इक अदा-ऐ-जानां थी , इज़हार समझे हम जिसे
अपनी बीनाई अजब है, शक्ल या इस दह्र की
गुल न था, गौहर था, अब तक खार समझे हम जिसे
तू हमारी तरह मौला, बख्श उनकी भी खता
फिक्रे-दीं उनका था वो, व्यौपार समझे हम जिसे
मुश्किलें वो जीस्त की लाजिम थी सेहत के लिए
जीने का सामां वो ही था, बार समझे हम जिसे
और खुल निकले दहाने, ज़ख्मों के हैरत से, हाय..!
ठहरा वो ही चारागर, बीमार समझे हम जिसे
16 comments:
"मुश्किलें वो जीस्त की लाजिम थीं सेहत के लिए....."...वाह....ये एक शेर ही नहीं पूरी ग़ज़ल के अशआर बार बार तालियाँ बजाने को मजबूर कर रहे हैं...बहुत दिनों बाद आये हैं आप अपनी ग़ज़ल के साथ लेकिन क्या ग़ज़ब की ग़ज़ल लायें हैं वाह...आपके देरी से आने की वज़ह से ज़ेहन में आये सारे गिले शिकवे दूर हो गए...
नीरज
kya bat hai..bahut hi sundar..
Kaisee vidambana hai yah...wahee charagar niklaa...jise beemaar samajh baithe..!
बहुत उम्दा!!
sundar ati sundar
arganikbhagyoday.blogspot.com
पूरी ग़ज़ल बहुत खूबसूरत...!
हमें तो ग़ज़ल की तारीफ करने की तमीज नहीं है..लेकिन जितनी भी समझ है ...उससे लगा दिल की बात कहने में आप क़ामयाब हुए हैं...
शुक्रिया...!
मुश्किलें वो जीस्त की लाजिम थी सेहत के लिए
जीने का सामां वो ही था, बार समझे हम जिसे
बहुत ख़ूब!
बिल्कुल खरी और सच्ची बात कही है
अगर इन मुश्किलों को बार न समझें तो ज़िन्दगी बहुत आसान हो जाए
मुश्किलें वो जीस्त की लाजिम थी सेहत के लिए
जीने का सामां वो ही था, बार समझे हम जिसे
बहुत ख़ूब!
बिल्कुल खरी और सच्ची बात कही है
अगर इन मुश्किलों को बार न समझें तो ज़िन्दगी बहुत आसान हो जाए
था ख्याल अपना फक़त वो , प्यार समझे हम जिसे
इक अदा-ऐ-जानां थी , इज़हार समझे हम जिसे
मनु जी,
जिस गहराई के साथ आप लिखते हैं...
वो सीधा दिल में उतर जाता है.
बढ़िया ग़ज़ल!
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.....मुश्किलें वो जीस्त की लाजिम थी सेहत के लिएजीने का सामां वो ही था, बार समझे हम जिसे"
मनुजी,
2 जून के बाद 28 जून तक का 26 दिनी गेप...???गेप जब भी भरती है नये अन्दाज़ और खूबसूरत अन्दाज़ में भरती है। मुश्कीले......, जीवन की सेहत का हमदर्द हैं। जैसे वो एक विज्ञापन आया करता था, हमदर्द का टॉनिक सिंकारा,..ये वही सिंकारा है। इन दिनों हम भी इसी सिंकारे से सेहतमन्द हैं...।
आपकी कलम..आपके विचार..जीवन के अनुभवों उनके रूप रंगों को बखूबी स्याही में (कप्युटर्कृत) उतार कर पेश करती है।
bahut dino baad kalam chalii Manuji .vakt nikala to khoob nikala..jai ho !
bahut dino baad kalam chalii Manuji .vakt nikala to khoob nikala..jai ho !
Der aaye durust aaye.
था ख्याल अपना फक़त वो , प्यार समझे हम जिसेइक अदा-ऐ-जानां थी , इज़हार समझे हम जिसे
wallllaaaaaaaaah
chaliye der se hi sahi kuch to samjhe HUM
HAHAHAHAHAHAHAHAHAHAHAHAHAHAHAH
नीलम जी के अंदाज में हम भी कहे देते हैं ...वल्लाहssssssssss
जबरदस्त मतला बुना है मनु जी। और इस आखिरी शेर के मिस्र-उला का ये बेरहम "हाय" तो उफ़्फ़्फ़्फ़। इस एक शेर पे जी चाहता है दौड़ कर आपको गले से लगा लूं।
वल्लाह...एक बार फिर से :-)
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