बे-तख़ल्लुस

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'बेतख़ल्लुस' हूं मुझे कोई भी अपना लेगा

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Friday, October 16, 2009

इतना नंगा आदमी (लघुकथा)

पिछले साल हिंद युग्म पर एक छोटी सी कहानी जैसी छपी थी...
फिलहाल वही डाल रहा हूँ....

काफी दिन से कुछ नहीं पोस्ट हुआ ना...?



आज और दिनों की अपेक्षा मुख्य मार्ग वाले बाज़ार में कुछ ज्यादा ही भीड़ भड़क्का है | कुछ वार त्योहारों का सीज़न और कुछ साप्ताहिक सोम बाज़ार की वजह से | भीड़ में घिच -पिच के चलते हुए ऐसा लग रहा है जैसे किसी मशहूर मन्दिर में दर्शन के लिए लाइन में चल रहे हों | इतनी मंदी के दौर में भी हर कोई बेहिसाब खरीदारी को तत्पर | सड़क के दोनों तरफ़ बाज़ार लगा है | अजमल खान रोड पर मैं जैसे-तैसे धकेलता-धकियाता सरक रहा हूँ | भीड़ में चलना मुझे सदा से असुविधाजनक लगता है, पर क्या करें, मज़बूरी है | अचानक कुछ आगे खाली सी जगह दिख पड़ी | चार-छः कदम दूर पर एक पागल कहीं से भीड़ में आ घुसा है | एकदम नंग-धड़ंग, काला कलूटा, सूगला सा | साँसों में सड़ांध के डेरे, मुंह पर भिनकती मक्खियाँ, सिर में काटती जूएँ | इसीलिए यहाँ कुछ स्पेस दिख रहा है | अति सभ्य भीड़ इस अति विशिष्ट नागरिक से छिटककर कुछ दूर-दूर चल रही है |
पर मैं समय की नजाकत को समझते हुए उस पागल की ओर लपका और साथ हो लिया | हाँ! अब ठीक है | उसका उघड़ा तन मुझे शेषनाग की तरह सुरक्षित छाया प्रदान कर रहा है | मैं पूर्णतः आश्वस्त हूँ | हाँ! इतना नंगा आदमी कम से कम मानव बम तो नहीं हो सकता......|

Dhyaan seDekho di....
Kiska Comment Pehla hai?

14 comments:

स्वप्न मञ्जूषा said...

mera comment pahla hai Darpan Bachwa...

स्वप्न मञ्जूषा said...

मनु जी,
'इतना नंगा आदमी कभी मानव बम तो नहीं हो सकता'...
एक विरोधाभास नज़र आया है.....जो भूखे-नंगे हैं उन्हें ही तो मानव बम बनना पड़ता है ....और बनेगा भी कौन ??
लेकिन आलेख अच्छा.....और विचार उम्दा...

निर्मला कपिला said...

सही मे लघु कथा। कुछ शब्दों मे समाज के चेहरे का इतना बडा सच ।लघु कथा मे जो प्रभाव -एकोन्मुखता चाहिये होती है वो पूरी कहानी मे बनी रही। एक संवेदना समयानुसार कितने रूप बदलती है। सुन्दर कहानी के लिये बधाई । आपकी बहुर्मुखी प्रतिभा धीरे धीरे सामने आ रही है । दीपावली की शुभकामनाये़ आशीर्वाद्

हरकीरत ' हीर' said...

उसका उघडा तन मुझे शेषनाग की तरह सुरक्षित छाया प्रदान कर रहा है ......हाँ इतना नंगा आदमी कम से कम मानव बम तो नहीं हो सकता ........

मनु जी ....इतनी गहरी बात इतने कम शब्दों में ......????

कमाल........!!

लाजवाब.....!!

सलाम .....!!

sandhyagupta said...

Dipawali ki dheron shubkamnayen.

डिम्पल मल्होत्रा said...

hawa se bhi darne lage hai log jidher dekhe khidhki band hai.....

Urmi said...

बहुत सुंदर लिखा है आपने ! आपको और आपके परिवार को दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें!

गौतम राजऋषि said...

चलिये, इस सशक्त लघु-कथा के बहाने "मनु-उवाच" का सिलसिला आगे तो बढ़ा...

कथा तो परसों ही पढ़ लिया था, कुछ कहने फिर से पढ़ने के बाद अभी आया हूँ।

मनु जी का ये नया अवतार दिलचस्प लगा। लघु-कथा की कसौटी पर पूरी तरह उतरती ये कहानी, कम बात, बरकरार रोचकता और ठीक बिंदु पे प्रहार करती हुई छोटी कहानी...

"अति सभ्य भीड़" का कटाक्ष बहुत पैना है।

"उघड़े तन द्वारा शेषनाग की तरह सुरक्षित छाया" वाला जुमला मिथक को सामयिक बनाने की अनूठी कला को दर्शाता है...बहुत खूब मनु जी!

...और फिर आखिरी का वो पंच लाइन, जो वाकई माइक टायसन के शक्तिशाली पंच से कुछ कम नहीं!

Mumukshh Ki Rachanain said...

समय की नजाकत आपने बखूबी भापी, भयंकर भीड़ के धक्के खाने से जहाँ बचे वहीँ मानव बम की अनहोनी का भी कोई डर नहीं............

लघु कथा बहुत गहन सन्देश दे गई.

हार्दिक बधाई.

चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
www.cmgupta.blogspot.com

Rajeysha said...

Yes Jain, bum nahi ho sakta??

श्रद्धा जैन said...

'इतना नंगा आदमी कभी मानव बम तो नहीं हो सकता'...

kam shabdon mein kahi gahri baat
aap kahani bhi likhte hain aaj pata chala

Ria Sharma said...

मनु जी
बहुत दिनों बाद ...??

मैंने शुरू में ही कहा था ना आपकी इक कहानी हिंद युग्म पर पढ़कर..की आप मानवी संवेदनाओं को अति गहराई से पकड लेतें हैं....
समाज पर व्यंग और निश्चलता को उजागर करती कहानी
शानदार रही !!

Unknown said...

bhaiya wife is looking like a nice old film actress.

Unknown said...

looking like a madhu bala, ye story kafi interesting thi.