काफी वक़्त से लग रहा था कि कोई ग़ज़ल नहीं हुई है..अभी पिछली फुरसतों में कुछ डायरियां,कागज़ के पुर्जे ,कापी-किताबें वगैरह देखना हुआ ... तो जाने कब कैसे किस बेखुदी में लिखी ये ग़ज़ल..कुछ और शे'र भी बरामद हुए..शायद ४-६ महीने पहले के हैं..
आपकी खिदमत में पेश हैं...
पहले खुद की फिर ज़माने की नज़र से देखना
कुछ नहीं समझो तो फिर मेरी नज़र से देखना
जान कर अनजान को वैसी नजर से देखना
जी जलाए है तेरा ऐसी नज़र से देखना
प्यास को काबू में रख, प्यासी नज़र से देखना
तू कभी प्याले को साकी की नज़र से देखना
और खुशफहमी बढ़ा देता है यारब, उनका वो
पढ़ कलाम अपना मुझे उडती नज़र से देखना
सुर्खिये लब जिनकी ठहरी सुर्खियाँ हर शाम की
सुब्हे-दम वो सुर्खी तू पैनी नज़र से देखना
उस नज़र में 'बे-तखल्लुस' खो गया सारा जहां
मुझ में खोकर वो मुझे खोई नज़र से देखना
25 comments:
Kya gazab ashar hain!
प्यास को काबू में रख, प्यासी नज़र से देखना
तू कभी प्याले को साकी की नज़र से देखना
...इस शेर के दूसरे मिसरे में गज़ब का दर्शन है।
और खुशफहमी बढ़ा देता है यारब, उनका वो
पढ़ कलाम अपना मुझे उडती नज़र से देखना
...वाह क्या बात है. ऐसा मैने भी महसूस किया है।
उस नज़र में 'बे-तखल्लुस' खो गया सारा जहां
मुझ में खोकर वो मुझे खोई नज़र से देखना
..मक्ते का यह शेर गज़ल की जान है।
..बधाई।
जहे नसीब!आपने कुछ लिखा तो.हम तो थक ही गए थे 'इरशाद' करते करते.
लो पहला शे'र ही हमारे मन की बात कह गया,मेरी समस्या का हल है बाबु! ये शे'र तो -'पहले खुद की फिर ज़माने की नज़र से देखना कुछ नहीं समझो तो फिर मेरी नज़र से देखना'
हा हा हा तो हम जहाँ कन्फ्यूज होंगे आपसे ही पूछेंगे कि जरा अपनी निगाह से देख कर बताओ तो ब्लोग्स की दुनिया कैसी है?
'उस नज़र में 'बे-तखल्लुस' खो गया सारा जहां
मुझ में खोकर वो मुझे खोई नज़र से देखना'हा हा हा उमा के लिए लिखा है या????? कान मे कह दो मेरे किसी को नही बताउंगी.सच्ची.
यूँ सब शे'र अच्छे हैं किन्तु ये दो शे'र ??? 'बब्बर शेर'हैं भई पसंद आ गए.
मुझ मे खो कर वो मुझे खोई नजर से देखना' बहुत खूब!
लिखते रहा करो.तुम भी पक्के मूडी हो.
सचमुच ऐसिच हूं मैं भी.
प्यास को क़ाबू में रख प्यासी नज़र से देखना
तू कभी प्याले को साक़ी की नज़र से देखना...
वाह मनु जी,
कमाल का शेर कहा है, मुबारकबाद
और मक़ता...
उस नज़र में बे-तख़ल्लुस खो गया सारा जहां
मुझ में खोकर वो मुझे खोई नज़र से देखना...
कितना प्यारा अंदाज़ है...वाह...वाह...वाह
इस प्यारी सी बेहतरीन ग़ज़ल के लिए एक बार फिर मुबारकबाद.
इसे कहते हैं घूमा के मारना। मेरे पोस्ट पर कह आए कि कविता कि समझ नहीं.....अपनी पोस्ट पर कविता, गजल की धारा बहा रखी है। क्या बात हैं।
तू कभी प्याले को साकी की नज़र से देखना....
वाह वाह क्या बात कही है.
और खुशफहमी बढ़ा देता है यारब, उनका वो
पढ़ कलाम अपना मुझे उडती नज़र से देखना
क्या कहा है हजूर...
और खुशफहमी बढ़ा देता है यारब, उनका वो
पढ़ कलाम अपना मुझे उडती नज़र से देखना
उस नज़र में 'बे-तखल्लुस' खो गया सारा जहां
मुझ में खोकर वो मुझे खोई नज़र से देखना
मनु जी लट्टू देखा है...बस वैसे ही आपके अशआर पढ़ कर घूम रहा हूँ...आनंद से...क्या ग़ज़ल कही है...सुभान अल्लाह ...
नीरज
प्यास को काबू में रख, प्यासी नज़र से देखना तू कभी प्याले को साकी की नज़र से देखना
उस नज़र में 'बे-तखल्लुस' खो गया सारा जहां मुझ में खोकर वो मुझे खोई नज़र से देखना
तमाम अश'आर कमाल के हैं मगर इन दोनों के बारे में कुछ नहीं कह सकता ये दोनों पूरी तरह से मनु जी के मूड में लग रहे हैं ... अपना ख़याल रखें ..
अर्श
गज़ल तो अच्छी है पर फिलहाल इसे छोडिये ! ये बताइये कि चार छै महीने पहले हुआ क्या था ? :)
[ माने उस बेखुदी की वज़ह क्या थी ]
बहुत बढ़िया है ..
एक बार इसे जरू पढ़े -
( बाढ़ में याद आये गणेश, अल्लाह और ईशु ....)
http://thodamuskurakardekho.blogspot.com/2010/09/blog-post_10.html
.
आप इतनी सुन्दर शायरी भी लिखते हैं , मालूम न था। ...बहुत सुन्दर लिखा है, बधाई ।
.
ये तो मनु जी..नज़र नहीं..एक्स रे हुआ।
बहुत खूब जी..।
यह शे'र " प्यास को काबू में रख, प्यासी नज़र से देखना तू कभी प्याले को साकी की नज़र से देखना.." माशाअल्लाह...
Hola, paso a saludar desde Buenos Aires.
Te abrazo
MentesSueltas
pyaari gazal hai.acchi to hai
पहले खुद की फिर ज़माने की नज़र से देखना कुछ नहीं समझो तो फिर मेरी नज़र से देखना....
जी देखने की कोशिश कर रही हूँ .....
और इस बेहतरीन ग़ज़ल पे नीरज जी की टिपण्णी को हमारी टिपण्णी समझें ....इस कला में अभी पारंगत नहीं हुए हम .....
४,६ महीने पहले लिखी थी तो डाली क्यों नहीं .....?
बहुत सुन्दर प्रयोग....
भाव और कलाकारी दोनों ही प्रभावशाली प्रशंसनीय हैं...
बहुत ही उम्दा प्रस्तुति ....
... हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ
पहले खुद की, फिर ज़माने की नज़र से देखना
कुछ नहीं समझो तो फिर मेरी नज़र से देखना
ग़ज़ल का सार तो मतले के इसीस शेर में ही
ढल चुका है हुज़ूर .....
अब बाक़ी शेर आपकी नज़र के हवाले से ही
पढने होंगे ...... जैसे ......
सुर्खिये लब जिनकी ठहरी सुर्खियाँ हर शाम की
सुब्हे-दम सुर्खी वो तू पैनी नज़र से देखना
शेर की बानगी ,
शेर की रूह को पढने वालों तक खुद पहुंचा रही है
चार-छेह महीने पहले की बरामदगी
बहुत कारगर साबित हुई है जनाब
अब और क्या कहूं ....
क्या सुखन , इसके सिवा कुछ और है.....!!
ज्ञान प्राप्त हो गया गुरुदेव
ख़ूब्सूरत ग़ज़ल है
एक उम्दा मतले से शुरूआत और
उस नज़र में 'बे-तखल्लुस' खो गया सारा जहां
मुझ में खोकर वो मुझे खोई नज़र से देखना
इतने प्यारे मक़्ते पर ख़ातमा
मुबारक हो मनु जी
manu ji .. bahut ... bahut khoob ... bahut hi badhiya .. har sher. Jiyo !!!
RC
मनु जी ,बहुत बढ़िया ,
किसी एक को अच्छा कहेंगे तो दूसरा शे'र बुरा मान जाएगाऔर वो हम करने नहीं वाले ,एक बात फिर नायाब ग़ज़ल हुई है .अल्लाह आपको ऐसे दौरों से बार -बार नवाजे जो ६महिने में एक ही बार पड़ते हैं ............
चलिए आज उर्दू में हसिये हा अह अह अह हा हा हा हा हा
मनु भाई
क्या करते हो यार ?
सबकी दूकानदारी बंद कराने का इरादा है क्या ?
ख़ूबसूरत शै सामने हो , मुझसे तारीफ़ किए बिन नहीं रहा जाता ।
पूरी ग़ज़ल कोट समझ लेना , दो शे'र ख़ुद अपने लिए ही …
प्यास को काबू में रख, प्यासी नज़र से देखना
तू कभी प्याले को साकी की नज़र से देखना
उस नज़र में 'बे-तखल्लुस' खो गया सारा जहां
मुझ में खोकर वो मुझे खोई नज़र से देखना
ग़ज़ल में अलंकार की उत्पत्ति , और वह भी सायास नहीं ; हर किसी के बस की बात नहीं ।
एक बार फिर से मुबारकबाद !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
ismpar comment dene ki bohot koshish ki thi diwali par ghar jaane se pehle, par net mein kuch problem thi, hopefully aaj paar ho jaayega
kya rhythm hai gazal, padhna shuru karte hain aur kab gaane lagte hain, pata nahin chalta...too good
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