बे-तख़ल्लुस

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'बेतख़ल्लुस' हूं मुझे कोई भी अपना लेगा

manu

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Saturday, July 10, 2010

शोला-ऐ-ग़म में जल रहा है कोई
लम्हा-लम्हा पिघल रहा है कोई

शाम यूं तीरगी में ढलती है
जैसे करवट बदल रहा है कोई

उसके वादे हैं जी लुभाने की शय
और झूठे बहल रहा है कोई

ख्वाब में भी गुमां ये होता है
जैसे पलकों पे चल रहा है कोई

दिल की आवारगी के दिन आये
फिर से अरमां मचल रहा है कोई

मुझको क्योंकर हो एतबारे-वफ़ा
मेरी जाने-ग़ज़ल रहा है कोई

29 comments:

Sunil Kumar said...

उसके वादे हैं जी लुभाने की शय
और झूठे बहल रहा है कोई
achha sher badahi

Jandunia said...

शानदार पोस्ट

kshama said...

Hameshaki tarah sabhi ashaar khoobsoorat hain!

समयचक्र said...

ओह क्या बात है... बहुत बढ़िया प्रस्तुति...

Anonymous said...

ख्वाब में भी गुमां ये होता है
जैसे पलकों पे चल रहा है कोई
वाह मनु !क्या खूब कहा है 'ख्वाब में भी गुमां ये होता है
जैसे पलकों पे चल रहा है कोई'
एक एक शे'र गजब पर 'ये' लाजवाब.
इतने दिनों बाद तुम्हारी नज्म पढ़ कर बहुत अच्छा लगा. कुछ शे'र तो सचमुच 'शेर' है सबके सब सेर पर सवा सेर हैं.अच्छा लिखते हो. ईमानदार अभिव्यक्ति झलकती है. बधाई

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' said...

ख्वाब में भी गुमां ये होता है
जैसे पलकों पे चल रहा है कोई
मनु जी...वाह वाह
शायद नाकाफ़ी है
सच में कमाल का शेर हुआ है..
मुबारकबाद.....
इस ज़ाबिये से कहा गया.....
कोई शेर याद नहीं आ रहा है...

इस्मत ज़ैदी said...

ख्वाब में भी गुमां ये होता है
जैसे पलकों पे चल रहा है कोई

बहुत ख़ूब!

स्वप्न मञ्जूषा said...

Khoobsurat to thi hi ye gazal..
koi shaq ab bhi nahi hai..

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...

मनुजी

दिल की आवारगी के दिन आये
फिर से अरमां मचल रहा है कोई


अभी हवा ख़राब चल रही है न ।

ख़ूबसूरत शे'र है ।
अच्छी ग़ज़ल के लिए बधाई है , स्वागत है !

शस्वरं पर भी आपका हार्दिक स्वागत है , आइए…

- राजेन्द्र स्वर्णकार
शस्वरं

Udan Tashtari said...

बहुत शानदार मनु!

कंचन सिंह चौहान said...

is ghazal ka har sher sundar... badhai, badhai..

सहसपुरिया said...

VERY GOOD

राजकुमार सोनी said...

क्या बात है जनाब
मजा आ गया.

नीरज गोस्वामी said...

दिल की आवारगी के दिन आये
फिर से अरमां मचल रहा है कोई

सुभान अल्लाह मनु जी...वाह...क्या ग़ज़ल कही है....बेमिसाल...दाद कबूल करें...
नीरज

हरकीरत ' हीर' said...

शोला-ए-गम में जल रहा है कोई
लम्हा-लम्हा पिघल रहा है कोई

ओये होए ...मनु जी ...क्या बात है .....!!

शाम यूँ तीरगी में ढलती है
जैसे करवट बदल रहा है कोई

बहुत खूब.....!!

उसके वादे हैं जी लुभाने की शय
और झूठे बहल रहा है कोई

बड़ा ही मासूम है ....बहलने वाला......!!

ख्वाब में भी गुमां ये होता है
जैसे पलकों पे चल रहा है कोई

लाजवाब........!!

दिल की आवारगी के दिन आये
फिर से अरमां मचल रहा है कोई

नहीं आती तो नहीं आती जब आती है तो कयामत ढाती है ........आपकी पोस्ट ....!!

Ria Sharma said...

दिल की आवारगी के दिन आये
फिर से अरमां मचल रहा है कोई

khabardaar Manuji ..koi avaragardi nahii....bas subah ho ya shaam ..kaam hee kaam ...:))

chaliye uparwala aapko khoob vakt de esee he umda ghajal likhne ke liye .:)

देवेन्द्र पाण्डेय said...

बेहद खूबसूरत गजल।
ख्वाब में भी गुमां ये होता है
जैसे पलकों पे चल रहा है कोई
..वाह ! क्या शेर है! बहुत दिनों के बाद आपने एक अच्छी गजल पोस्ट की...आभार।

Avinash Chandra said...

उसके वादे हैं जी लुभाने की शय
और झूठे बहल रहा है कोई


ख्वाब में भी गुमां ये होता है
जैसे पलकों पे चल रहा है कोई

behad khubsurat, behad meethi

daanish said...

ख्वाब में भी गुमाँ ये होता है
जैसे पलकों पे चल रहा है कोई

बहुत ही नफ़ीस और शाईस्ता शेर कह दिया गया है,, सच !
ऐसी शिगुफ्त्गी आज कल के सुखन से तो मानो गायब ही हो गयी है

और
क्या ऐसे नहीं हो सकता.... !?!

क्यूं न हो मुझको ऐतबार-ए-वफ़ा
मेरी जान-ए-ग़ज़ल रहा है कोई

manu said...

क्यूँ नहीं हो सकता हुज़ूर...

ऐसे भी हो सकता है...

और जो फर्क आता है मायने में..एक वक़्त के बाद उसका बदलना भी कोई मायने नहीं रखता...

हरकीरत ' हीर' said...

कार्टून भी अच्छा बन पडा है...

अब आवाज़ भी बता दें कैसी है ......?

गौतम राजऋषि said...

"उसके वादे हैं जी लुभाने की शय
और झूठे बहल रहा है कोई"

सोच कर मुस्कुरा रहा हूँ कि ये शेर कहीं मुझ पर निशाना तो नहीं है। :-)

कश्मीर में वापस..उधर रुकना नहीं हुआ कि छुट्टी बीच में ही रद्द हो गयी थी वर्तमान हालात को देखते हुये।

मनोज भारती said...

मनु जी ...बेहतरीन गजल !!!

manu said...

kyaa karein is ghazal kaa....!!

हास्यफुहार said...

ग़ज़ल क़ाबिले-तारीफ़ है।

Nitikasha/ Dr Nutan said...

ख्वाब में भी गुमां ये होता है
जैसे पलकों पे चल रहा है कोई
..vaah kya baat kahi manu ji... bahut sundar

Satish Saxena said...

"दिल की आवारगी के दिन आये
फिर से अरमां मचल रहा है कोई..."

क्या क्या याद दिला देते हो यार ....खूबसूरत रचना !
शुभकामनायें !

श्रद्धा जैन said...

Dil ki aawargi ke din aaye....... aha kya baat hai

संजय भास्‍कर said...

मनु जी ...बेहतरीन गजल !!!