वक्त बद-वक्त सही
आसमां सख्त सही,
न कोई ठोर-ठिकाना
कहीं ज़माने में,
खुशी की ज़िक्र तक
बाकी नहीं फ़साने में,
कब से पोशीदा लिए बैठा हूँ
इन ज़ख्मों को.....
टूटे दिल को
तेरे मरहम की ज़रूरत भी नहीं.....
अश्क अब सूख चले
आँख के समंदर से.....
अब गिला तुझसे नहीं
दिल से शिकायत भी नहीं.......
वक्त बद-वक्त सही................
वो ढलती शाम का कहना
यहीं रुक जाओ तुम....
जाने कल कौन सा अज़ाब
लिए आए सहर........
कल आफ़ताब उगे
जाने किसका पी के लहू.........
जाने कल
इम्तिहाने-इश्क पे आ जाए दहर.........
आज बस जाओ
इस दिल के गरीबखाने में......
वक्त बद-वक्त सही
आसमां सख्त सही,
न कोई ठोर-ठिकाना कहीं ज़माने में.............
14 comments:
निःशब्द हूँ मनु जी....कुछ कह सकूं इतनी हैसियत नहीं
बस भावनाओं की गहराई देख रहा हूँ और देख रहा हूँ उस गहराई में शब्दों का इतना मोहक सामंजस्य..
वक्त बद-वक्त सही
आसमां सख्त सही,
न कोई ठोर-ठिकाना कहीं
ज़माने में.............
bhaavbhari rachna..sundar prastuti.
kb se poshida liye baitha hoon in zakhmo ko......
waah !!
doooor kaheen andar ki koi khalish
waqt ke sitam ki an.mni si shikayat
halaat ki bebsi ka dhundla.sa ehsaas.....
itna kuchh to keh diya aapne...
ab aage kya kahooN??
bahot hi umda nazm hai....!!
mubarakbaad...........
---MUFLIS---
Manu ji.mun bhot bhari hai in dino.... soch rahi hun blog bhi band kr dun......!
मनु जी, अच्छी रचना है.. बधाई...
manu ji ...
i am speechless.. har pankti aankhe nam kar rahi hai .. ye kya likh diya ji ...
न कोई ठोर-ठिकाना कहीं ज़माने में.............
main ab kuch nahi kahunga ,
bus aapki lekhni ko salaam karta hoon ..
man distrub ho gaya aapki is nazm ko padhkar..
aapka
vijay
आवाज की लर्जिश .... अब भी कानों में
तो द्वार खटखटाने आ गया था यूं ही
उलझी हुई नज़्म में आपके अशआरों ने कुछ अजीब सा किया गहराई में...तो एक शेर मैं भी जोड़ आया
bahut khoobsoorat...
manu ji aik achhi nazm ke lie badhai.
www.salaamzindadili.blogspot.com
aik bahut bahut bahut achhi nazm
शुक्र है मनु जी कि आपसे बात कर ली मैंने,वर्ना इस इल्जाम को सहन नहीं कर पाता मै तो....
शायद टाइमिंग की वजह से आपका शक गया हो,लेकिन मुझे थोड़ा सा दुख पहुँचा...यदि आप हिंदी-युग्म वालों से संपर्क में हों तो कृपया इस गुत्थी को सुलझाइये....उस टाइमिंग पे कौन-कौन औन-लाइन थे हिंदी-युग्म पे आसानी से पता चल सकता है....
आज बस जाओइस दिल के गरीबखाने में......वक्त बद-वक्त सहीआसमां सख्त सही,न कोई ठोर-ठिकाना कहीं ज़माने में......
क्या बात है मनु जी.. बहुत अच्छा...
हुत सुंदर ....... एकदम सटीक और समझदार लोंगों के पढने की चीज़ है मनु जी, सच मानिये तो इसे हिन्दयुग्म के तथाकथित कवियों को पढ़ा देना चाहिए. इसे पढ़कर एक शेर याद आ गया बी डी कालिया हमदम जी का :
"ये तो पत्थरों की हैं बस्तियां यहाँ टूटने का रिवाज़ है
जो हो दर्पणों सा स्वाभाव तो, कहीं और जा के बसा करो"
ये सब तो चलता ही रहेगा....... पर चिल्लाकर हम उन्हें आइना तो दिखा ही सकते हैं जो महाकवि वर्टिकल गद्य को कविता कहते हैं उन्हें भी तो पता चले की हम उनके स्टार को बखूबी जानते हैं. चलिए आपको शुभकामनाए
हुत सुंदर ....... एकदम सटीक और समझदार लोंगों के पढने की चीज़ है मनु जी, सच मानिये तो इसे हिन्दयुग्म के तथाकथित कवियों को पढ़ा देना चाहिए. इसे पढ़कर एक शेर याद आ गया बी डी कालिया हमदम जी का :
"ये तो पत्थरों की हैं बस्तियां यहाँ टूटने का रिवाज़ है
जो हो दर्पणों सा स्वाभाव तो, कहीं और जा के बसा करो"
ये सब तो चलता ही रहेगा....... पर चिल्लाकर हम उन्हें आइना तो दिखा ही सकते हैं जो महाकवि वर्टिकल गद्य को कविता कहते हैं उन्हें भी तो पता चले की हम उनके स्टार को बखूबी जानते हैं. चलिए आपको शुभकामनाए
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