बे-तख़ल्लुस

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'बेतख़ल्लुस' हूं मुझे कोई भी अपना लेगा

manu

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Tuesday, September 22, 2009

दास्ताँ-ए-इश्क को बस मेरा अफ़साना कहें
इस तरह सब इश्क से क्यूं खुद को बेगाना कहें

अक्स उनका,चाह उनकी,दर्द उनके, उनका दिल,
दिल में हो जिसके उसे सब, क्यों न दीवाना कहें

जाम आखिर जाम की सूरत कभी तो चाहिए
कब तलक तेरी हसीं आँखों को, मयखाना कहें

साथ जीने की ही जब उम्मीद तक बाकी नहीं
तेरे बिन जीने को फिर हम,क्यों न मर जाना कहें.

"बे-तखल्लुस" ये जहां वाले भला समझेंगे क्या.?
जां का जाना है, जिसे सब दिल का आ जाना कहें।

28 comments:

Riya Sharma said...

साथ जीने की ही जब उम्मीद तक बाकी नहीं
तेरे बिन जीने को फिर हम,क्यों न मर जाना कहें.

मनु जी
जाम को तो आप कस कर पकड़ कर रहते हैं ह्म्म्म?:))

शेर सभी बहुत अच्छे हैं.....पर ये तो लाजवाब ..इंतहा
थोडा मायूसी लिए.....परन्तु दिल के भाव !!

दर्पण साह said...

अक्स उनका,चाह उनकी,दर्द उनके, उनका दिल,
दिल में हो जिसके उसे सब, क्यों न दीवाना कहें

ufffffffffff..... kuch na keh paaonga...
"aah nikli hai jo.....
....kuch to samjah wo sher ka matlab mera"

aur wo kahani kaise samajh main aaiyegi....
..phone karne ka koi to bahana ho, baaton ki koi to surat ho !!

"Meri lily gayi punjaab, aa gaya dilli main aajab.
Tumahari yaad satati hai !!
Jiya main aag lagati hai !

श्रद्धा जैन said...

अक्स उनका,चाह उनकी,दर्द उनके, उनका दिल,
दिल में हो जिसके उसे सब, क्यों न दीवाना कहें

waaahhhhhhhhhh

साथ जीने की ही जब उम्मीद तक बाकी नहीं
तेरे बिन जीने को फिर हम,क्यों न मर जाना कहें.
kamaal

kya baat hai bahut hi khoobsurat sher kahe hain


Aapse ek shikyat hai...... aapne kaha main kam likhti hoon jaldi jaldi likhun
aur maine aapki baat kar jaldi likha bhi
aap ne magar dhyaan nahi diya ..........

aapse guzarish hai ki dhyaan rakah karen
kuch hi log hai jinki paarkhi nazar ka meri gazlon ko intezaar rahta hai

नीरज गोस्वामी said...

अक्स उनका चाह उनकी दर्द उनका उनका दिल...
इस खूबसूरत ग़ज़ल में से आपका ये शेर मैं अपने साथ लिए जा रहा हूँ...वाह वा...करते हुए...
नीरज

स्वप्न मञ्जूषा said...

अक्स उनका,चाह उनकी,दर्द उनके, उनका दिल,
दिल में हो जिसके उसे सब, क्यों न दीवाना कहें

जाम आखिर जाम की सूरत कभी तो चाहिए
कब तलक तेरी हसीं आँखों को, मयखाना कहें

साथ जीने की ही जब उम्मीद तक बाकी नहीं
तेरे बिन जीने को फिर हम,क्यों न मर जाना कहें.

"बे-तखल्लुस" ये जहां वाले भला समझेंगे क्या.?
जां का जाना है, जिसे सब दिल का आ जाना कहें।

मनु जी,
- आपके सारे शेर हमेशा की तरह लाजवाब हैं.
- आखिर जाम से हंसीं आखें भी हार ही गयीं.
- बहुत खूबसूरत....तेरे बिन जीने को फिर हम,क्यों न मर जाना कहें.
- और ये तो बस....जां का जाना है, जिसे सब दिल का आ जाना कहें
हमारी बोलती बंद कर गया है
और अखीर में..
अक्स उनका,चाह उनकी,दर्द उनके, उनका दिल,
दिल में हो जिसके उसे सब, क्यों न दीवाना कहें
सुभानाल्लाह.....वाह ! वाह !

और हमेशा की तरह मेरा प्रश्न....
'आप इतना अच्छा कैसे लिखते हैं ?'
और आपका जवाब...
'पता नहीं...'

Pritishi said...

Khoobsoorat rachana, jaise ke pehle bhi keh chuki hoon. Dasaa-e-ishq ko "daastaane-ishq" karein toh ...?

God bless
RC

Naveen Tyagi said...

bahut sundar prastuti hai.

हरकीरत ' हीर' said...

मनु जी हर शे'र लाजवाब है पर इस वक्त हमारा शेर घायल है इसलिए मन उदास है ....क्या कहूँ....बस खुदा से दुआ है वे जल्द स्वस्थ हों .....!!

Mumukshh Ki Rachanain said...

साथ जीने की ही जब उम्मीद तक बाकी नहीं
तेरे बिन जीने को फिर हम,क्यों न मर जाना कहें.

जैसे ये शेर लाजवाब कर रहा है वैसे ही ग़ज़ल का हर शेर, कोई किसी से कम नहीं, बेहतरीन प्रस्तुति.
हार्दिक धन्यवाद.

चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
www.cmgupta.blogspot.com

daanish said...

ghazal par aaj hi nzr padee...
kuchh mn meiN aa hi nahi rahaa
sirf udaasi hai...
aur....dheroN duaaeiN haiN..
Bhagwaan sb pr apna aashirwaad banaaei rakkheiN...aameen !
---MUFLIS---

देवेन्द्र पाण्डेय said...

अक्स उनका, चाह उनकी, दर्द उनके, उनका दिल
दिल में हो जिसके उसे सब, क्यों न दीवाना कहें।
--वाह! क्या शेर है .
'दीवाना' की परिभाषा अब कोई मुझसे पूछ कर तो देखे......
यही शेर सुना दुँगा।

Udan Tashtari said...

अक्स उनका,चाह उनकी,दर्द उनके, उनका दिल,
दिल में हो जिसके उसे सब, क्यों न दीवाना कहें


--जबरदस्त!! एक से एक उम्दा शेर निकाले हैं. वाह!

vijay kumar sappatti said...

साथ जीने की ही जब उम्मीद तक बाकी नहीं
तेरे बिन जीने को फिर हम,क्यों न मर जाना कहें.

kya kahun manu ji

itne shaandar sher ki tareef kya karun ..

waah waah .. ek hi sher me poori zindagi ka falsafa aa gaya ..

waah ji waah

Prakash Badal said...

साथ जीने की ही जब उम्मीद तक बाकी नहीं
तेरे बिन जीने को फिर हम,क्यों न मर जाना

जब खूबसूरत ग़ज़ल हो आँखों के सामने,
तो हमें कोई क्योंन 'मनु' का दीवाना कहे।

सर्वत एम० said...

मैं आपका ज़िक्र बहुत सारे मित्रों से सुनता रहा, जलन में कुढ़ता रहा और आजिज़ आ कर आपके ब्लॉग तक आ ही गया. अब वापसी के रास्ते बंद हैं. भाई, इतना अच्छा लिखने की क्या जरूरत है? मैं ने जब तक आपको नहीं पढा था, खुद को बुद्धिजीवी समझ रहा था, अब 'हैं और भी दुनिया में..........'

दर्पण साह said...

अक्स उनका,चाह उनकी,दर्द उनके, उनका दिल,
दिल में हो जिसके उसे सब, क्यों न दीवाना कहें

Neeraj ji se maine raste main hi tamanche ki nok pe ye sher cheen liya...
par wapis to karne wala aapko bhi nahi hoon...

...waise neeraj ji bhale aadmi hain ...

ya kya pata tamancha dekh ke bhale ho gaye hoon....

...to ye sher ab mere paas surakshit(??) hai !
lekin uske liye aDaDi ka zawab dena hoga?
(aur haan 'Pata nahi' ka zawab hamari taraf se bhi pata nahi hai.)

दर्पण साह said...

..Waise madhur se deal final ho gayi hai....

...is sher ke balde wo mujhe apna 'wo wala' orkut profile beech raha hai !!
:)

अशरफुल निशा said...

बहोत सुंदर भाव हैं, इस गजल की जितनी प्रशंसा की जाए कम है।
Think Scientific Act Scientific

अमिताभ श्रीवास्तव said...

bahut dino baad aayaa, magar jyada kuchh chhoota nahi, dekh tasalli hui/
अक्स उनका,चाह उनकी,दर्द उनके, उनका दिल,
दिल में हो जिसके उसे सब, क्यों न दीवाना कहें
she'r sabse behatreen he/
harbaar ki tarah chatkrat karti hui gazal/

दीपक 'मशाल' said...

अक्स उनका,चाह उनकी,दर्द उनके, उनका दिल,
दिल में हो जिसके उसे सब, क्यों न दीवाना कहें
sab aap hi kah dete hain kuchh ham logon ke liye bhi chhod dijiye bade bhai, achchha likhna to koi aap se seekhe. lekin aapka parichay padh ke laga ki aapki 90% aadaten aur shauk mere jaise hi hain, fir jab umra dekhi to pata chala upar wale ne galti se mujhe hi aapka duplicate bana diya. pasha ulta pad gaya janab. :)

मनोज भारती said...

मनु जी !!

प्रणाम

यह टिप्पणी आपकी रचना के लिए नहीं, बल्कि अदा जी की आज की पोस्ट पर मेरी टिप्पणी पर आपकी प्रतिक्रिया की प्रतिक्रिया में है ।

मैं श्योर हूँ कि आदमी-आदमी के बीच जो भी दीवारें खड़ी की गई हैं, वे स्वयं मनुष्य ने ही बनाई हैं, और मनुष्य अपनी बनाई हुई चीजों के कारण ही लड़ता है; वस्तुत: परमात्मा ने आदमी-आदमी के बीच कोई भेद नहीं किया है, फिर यदि आप भेद खोजने निकलोगे तो अनेकों भेद पा जाओगे; क्योंकि आप का दृष्टिकोण, आपकी धारणा आपके आस-पड़ौस ने आपको संस्कार रूप में दे दिए है, आप उन्हीं संस्कारों के पैमाने पर चीज़ों को तोलते हो, न कि वस्तुत:चीजों को उनकी हकीकत में देखते हुए ।

गौतम राजऋषि said...

अरे ये ग़ज़ल तो अब तलक छुटी हुई थी मुझसे, फिर तारीख देखी तो समझ में आया...वही कमबख्त बाइस सितम्बर...अब ये कह कर सकून दे रहा हूं खुद को चलिये उस दिन कम-से-कम एक तो अच्छी बात हुई कि मनु जी एक बेमिसाल...ओहो, एक और बेमिसाल ग़ज़ल लोगों तक पहुँची...

अहा! "जाम आखिर जाम की सूरत कभी तो चाहिए
कब तलक तेरी हसीं आँखों को, मयखाना कहें" ये हमारे दिल की बात थी, शब्द आपने दे दिया...हमने मान लिया हमारा इसे।

और फिर मक्ते का मिस्‍रा-ए-सानी तो कसम से...

इक नशा ऐसा चढ़ा हो सुनके ही जिसको हमें
तुम ग़ज़ल कह लो इसे पर हम तो पैमाना कहें

निर्मला कपिला said...

अपकी गज़लों के कद जितने मेरे पास अल्फाज़ नहीं होते इस लिये पढ कर ही लौट जाती हूँ ।बहुत बहुत शुभकामनायें

गौतम राजऋषि said...

manu ji check! check!!

उवाच....

स्वप्न मञ्जूषा said...

Deepavali, Dhanteras aur Bhai Dooj ki bahut bahut badhai....!!!

Unknown said...

::)
::)

SATYAANVESHI said...

Namaskar!!
Aapke blog par aise hi ghoomte phirte aa gaye. Makta-e-ghazal mein takhaalus ka bahut umda istemaal kiya hai.

Apke blog ki head-line
"मेरे अश'आर कोई भी,कहीं भी गा लेगा..! 'बे-तक्ख्ल्लुस' हूँ मुझे कोई भी अपना लेगा..!!", badi khoobsurat hein. Vaise, mera naam bhi Manu hai :D

बालमुकुन्द अग्रवाल,पेंड्रा said...

लाजवाब .