बे-तख़ल्लुस

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'बेतख़ल्लुस' हूं मुझे कोई भी अपना लेगा

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Sunday, January 27, 2013


फ़िक्र में रोज़ी की जब है मारा मारा आदमी
आदमी को हो भी तो कैसे गवारा आदमी 

जिसने बोला, आदमी का है गुजारा आदमी
आदमी ने उसके मुंह पर दे के मारा आदमी

फितरतन कोई किसी का भी नहीं, पर सब कहें
ये हमारा आदमी है, वो तुम्हारा आदमी

नित नए मजहब में बांटो आदमी को इस क़दर

या बचे मज़हब जहां में, या बेचारा आदमी

आदमी गोया कचौड़ी और मठरी हो गया
थोड़ा सा खस्ता है लेकिन, है करारा आदमी

बात ये भी चाशनी में घोल कर कहनी पड़ी
बातों में ऐसी मिठास, और इतना खारा आदमी ?


आदमी से रोज अंतिम सीख लेता है मगर
आदमी से सीखता है, फिर दोबारा आदमी

माँ के औरतपन के दिन तो जाने कब के लद गए
बाप में अब भी बचा है , ढेर सारा आदमी

'बे तखल्लुस' फ़िक्र है तो आने वाले कल की है
अब तलक तो आदमी का, है सहारा आदमी

2 comments:

manu said...

आदित्य आफ़ताब "इश्क़" aditya aaftab 'ishq' has left a new comment on your post " फ़िक्र में रोज़ी की जब है मारा मारा आदमीआदमी को ह...":

बासा आदमी ,ताज़ा आदमी।अच्छा आदमी ,बुरा आदमी . कडवी बाते बता दी हैं आपने ।शब्दों को मिठाई समझकर यह दवाई ले लेंगे ..........अगली खुराक के लिए लफ्ज़ इक्कठे कर लीजिये ...........



Posted by आदित्य आफ़ताब "इश्क़" aditya aaftab 'ishq' to manu-uvaach at Mon Jan 28, 12:35:00 AM

manu said...

शारदा अरोरा has left a new comment on your post " फ़िक्र में रोज़ी की जब है मारा मारा आदमीआदमी को ह...":

कड़वी हकीकत ..बस मजेदार ...



Posted by शारदा अरोरा to manu-uvaach at Mon Jan 28, 10:33:00 AM