मुद्दत बाद आज शाम टी वी पर न्यूज़ देखने का वक़्त मिला या समझिये के मूड हुआ । समझ नहीं आया के आप सब लोग कैसे झेल जाते हैं इन बुद्धिजीवियों को ।
लगभग हर न्यूज़ चैनल पर प्राइम टाइम पर तकदीर का हाल बताने वाले बाबाओं की फिजूल उपस्थिति के समर्थन में पर एक साहब ने कहा "जब हर अखबार में राशिफल का कालम आता है तो न्यूज़ चैनलों पर भविष्यवक्ताओं पर आपत्ति क्यूँ हो ?''
कोई इनको समझाए के अखबार में क्या पढ़ना है और क्या नहीं ये हर पाठक के हाथ में होता है, उसे मालूम होता है कि किस पृष्ठ और किस कालम पर अपना ''कीमती-समय'' बर्बाद करना है और किस पर नहीं । और वो इसपर दो मिनट भी बेकार के खर्च करने से बाख सकता है ।
जबकि यदि मैं सवेरे ऑफिस भागते हुए जल्दी में आधे घंटे भी जितने खबरी चैनल पलटता हूँ, उन सब पर सितारे देखने वाले काबिज़ रहते हैं ।
ज़रा बताइये तो कि इन दोनों बातों का आपस में क्या मेल है
सो एक संत जी ने कहा कि ''मैं न तो आसाराम का प्रवक्ता हूँ, न समर्थक, और ना ही विरोधी हूँ। मैं तो केवल कृत्य का विरोधी हूँ, व्यक्ति का नहीं"
………………।
क्या 'व्यक्ति' के बिना 'कृत्य' होना संभव है। .???
1 comment:
Pata nahi in 'baba'onpe shraddha rakhne wale kabhi baaz aayenge bhee ya nahi?Uf!
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