी...?

जाने दो ...कोई टेंशन नहीं...बाद की बात है...

अभी तो मैंने एक बीडी मुंह में दबाई और दूसरी तिल्ली से सुलगा ली....
इसने बस बीडी ही सुलगाई...और कुछ नहीं....

अब मैं इत्मीनान से पेड़ के निचे कुर्सी डाल कर बैठा सोच रहा हूँ......
उसका मुंह आये दिन कितनी बार जलता होगा

17 comments:

स्वप्न मञ्जूषा said...

नमस्ते मनु जी,
ये सिगरेट-बीडी सुलगाई व्यथा....हम पर तो काम नाही कर पाई काहे की न हम इसके रोगी न इसका दर्द समझें हैं .....बाकि किस्सा लगा कि दर्दे दिल दर्दे जिगर वाला है....वैसे भी सिगरेट पीने से दर्दे दिल और दर्दे जिगर ही होता ...और आप तो बीडी-पान भी करते हैं तो......आगे तो अल्ला मालिक है न.....अब हम तो बस खाली यही इमाजिन कर रहे हैं की अन्दर कितना काला हो गया होगा....और इ जो आप कहे हैं की माचिस की तीली से नाक-मुंह सुलग गया बस सिगरेट नहीं सुलगा.....'उसका' मुंह कितना बार जलता होगा....तो हम कहते हैं की इतना सिगरेट-बीडी जो पीते हैं आखीर में 'मुंहझौसा' ही कहाते हैं क्या..?
आपकी लेखनी से एक अलग तरह की रचना लिखी गयी......जो भावपूर्ण है......बहुत अच्छी है.....बस हमको थोडा इन सब चीज़ों से परहेज़ है, ....और ये जॉन और लिली की दास्ताँ तो है ही .....भगवान् आप्दोनो को सुबुद्धि दे......
रचना के लिए बधाई आपको..

दर्पण साह said...

Is 2nd 'Darpan' Post pe ek choti si abhi abhi kal ke hangover ke baad ki treveni:

Sirhane main hi pada hua hai packet,
Maachis jalaoon aur pi hi loon ek,
Sili si raat na jalti hi hai na khoti hi hai.

"अर्श" said...

सच कितनी बार उसका मुह जला होगा.... इस वास्तविकता को जिस
कदर आपने एक खुबसूरत नज़्म की शक्ल में ढाला है आपने , उसके
क्या कहने ... दिल्ली में रहकर एक तिल्ली नहीं दिला सकता इस
बात के काफी करीब हूँ मैं.... अपने बारे में भी ख़याल रखें... कितनी
बार मुंह जला होगा यह बात आप पर भी लागू है ....

एक शाम आपका भी अपहरण होने को है ... जरा बच के ...

आपका
अर्श

डिम्पल मल्होत्रा said...

jaise ki ciggt zindgee ho....akhari kassh tak peene ki chaht ho...pata nahi kon kise pee raha hai...ciggt zindgee ko ya zindgee ciggt ko.....

दर्पण साह said...

@Raj ji....

Pata nahi kaun kise ji raha hai...

zindagi , insaan ko ya insaan zindagi ko?

"Chor dein hum aaj hi viez magar tu ye bata,
Zindagi acchi nahi ya mekashi acchi nahi?"

daanish said...

ab ye bidi jalaeele ka qisaa bhi jaane kyu mn bhaa rahaa hai...
lekin fikr zyaada ho gayaa hai meraa...kayaa karu saari teeliyaaN chhipa bhi to nahi saktaa..!!
khair ...ek sher sunaa detaa hu...

"talab aisi k pee jaaooN samandar
magar halaat hr qatre pe haavi.."

daanish said...

(halaat) bole to (haalaat)

दिगम्बर नासवा said...

मनु जी वो गीत याद आ गया ..........
मैं ज़िन्दगी का साथ निभाता चला गया ...... हर फ़िक्र को धुंवे में उड़ाता चला गया ..... माचिस की तीली से निकली नज़्म या कथा ...... बहुत खूब ........

हरकीरत ' हीर' said...

.हे राम.......मनु जी बीड़ी ....?

बहुत गलत बात है ......न जी न ...आज से बिलकुल बंद .....!!!
तो ये किस्सा दर्पण का है ....दर्पण जी ....ये शौक ...."" बीड़ी जलइले जिगर से पिया.....'' से तो नहीं लगा ....??
वो भी इतनी तड़प की मोबाइल होल्ड पे ....वाह...जी वाह....गज़ब का शौक .....गज़ब की पोस्ट ...''.किस्सा -ए- बीड़ी ''

और ये मुफलिस
जी भी सुनाने लगे शे'र.....

तलब ऐसी की पी जाऊँ समंदर
मगर हालात ऐसे कि एक तिल्ली पे अटके हैं .....

hardik yagnik said...

hello Mr.manu
I must say you are a creative person. great work
I am news reader in Doordarshan ( gujarti) & I am amazed by your creative skill of writing

गौतम राजऋषि said...

कौन किसको जी रहा है, ये वाकई में चौंकाने वाला प्रश्न है इस ब्लौग-जगत का?

इस सुलगती आंच के किस्से की किस्सागोई पे वारा जाऊं, मनु जी मैं तो...

और मधुर???????

दर्पण साह said...

"3 rupiya pada hai tumhare mobile main,
4 rupiye kuch paise mere mobile main bhi hain."
saason ko judte hi umr lambi ho gayi hamari.

निर्मला कपिला said...

मनु जी लगता है आजकल आप और दर्पण इकठे बैठ कर रचना लिखते हैं। वो भी अधिकतर सिगरेट की बात करता है कहीं उसी ने तो नहीं आपको भी ये लत लगायी? वैसे पता नहीं आप पीते भी हैं या केवल रच्ना ही लिखी है मगर हर्कीरत जी की बात पर गौर करें । नज़म बहुत सुन्दर बन पडी है शुभकामनायें

Ria Sharma said...

वाह मनुजी कितनी सहजता से लिख दिया इक छोटी सी घटना को ....मजेदार !!जी मुंह तो झुलसता जरूर होगा.....आदत !!!

अमिताभ श्रीवास्तव said...

muh hi nahi bhai dil bhi jalta hoga..
vyatha yaa kathaa...jo bhi ho mazedaar he..

Pushpendra Singh "Pushp" said...

बहुत खूब
बहुत -२ आभार

deen dukhee said...

namste manuji apki kahani badi achhi lagi mujhe apka deepu