बे-तख़ल्लुस

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'बेतख़ल्लुस' हूं मुझे कोई भी अपना लेगा

manu

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Monday, April 20, 2009

ghazal........

खाली प्याले, निचुड नीम्बू, टूटे बुत सा अपना हाल

कब सुलगी दोबारा सिगरेट ,होकर जूते से पामाल


रैली,परचम और नारों से कर डाला बदरंग शहर

वोटर को फिर ठगने निकले, नेता बनकर नटवरलाल


चन्दा पर या मंगल पर बसने की जल्दी फिक्र करो

बढती जाती भीड़, सिमटती जाती धरती सालों साल


गांधी-गर्दी ठीक है लेकिन ऐसी भी नाचारी क्या

झापड़ खाकर एक पे आगे कर देते हो दूजा गाल


यार, बना कर मुझको सीढी, तू बेशक सूरज हो जा

देख कभी मेरी भी जानिब,मुझको भी कुछ बख्श जलाल


उनके चांदी के प्यालों में गुमसुम देखी लालपरी

अपने कांच के प्याले में क्या रहती थी खुशरंग-जमाल

16 comments:

दिगम्बर नासवा said...

चन्दा पर या मंगल पर बसने की जल्दी फिक्र करो
बढती जाती भीड़, सिमटती जाती धरती सालों साल
खूबसूरत शेर..........
सारे शेर लाजवाब है........पूरी ग़ज़ल मस्ती भरी.........मज़ा आ गया

"अर्श" said...

दिल की चोटों ने कभी चैन से रहने ना दिया जब चली सर्द हवा मैंने तुझे याद किया,,, इसका रोना नहीं क्यूँ तुने किया दिल बर्बाद ,इसका गम है के बहोत देर में बर्बाद किया ...


बहोत ही बढ़िया ग़ज़ल कही आपने मौ भाई ..मज़ा गया जनाब...

बधाई..
अर्श

हरकीरत ' हीर' said...

खाली प्याले,निचुडे निम्बू ,टूटे बुत सा अपना हाल...

वाह ...जी वाह...मनु जी ये नयी नयी उपमाएं ....क्या बात हो गयी....??

चंदा पर या मंगल पर बसने की जल्दी फिकर करो....

आप्जब अपनी बुकिंग करवायें तो मेरी भी साथ करवा लीजियेगा.....!!

उनके चांदी के प्यालों में गुमसुम देखी लाल परी
अपने कांच के प्याले में क्या रहती थी खुशरंग - जमाल

इस बार तो कुछ नए तेवर ...चुनावी रंग में लिपे-पुते ,कांच के प्यालों में लालपरी से टकराते....वाह जी वाह...बहोत खूब.....!!

Ria Sharma said...

वाह मनुजी
आज के हालात में ,राजनीतिक दांव -पेंच में ..

रैली,परचम और नारों से कर डाला बदरंग शहर
वोटर को फिर ठगने निकले, नेता बनकर नटवरलाल

बहुत खूब !!!

Urmi said...

पहले तो मै आपका तहे दिल से शुक्रियादा करना चाहती हू कि आपको मेरी शायरी पसन्द आयी !
आपने बिल्कुल सही फ़रमाया मै पैन्टिग करती हू और सोचा कि शायरी के साथ साथ अपनी पैन्टिग भी लगाऊ तो शायद सभी को अच्छा लगे !
बहुत बढिया!! इसी तरह से लिखते रहिए !

Alpana Verma said...

चन्दा पर या मंगल पर बसने की जल्दी फिक्र करो
बढती जाती भीड़, सिमटती जाती धरती सालों साल

बहुत खूब!
सभी शेर अच्छे लगे.
ग़ज़ल आज कल की सामाजिक और पर्यावरण आदि की बदलती परिस्तिथिओं से प्रेरित हो कर लिखी गयी है .

daanish said...

रवायती और जदीद ग़ज़ल में जो फ़र्क़ नुमायाँ
रहते हैं , उन सब से बखूबी करवा दिया है आपने
अपनी इस शानदार तहरीर के ज़रिये से .....
आम तौर पर ऐसे चुनिन्दा ख़यालात ko
खुली नज़्म में ही बाँधने की कोशिशें की जाती हैं ...
लेकिन ये मनु "बेतखल्लुस'
की ग़ज़ल जो ठहरी .........

कामयाब कोशिश......कामयाब ग़ज़ल .......

"जज़्बा बिलकुल गौर-तलब है,
शाईस्ता उनका इज़हार ,
जितने सुन्दर सुर हैं इसमें,
उतनी ही उम्दा है ताल .."

---मुफलिस---

गौतम राजऋषि said...

मनु की इसी बेतखल्लुसी के तो हम दीवाने हैं लोगों...
क्या लिक्खे हो सरकार कि हम तो बिछ गये...
"खाली प्याले निचुड़े नीम्बू" और जूते से पामाल हो फिर से सुलगी सिगरेट----उफ़्फ़्फ़्फ़ !!!
हर शेर लाजवाब मनु जी
कमबख्त ढ़ंग से तारीफ़ भी नहीं कर पा रहा हूं मैं

जूते से पामाल हुई सिगरेट को फिर से सुलगा कर
’बेतख्लुस’ शेर कहे जब, लोग कहे बस "हाय कमाल"

दर्पण साह said...

खाली प्याले, निचुड नीम्बू, टूटे बुत सा अपना हाल
कब सुलगी दोबारा सिगरेट ,होकर जूते से पामाल


bahut umda aur jaisa ki harkirat ji ne kaha...

"nai upma"

waise to sabse badhiya baat hai ki apki nazm hum phone main sabse pehle hi sun lete hai aur daad bhi de dete hain...//par blog main sabse pehle daad dene ki tamanna dil main hi rahegi lagta hai//"cheating" ka bhi koi fayada nahi ho raha //hamesha mufils ji aur gautam ji se haar jaata hoon//abki baar tagdi match fixing karni padegi...//kyun manu ji ? :))

meri fav line:
उनके चांदी के प्यालों में गुमसुम देखी लालपरी
अपने कांच के प्याले में क्या रहती थी खुशरंग-जमाल //

bahut pyara sher...
mufilisi ke maze ko arabpati kya jaanein..

ताऊ रामपुरिया said...

चन्दा पर या मंगल पर बसने की जल्दी फिक्र करो
बढती जाती भीड़, सिमटती जाती धरती सालों साल

भाई चांद पर ताऊ का कब्जा है. और ताऊ ने वहां कालोनी काट रखी है..सभी ब्लागर्स को एक क लाख स्केवेयर फ़िट के प्लोट दे रखे हैं. सो वहां बसने मे कोई दिक्कत नही आनी चाहिये.

वहां चांद पर भाटिया (राज भाटियाजी) जी का चाट का ठेला भी लगता है और ताऊ की चंपाकली भैंस आजकल वहीं रहती है.

वहां बसने मे कुछ दिक्कत आये तो ताऊ को बताना.

रामराम.

vijay kumar sappatti said...

manu ji
deri se aane ke liye maafi , main tour par tha par aane ke baad jo padha usne tabhiyat khush kar di hai ..

padh kar maza aa gaya ..
jiyo saheb aapne to mauzuda haalat par bahut behtar likha hai ..

dil se badhai ..

aapka
vijay

अमिताभ श्रीवास्तव said...

बाद चुटकी के ...आज के हालत पर जो आपने चुटकी ली है, भाई बहुत जोर से ली है.
"यार, बना कर मुझको सीढी, तू बेशक सूरज हो जा
देख कभी मेरी भी जानिब,मुझको भी कुछ बख्श जलाल..."
आपकी बेतखल्लुसी ने सचमुच दीवाना बना दिया है.
गौतमजी का आपके ऊपर लिखा, मै चुरा कर आपको ही 'टाप' देता हूँ.
जूते से पामाल हुई सिगरेट को फिर से सुलगा कर
’बेतख्लुस’ शेर कहे जब, लोग कहे बस "हाय कमाल"

jamos jhalla said...

Aam aadmee ki chintaa,pareshaaniyon ko aapne dilkash alfaaz diye hain.Netaa beshak mantri ban jaaye magar santri ko naa bhool jaai .saadhuvaad.jhallevichar.blogspot.com

Yogesh Verma Swapn said...

khubsurat gazal, umda sher, badhai sw
eekaren.

Shamikh Faraz said...

manu ji aapki shayeri ki tareef karne k lie to kabhui kabhi mujhe lafz hi nahi milte. kya kahu.

Shamikh Faraz said...

manu ji aapse guzarish hai k aap mere blog par b aate rahe.