बे-तख़ल्लुस

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'बेतख़ल्लुस' हूं मुझे कोई भी अपना लेगा

manu

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Friday, January 15, 2010

जाने कौन था..



जाने कौन था...

आज ऑफिस में आया तो सुबह ११ बजे के करीब देखा..के बाजू में जो शमशान घाट है..वहाँ पर एक अर्थी आई है..महज ६ लोग हैं लाने वाले..
चार कंधे पे उठाये हैं..और एक दो..राम नाम सत्य हैं कह रहे हैं...
बुझी बुझी सी आवाजों में....
इतनी बुझी ..मानो राम नाम के ही सत्य होने में सबसे बड़ा संदेह हो...

खैर...

करीब तीन-चार घंटे के बाद दो आदमी मेरे पास आये...बोले.." बाबूजी, ये जो लकडियाँ आपके ऑफिस में पड़ी हैं पैकिंग वाली...इनमें से कुछ हमें दे दोगे...?"

बकवास सा सवाल लगा पहले तो मुझे ..और मैंने जवाब भी बकवास सा ही दिया....

लेकिन इस सारी बकवास के बाद मालूम हुआ के जो लाश सुबह आई थी, वो अभी तक नहीं जल सकी है..गीली लकड़ियों के कारण...
बड़ी हैरानी हुयी मुझे...
अरे.....!!!
आप लोग सुबह वाले ही हैं...?
अभी तक इधर ही हैं. ...!!

ले जाइए जितनी लकडियाँ भी चाहियें....ये तो ...आपने पहले ही बोलना था.....

और वो दोनों वूडन क्रेट वाली सूखी लकडियाँ लेकर शुक्रिया अदा करते हुए चले गए...

उनके जाने के कुछ देर बाद ही लगने लगा के जैसे मुझे भी वहाँ पर जाना चाहिए..
हाँ ..ना..हाँ..ना....

सोचते सोचते बस...उधर को चल ही पडा.....
ये लोग फिर से अर्थी को आग देने की नाकाम कोशिश कर रहे थे....
पता लगा के ५ लीटर पेट्रोल भी डाल चुके हैं इस काम के लिए....
जाने क्या हुआ.....मैंने एक सूखी जलती हुई लकड़ी हाथ में ली...और बढ़ा दी चिता की तरफ....

चिता ने भी उसी वक़्त आग पकड़ ली....मेरे साथ साथ वो लोग भी हैरान थे...
एक दो आवाज आयीं..''भाई साहब, शायद आपकी ही इन्तजार थी इन्हें..."


लकडियाँ वाकई में गीली थीं....

मैंने जेब से १०० रूपये निकाले और अपने एक आदमी से कहा के भागकर इसकी चीनी ले आ....

चीनी आई और मैंने पूरी चिता पर बिखेर दी...

चिता अब और ठीक से जलने लगी थी...
सब कुछ ठीक ठाक जानकर मैं वापिस आफिस में आया और अपने काम में लग गया...

करीब दो -तीन घंटे के बाद . ...एक आदमी ऑफिस में आया..और बोला...

बाबूजी,
थोड़ा सा पानी भी मिलेगा......?

मैंने कहा के हाँ, किसलिए चाहिए....???

तो उसने बताया के चिता पूरी जल चुकी है.....अब चलते वक़्त उस पर छींटा देना है...
मैंने पानी की बाल्टी का इंतज़ाम किया...दिवार पर टंगे छोटे से मंदिर से उठवाकर उस में गंगाजल भी मिलाया....
जब वो उठा कर चलने लगा
तो मैंने दोबारा पूछ लिया...क्या सचमुच चिता पूरी तरह से जल चुकी है.....???

जवाब आया.....
'' हाँ, बाबूजी, शायद इसे आपके हाथ से ही जलना था...अब तो पूरा जल चुका है....."

मैंने कहा....''चलो जी...शुक्र भगवान् का....हो गया ना....?''
जवाब में उसने हाथ जोड़ लिए..


यकीन कीजिएगा.......

उस के बाल्टी उठा कर चलने के बाद..जाने मुझे क्यूँ लगा...के लाश का बाँया पाँव अभी भी कच्चा है...
माना के मैंने सारी हालत की जानकारी ले ली थी....ये भी पता था के वहाँ पर एक दो ऐसे भी हैं जो कहते हैं के हमें क्रिया कर्म के बारे में सब पता है...
और इस ने भी तो धन्यवाद सहित कह दिया था .....
के चिता जल चुकी है पूरी तरह से...


लेकिन जाने क्या था....
के मैंने अपना काम फ़ौरन बंद किया...और जल्दी जल्दी चलकर उसके पीछे पीछे वहीँ जा पहुंचा....


मेरा ख़याल सही था....

बांये पाँव तक आग पहुंची ही नहीं थी.....

उन लोगों के छींटा देने से पहले ही मैं बोल पडा...की अभी रुको....
अभी नहीं जला है पूरा जिस्म.....!

फिर उन्होंने चेक किया....बांयें पाँव को आग की लपटों छू भी नहीं पायीं थीं....

मैं खामोश खडा देख रहा था...जाने क्या सोच रहा था....
शायद भगवान् से मांग रहा था मैं...के ये ना हो..कल सुबह इस बांये पाँव को इधर रहने वाले कुत्ते मुंह में दबाये घुमते नजर आयें....

वो सब लोग तब तक कई तरकीबें आजमा चुके थे...
पर सब नाकाम ही रहीं.....
अब सब लोग मुझे देखने लगे....मुझे खुद कुछ समझ नहीं आ रहा था के क्या करना चाहिए ऐसे में...???


मेरा पूरा ध्यान उसी में लगा हुआ था...
कभी भी वास्ता नहीं पडा था ऐसी स्थति से....जाने कितना सोचने के बाद....
मैंने चिता की तरफ बढ़कर एक लकड़ी उठायी...और उसका डायरेक्शन चेंज कर दिया.....एक दूसरी लकड़ी को उठाकर अलग तरह से रखा....
अब आग बांये पाँव की तरफ भी आने लगी...अब बाँया पाँव मेरी आंखों के सामने खुले में जल रहा था...मैंने जिंदगी में पहली बार ऐसा देखा ....

उसके बाद तो जैसे भुट्टे को आग पे भूनते हैं.....

जैसा के लोगों का मानना है....शमशान में जाकर कभी भी अलग से कोई वैराग का भाव मन में नहीं आता हमारे...जितना वैराग मन में है..उतना सदा ही है...
अभी भी उलझा हुआ हूँ कल वाली बात में...
वो आवाज अब भी कान में है....
'' भाई साहेब...शायद आपकी ही इंतज़ार थी इन्हें....."









39 comments:

स्वप्न मञ्जूषा said...

कौन जाने लोग सच ही कह रहे हों.....शायद आपका ही इंतज़ार रहा हो उसे...किसी जन्म में कभी कुछ बाकि रहा होगा...
चलिए ...आपने बहुत ही अच्छा काम किया....इससे अच्छा काम कुछ हो ही नहीं सकता...किसी की अंत्येष्ठी सम्मान पूर्वक हो जाए और क्या चाहिए...
आपको नमन...!!

manu said...

अक्सर हमारी पोस्ट पर पहिला कमेंट हमारा है होता है...
आज अदा जी का है....


खैर......
पहले दुसरे से क्या फर्क पढ़ना है...
कहना ये था के इस सारे काम के होने के बाद .. हमें कई बातें सुनने को मिलीं...



आपने ऐसा क्यूं क्या....?
वो कैसा भी केस हो सकता था...आपने रिस्क क्यूं लिया....???
आपने तो ऑफिस ही अपवित्र कर दिया....साथ साथ मंदिर भी...
आपकी जॉब भी जा सकती है....!!
आपकी शिकायत की जाए.......???????

हाँ,
कर दो यार.....सबसे पहले शिकायत ही कर दो.....
और उस से भी पहले उस मंदिर को पूजना छोड़ दो...जो इस ज़रा से काम से अपवित्र हो गया......!





bas....aur naheen ab....

हरकीरत ' हीर' said...

मनु जी पहले तो आपकी ये पोस्ट पढ़ कर निशब्द सी हो गई हूँ ... ....सच में उसे आपके हाथों से ही जलना था ....शायद कोई बहुत सताया इन्सान हो जिसकी बददुआ हो अपने परिवार के लिए कि उनके हाथ से आग भी नहीं लेगा .....और आपके लिए उसका आशीर्वाद रहा हो क्या पता ....कहने वालों को कहने दीजिये आपका कुछ नहीं बिगड़ेगा ....आपने इंसानियत का धर्म निभाया ....और पोस्ट लाजवाब लिखी आपने ....किसी आप बीती को इतनी मार्मिक प्रस्तुति देना भी आसान नहीं .....!!

Sarika Saxena said...

पता नहीं क्यों रोंगटे खडे हो गये इसे पढकर...।

मनोज कुमार said...

आपने सही किया.

स्वप्न मञ्जूषा said...

हे भगवान्.. ..लोगों की सोच पर तरस आता है...
आपको कहना चाहिए था कि .....क्या मैं भगवान् से भी बड़ा हूँ कि उनको अपवित्र कर सकता हूँ....और जो भगवान् मेरे छू देने से हिल जाएँ वो आपका बेडा क्या पार करेंगे....इसलिए इनको तो आप रहने ही दो...

देवेन्द्र पाण्डेय said...

आपकी यह दरियादिली और ऑफिस के लोगों का कमेन्ट.
उफ़! अपने तो रोंगटे खड़े हो गए..!

हमारी अंतरात्मा जिस कम को करने के लिए प्रेरित करे वह कभी गलत नहीं हो सकता.
आपने अच्छा कम किया...
एक सुंदर गजल लिखने से भी अच्छा.
शायद यही कर्म हैं जो बताते हैं कि हम अभी भी आदमी हैं.

Pritishi said...

pata nahi ... kuchh samajh nahi aa raha kya kahoon ...

bus duaayein ..

vijay kumar sappatti said...

manu bhai

aaj aapne chup kara diya aur aankhe bhi bheeg uthi .. kya jeevan hai aur logo ki soch bhi kaisi hoti hai ...bahut samay pahle ek kahani padhi thi ,shayad kamleshwar ki thi , yaad nahi aa rahi hai ..ek gulzar ki poem bhi hai ...shayad...

lekin aapke is kaary se ye baat stapit ho jaati hai ki hum sab ek dusare se aatmik taur par jude hue hai , hamara sambandh ,khoon ka na hokar bhi hota hai ....bahut kuch likhne ko ji kar raha hai ..lekin ajj ki subah aapki si post ne meri bana di ..aur mere is belief me bhi jaan aa gayi ki ...duniya se abhi insaniyat khatm nahi hui hai ....

aapko pranaam ....

aapka
vijay

सीमा सचदेव said...

Manu ji aaj bahut dino nahi maheeno ke baad kisi post ko padhane kaa suavsar mila aur aapki post padhkar pataa nahi kaisa anubhav hua , haa aankhe jaroor bhar aaii aur ek ajeeb si tripati kaa bhi ahsaas hua ki duniya itani buri nahi hai jitani ham mahsoos karte hai . aapne jo kiya usake liye aapki respect aur badh gaee hamaari nazaroN me . agr nahi karte to shaayad aap apne aap ko hi koste rahte .NAV VARSH ,LOHADI,MAKAR SANKRANTI KI HAARDIK BADHAAII ....SEEMA SACHDEV

कंचन सिंह चौहान said...

अद्भुत सा अनुभव है ये तो.. जाने कौन सा रहस्य है और जाने कौन जानता है इस विषय में....

neelam said...

औरत होने के नाते कहना चाहूँ तो भी नहीं कह सकती कि वाह मनु जी आपने क्या काम किया है ,हरगिज नहीं आप कुछ भी करने से पहले अपने परिवार के बारे में सोच लिया करें आपके मनमौजी ,अड़ियल ,स्वभाव से हम सभी भली भांति परिचित हैं ,आप अपने परिवार को मद्देनजर रखते हुए आइन्दा ऐसी कोई बेजा हरक़त नहीं करेंगे , उस लाश को आप खुद न जला कर किसी और से ये काम करवा सकते थे उम्मीद है कि आपको कड़वा सच शायद सही लगे .

गौतम राजऋषि said...

"शमशान में जाकर कभी भी अलग से कोई वैराग का भाव मन में नहीं आता हमारे...जितना वैराग मन में है..उतना सदा ही है"

पूरा सार तो यही है कि जितना वैराग मन में है, उतना सदा ही है। पूरी घटना एक किसी सस्पेंस कहानी से कम नहीं है। मेरे ख्याल से कोई भी आपकी जगह होता तो यही करता, जो आपने किया। ...और मंदिर के अपवित्र हो जाने वाली बात पर ठठा कर हँस रहा हूँ। अदा जी ने सब कह ही दिया है उस बाबत।

शमशान का अपना ही रुतबा होता है सच पूछिये तो। आपकी इस घटना को पढ़कर अपने साथ शमशान से जुड़ी कुछेक घटनायें भी याद हो आयी...कभी लिखूंगा अपने ब्लौग पर आपसे प्रेरित हो।

daanish said...

ek baar phir koshish....

ab ise insaan ki majboori kaheinN
ya kamzori kaheiN,,,ya bhaagya ki vidmbanaa,,,ya na-saazgaar haalaat
kuchh bhi...lekin ek aisa mar`halaa aa hi jata hai kabhi n kabhi...jahaaN aap hairaan reh jaate haiN...kuchh kareiN,,,na kareiN...kya kareiN...kya na kareiN...
lekin Us Maalik ne aapse kayaa kuchh nahi karvaa lenaa likha hai !
aapne insaan,,,nek insaan hone ke naate apna farz nibha diyaa hai,,
aur is hadd tk wohi ja paata hai jis ka ehsaas zinda ho..andar ki soch zindaa ho....
aapke paakeeza jazbe ko salaam kehta hooN....
aur logo ka kayaa hai....
un sb ki apni soch hai...
unheiN,,,is lihaaz se,,poora haq hai kuchh b kehne ka...

daanish said...

ek baar phir koshish....

ab ise insaan ki majboori kaheinN
ya kamzori kaheiN,,,ya bhaagya ki vidmbanaa,,,ya na-saazgaar haalaat
kuchh bhi...lekin ek aisa mar`halaa aa hi jata hai kabhi n kabhi...jahaaN aap hairaan reh jaate haiN...kuchh kareiN,,,na kareiN...kya kareiN...kya na kareiN...
lekin Us Maalik ne aapse kayaa kuchh nahi karvaa lenaa likha hai !
aapne insaan,,,nek insaan hone ke naate apna farz nibha diyaa hai,,
aur is hadd tk wohi ja paata hai jis ka ehsaas zinda ho..andar ki soch zindaa ho....
aapke paakeeza jazbe ko salaam kehta hooN....
aur logo ka kayaa hai....
un sb ki apni soch hai...
unheiN,,,is lihaaz se,,poora haq hai kuchh b kehne ka...

"अर्श" said...

हतप्रभ और स्तब्ध हूँ...


अर्श

श्रद्धा जैन said...

किसी की चिता को आग देना और ऐसे समय में सहायता
आपके मन में आये भाव ......... भगवान् ने किसी की सहायता के लिए आपको भेजा और आपका भी कोई न कोई क़र्ज़ होगा जो आपने उतार दिया
हालाँकि ये घटनाएं मन को बहुत आंदोलित करती हैं
पढ़ कर मेरा मन भी बैचैन सा हो गया कौन होगा जिसके लिए रोने वाले भी सिर्फ ६ लोग ही निकले
जिसके नसीब में ठीक से अंतिम संस्कार भी नहीं
खैर जिंदगी शायद ऐसी ही है

दर्पण साह said...

मैं आया , मैंने देखा , और मज़े की बात ये की पढने से पहले ही दे चुका हूँ टिप्पणी....
पर इस बार जो बात अच्छी लगी, वो थी:

"शमशान में जाकर कभी भी अलग से कोई वैराग का भाव मन में नहीं आता हमारे...जितना वैराग मन में है..उतना सदा ही है"

दर्पण साह said...

इतनी बुझी ..मानो राम नाम के ही सत्य होने में सबसे बड़ा संदेह हो...

नाम सच्चे होते क़ाश....

चिता की तरफ बढ़कर एक लकड़ी उठायी...और उसका डायरेक्शन चेंज कर दिया...

शुक्र है की आग बची थी, जिस्म के जलने को आग ही तो चाहिए बस.
पता नहीं क्यूँ ये टांग वाला 'Part' पढ़कर ग़ालिब का शे'र याद हो आया:
जला है जिस्म तो दिल भी जल गया होगा,
कुरेदते हो क्यूँ राख जुस्तज़ू क्या है?
(बस एवें ही..)

Himanshu Pandey said...

थाह रहा हूँ उस क्षण का अनुभव ! विचार रहा हूँ उस क्षण की विचारणा का क्षण !
कैसे उठे होंगे कदम ! और फिर जब सुना होगा -
"शायद आपका ही इन्तजार था इन्हें..." - तो कैसे कैसे भाव तंतु लिपटे होंगे !

संवेदना की समझ पा रहा हूँ । आभार ।

Himanshu Pandey said...

और हाँ, ब्लॉग की पृष्ठभूमि देखकर तो कह नहीं सकता कि फ़ॉन्ट का रंग बदल दें, पर रीडर में हल्का पीला रंग पढ़ने में नहीं आता भाई !

Urmi said...

बहुत बढ़िया लगा! एक अलग सा अनुभव हुआ!

Urmi said...

आपको और आपके परिवार को वसंत पंचमी और सरस्वती पूजन की हार्दिक शुभकामनायें!

प्रदीप कांत said...

"शमशान में जाकर कभी भी अलग से कोई वैराग का भाव मन में नहीं आता हमारे...जितना वैराग मन में है..उतना सदा ही है"

सार तो यही है|

baat gambheer hai.

Kanishk said...

sahi kiyaa aapne.....

मनोज भारती said...

गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ ... चलो हम भारत देश को वस्तुत: गण के तंत्र में विकसित करें ।

मनोज भारती said...

संवेदनशील रचना ... बधाई । एक संवेदनशील व्यक्ति ही इस विषय पर इतना सटीक लिख सकता है ।

Urmi said...

आपको और आपके परिवार को गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें!

Smart Indian said...

मनु,
अजीब इत्तफाक है. (क्या है यह बताने में समय लग जाएगा इसलिए उस बात को अभी यहीं छोड़ते हैं.)
अगर अदा जी की टिप्पणी पर तुम्हारी टिप्पणी न पढता तो .मैं तो इसे बस एक कहानी ही समझ रहा था. कहाँ है तुम्हारा दफ्तर? कहीं पञ्चकुइयां रोड के आस-पास तो नहीं?

अमिताभ श्रीवास्तव said...

आपको पढा, बहुत दिनो बाद आकर। वैसे अमूमन मैं किसी टिप्पणीकार को नहीं पढता जब तक कि अपनी बात न लिख दूं किंतु आज सबको पढा। जरूरी था। सिर्फ किस्सा जान के पढना या किस्से का मर्म जानना...यह देखना चाह रहा था कि क्या सचमुच ऐसा है? खैर.. कुछ बात जो इस किस्से में घटी और कुछ जो आपने लिख दी जीवन की दार्शनिक विचारधारा है। "शमशान में जाकर कभी भी अलग से कोई वैराग का भाव मन में नहीं आता हमारे...जितना वैराग मन में है..उतना सदा ही है" यदि मैं यहां थोडा गम्भीर हो जाऊं तो वैराग को लेकर थोडा कहना चाहूंगा कि यह मन की चीज ही नहीं है। मन में वैराग जैसा कोई भाव नहीं होता, उसका स्वभाव अस्थिर या चंचल ही है। वैराग होने का तात्पर्य है आप आत्मानुभूत हो गये। यानी आपको आत्मानुभूत होने के लिये मन साधना पहली प्राथमिकता। मन सधेगा वहीं जहां साधन उपलब्ध होंगे. साधनों में एक 'श्मसान' भी होता है। खैर मैं ज्यादा ही गम्भीरता में घुसने लगा हूं शायद। फिर भी आपकी बात को आगे बढाते हुए कि "वैराग मन में है..उतना सदा ही है" किंतु हां वहां ( श्मसान में) सुप्त पडा यह भाव जाग अवश्य जाता है। फिर इतनी बुझी ..मानो राम नाम के ही सत्य होने में सबसे बड़ा संदेह हो...", यहां भी मार्के की बात कह दी। इस वाक्ये ने जीवन की सच्चाई और आपके कर्तव्य को प्रदर्शित किया है।

manu said...

@ स्मार्ट इन्डियन....
नहीं अनुराग सर..हमारा ऑफिस पन्च्कुइयान रोड के आस पास नहीं है...

वो अजीब इतफाक जान्ने कि इच्छा है..जो आप कहते कहते रह गए....

@ अमिताभ जी...
शायद पहली बार आपको हिंदी में टिपण्णी लिखते देखा है हमने... ..
पढ़ कर कितनी ख़ुशी हो रही है..बतायी नहीं जा सकती...

सही कहूं...आपकी और दर्पण कि रोमन से दुखी थे हम....

:)
:)

अमिताभ श्रीवास्तव said...

मनुजी,
सबसे पहले धन्यवाद.
जी शौक हमें भी है चित्रकारी का किन्तु क्या करे समय नहीं मिल पाता, जब भी मिलता है कुछ उकेर लेते है.
और हां , हिन्दी में ही लिखने की सोचते है मगर जब ऑफिस में होता हूँ तो रोमन में ही लिखना पड़ता है. ..
vese bhi aapko roman me likhe padhhne ki aadat ho gai he so sochta hu..kuchh isame bhi likh du..darasal roman me hindi padhhne me jyada ekaagra hone ki jaroorat ho jaati he yaani, is bahaane aapki nazar ham par aouro se kuchh jyada rahati he..yah hamara soubhagya huaa ... he na.//

अमिताभ श्रीवास्तव said...

और अगर मेने यह सोचा भी कि अपने चित्र बना कर ब्लॉग पर रचना के साथ लगाऊ तो सिर्फ आपके कारन, आपका ब्लॉग प्रेरणा बन मुझे हमेशा ऐसा करने के लिए कहा करता था. और एक दिन एसा हुआ भी. जो आपके सामने है. चित्र अच्छे बनता हूँ या नहीं, पता नहीं, बस बनाता हूँ..ठीक अपनी रचनाओ कि तरह. ..

Kulwant Happy said...

जिस भी सज्जन पुरुष ने आपको मेरा पता दिया उसके लिए उनका धन्यवाद। इसलिए नहीं कि उन्होंने आपको मेरे ब्लॉग तक भेजा, बल्कि इसलिए उनकी बजाय से मैं एक शानदार ब्लॉगर से मिल लिया, बस ब्लॉगर से नहीं।

kshama said...

Is anubhav ko padhana ek goodh anubhutee de gaya...

Ria Sharma said...

Kya likha ye Manuji..aap ne jarur isa kiya hoga ..jitna main aapko janti hun.......tussssi bas kamaal ho ji
aaj regards

तपन शर्मा Tapan Sharma said...

aaj padha hai manu ji...
bahut time ke baad kuchh padhne ka time mila.. office mein.. :-)

jo bhi kiya achha kiya... job ka kya hota us samay nahin socha jaata..
koi regret nahin hona chaahiye...

Anonymous said...

मनु!
लोगों के मुंह से अक्सर सुनते हैं 'दुनिया बड़ी बेकार है,इंसानियत हेई नही रही,प्यार ही नही है.अच्छा करो कोई नही मानता,जानता .
हा हा हा
जानते हो मैं तब लोगों को क्या कहती हूँ,दुनिया चंद ही सही अच्छे लोगों के कारण चल रही है और चलती रहेगी.
ये चंद लोग इस धरती की ख़ूबसूरती हैं.
और आज पढ़ कर अच्छा लगा ईश्वर ने मुझे एक ऐसे ही अच्छे इंसान से मिलने,पढ़ने का मौका दिया.
डरके,घबराके अच्छे काम करना छोड़ देंगे तों एक इंसान घट जायेगा न अच्छों की बिरादरी से.
इस राह मे दिली सुकून ही सुकून है ,लगे रहो.
अच्छे इंसानों की बहुत जरूरत है हम सभी को बाबा !

manu said...

इंदु जी का कमेन्ट डिलीट हो गया था..अपने आप...



मनु!
लोगों के मुंह से अक्सर सुनते हैं 'दुनिया बड़ी बेकार है,इंसानियत हेई नही रही,प्यार ही नही है.अच्छा करो कोई नही मानता,जानता .

हा हा हा
जानते हो मैं तब लोगों को क्या कहती हूँ,दुनिया चंद ही सही अच्छे लोगों के कारण चल रही है और चलती रहेगी.
ये चंद लोग इस धरती की ख़ूबसूरती हैं.
और आज पढ़ कर अच्छा लगा ईश्वर ने मुझे एक ऐसे ही अच्छे इंसान से मिलने,पढ़ने का मौका दिया.
डरके,घबराके अच्छे काम करना छोड़ देंगे तों एक इंसान घट जायेगा न अच्छों की बिरादरी से.

इस राह मे दिली सुकून ही सुकून है ,लगे रहो.
अच्छे इंसानों की बहुत जरूरत है हम सभी को बाबा !