''तो.....??''
''तो..!!!!!!!!!!!!!
...अरे कुछ नहीं...बस बता रहे हैं...कि आज आठ..."
उसकी मुस्काती आँखों में और भी मुस्कराहट भर गयी...और पास खड़ी पारुल को आँखों में और भी सस्पेंस...नन्ही पारुल ने पहले हमें देखा ..फिर एकदम उसी नज़र से उसे....और उसने झुक कर उसके कान में, शायद हमें सुनाकर कहा...''आज के दिन तेरे मामा की सगाई हुई थी..''
''हाँ, हमारी अकेले की सगाई हुई थी आज...तुम्हारी थोड़े ही हुई थी.....!"
''हाँ जी, हमने भी तो पारुल से यही कहा है के आज तेरे मामा की सगाई हुई थी...''
राम जाने...कब सुधेरेंगे हम....या कब सुधरेगी वो...
अब पारुल कि आँखों में शरारत देखते ही हमें होश आया....और हमने कुछ और ज़्यादा जल्दी दिखाते हुए श्रीमती जी से कहा..
''थोड़ा जल्दी कर लो....हम पहले ही लेट हैं..''
हमारे इतना कहते ही उसने और जल्दी दिखाई और जाने कितना उतावलापन मुस्काती आँखों में समेटे साथ चलने के लिए बाईक के साथ में आ खड़ी हुई....
''अरे रुको...ऐसे मत बैठो...वैसे बैठो..जेंट्स कि तरह ...! दोनों पाँव एक तरफ किये तो हम से बैलेंस ठीक से नहीं बनता...खामख्वाह कहीं तुम्हें गिरा गिरू देंगे...''
उसने धीरे से कान में कहा...'' यहाँ तो हम ऐसे ही बैठेंगे...चाहे आप गिरायें चाहे जो करें...आखिर अपना मुहल्ला है , कोई क्या कहेगा...?
हाँ, बाहर निकलकर जैसे कहेंगे वैसे बैठ जायेंगे....''
''अरे, तो क्या मुहल्ला ये भी बतलाता है कि बाईक पर किसे, कैसे बैठना है...? और कहीं चोट फेट लग गयी तो क्या मुहल्ला....???? "
'' फ़ालतू कि बात मत करो...कहा ना...बाहर निकलकर वैसे बैठ जाऊंगी...!!! "
अपनी बीस साल की मैरिड लाइफ , और कुल जमा तीन महीने की ''ड्राईविंग-लाइफ'' में परसों पहला मौक़ा था इस तरह से साथ साथ जाने का..
इस में भी मुहल्ला बीच में आन टपका....
खैर ,
बाहर मेन रोड पर निकलकर श्रीमती जी हमारी मनचाही मुद्रा में बैठने को राजी हुईं... और उन्हें मनचाहे पोज में आते ही हमने बाईक के लेफ्ट वाले शीशे का डायरेक्शन ट्रैफिक की तरफ से हटाकर अपुन दोनों के मुखमंडल की तरफ घुमा दिया.....अभी नैन-मटक्का शुरू ही हुआ था कि बायें से ब्लू-लाईन बस का तेज..अंतिम वार्निंग वाला होर्न सुनाई दिया.और हमें एक आदिकालीन...रीतिकालीन कवि की ....ना जी..उस समय तो समकालीन ही था , वो मशहूर लाईने याद आ गयीं...
पानी करा बुलबुला, अस माणूस की जात..
देखत ही छिप जाएगा, ज्यूँ तारा परभात..
............................और..............
और हमने वापिस बाईक के शीशे का मुंह उसकी पुरानी पोजीशन पर कर घुमा दिया....अब शीशे में चंद्रमुखी के स्थान पर वही उबाऊ ट्रैफिक नज़र आ रहा था ....
हटाने से पहले हम उसकी तरफ देख कर बुदबुदाए थे....'' बाकी सब बाद में..सबसे पहले सेफ्टी है..."
अभी भी उस चेहरे पर दमकती खुशियाँ हमारी आँखों में बंद थीं.....एक बेहद मामूली गड्ढे को देखकर हमने जोर से ब्रेक लगाए...एक छोटी सी चीख सुनाई दी कानों में...अगर ये ब्रेक नहीं लगता तो ये चीख काफी ऊँची हो सकती थी..
ज़िन्दगी के हर ऊँचे नीचे रास्ते में उसने कंधे से कंधा मिलाकर साथ दिया है हमारा...हर हाल में..हर घडी में..हर भले बुरे वक़्त में सहारा दिया है...ये बात और के अब दिल्ली के उबड़ खाबड़ रास्तों पर चलते वक़्त उसकी हालत खराब हो जाती है....अपने दायें काँधे पर नर्म हाथ का हल्का सा दबाव महसूस हुआ ,
हम जानते हैं कि ये दबाव उसका शुक्रिया है.. उस छोटे से गड्ढे का ध्यान रखने के लिए...उसे जोर से लगने वाले हिचकोले से बचाने के लिए..
आज वो बहुत खुश है...उसे कोई परवाह नहीं के अस्पताल में किस टेस्ट की क्या रिपोर्ट आयेगी...कौन सी नई बीमारी की पोल खुलेगी....क्या होगा...उसे कोई मतलब नहीं....
कान में धीरे से फुसफुसाहट हुई....''आज हम पहली बार लॉन्ग-ड्राइव पर जा रहे हैं...''
''हाँ,..पर ...क्या अस्पताल जाना भी तुम्हारे लिए लॉन्ग-ड्राइव की मस्ती है..?''
काँधे पर फिर एक हल्का सा दबाव पड़ता है ..और हम फिर शीशे का डायरेक्शन ट्रैफिक से हटा कर हम दोनों के चेहरों कि तरफ कर देते हैं.....
पानी केरा बुलबुला.....!!
नहीं....!!!
पास से एक थ्री-व्हीलर गुजरा है लता की आवाज़ में डूबा...
कह दो बहारों से आयें इधर...
उन तक उठ कर हम नहीं जाने वाले....
34 comments:
मनु जी ,
बहुत बढ़िया ,
भावनाओं का सुंदर चित्रण ,सच है कभी कभी छोटी छोटी ख़ुशियां हमें वो एह्सास दे जाती हैं जिन का कोई मोल नहीं होता.
बधाई के पात्र हैं आप
कितनी सहजता से भावनाए व्यक्त कर दी बहुत खूब
कुछ कहूँगा विश्वास करेंगे?
ब्लॉगजगत....
नहीं नहीं !! साहित्य जगत की समकालीन सर्वश्रेष्ठ कहानियों, संस्मरणों में से एक.
बहुत दिनों से...
....खैर छोड़ो !!!
शायद इस नए घर के वास्तुशास्त्र -वास्त्र में दिक्कत है.
कई बार पढ़े जाने योग्य और उसके बाद सहेजे जाने योग्य...
Ek sawal hai?
Aap kitna Padhein hain?
-John !
वाह वाह मनु जी !!
अब आप आ गए हैं अपने फॉर्म में...बस मज़ा आ गया जी इसे पढ़ कर....
मन के सारे भाव किस कदर बिखरे हैं कागज़ ? पर....
ईश्वर आपकी ये ड्राइव लॉन्ग ..से लोंगर करे...
सच....सबकुछ सच...
बहुत बधाई आपको...
अरे रुको ऐसे मत बैठो वेसे बैठो जेंट्स की तरह... कितने शर्मीले भाव से आपने कहे होंगे झिझकते हुए भी शायद........
फिर शीशे का डाइरेक्शन चेंज ... हुन्म्म्मम्म
और शुक्रिया अदा करने का ये अंदाज़........गहरी सांस जैसी सुकूनियत हिया ...
फिर दिल्ली का उबड़ खाबड़ रस्ते ....
और लॉन्ग ड्राईव ... चेकअप का रिजल्ट लेने जा रहे थे...
तिन दिन पहले ही तो हमारी बात हुई थी उनकी तबियत के बारे में ...
सच में ऐसा संस्मरण .... शायद ही कहीं पढ़ा हूँ ... हो सकता है नहीं भी ...
याद आ गया खाली प्याले निचुड़े नीबू.. :)
अर्श
अब ऐसी जबरदस्त पोस्ट पे क्या टिपण्णी करें...आपकी लेखनी को सलाम करते हैं...'
नीरज
सुखद , सहज, सुलभ, सौम्य, सुमुधुर ...
ऐसे प्यारे-प्यारे नायाब क़ीमती लम्हों को
जी लेना,,,,.
मानो,,,इक ज़िंदगी जी लेना...
आप दोनों की इन मुस्कराती खुशियाँ
बस बढ़ती ही रहें....
हम सब की दुआएं
हमेशा हमेशा हमेशा आपके साथ हैं
वैसे भी भाभीजान उमा
(वही,,,आपकी चन्द्रमुखी) को
हमेशा एक जज़्बे के साथ ही देखा है मैंने
वो जज़्बा,,,
जो ज़िंदगी की दुश्वारियों को भी
चुनौती दे सकता है,,,
wo जज़्बा,,,jo वक़्त को भी
कहना मान लेने पर मजबूर कर दे ....
हालांकि,,
दर्द के लम्हात भरपूर इम्तिहान ले रहे हैं उसका
लेकिन..
हिम्मत और हौसले के उस मुजस्सिमे को सलाम
अपनी उस अनुजा,,,
छोटी-सी बहना को ढेरों आशीर्वाद
वो भी पता नहीं किस टेस्ट में क्या रिपोर्ट निकलेगी ......
कुछ स्पष्ट नहीं समझ पाई ....
आठ तारीख को आप बहार जा रहे हैं ....
मामा की सगाई भी इसी दिन हुई है .....
हास्पिटल जा रहे हैं .....
रिपोर्ट का कुछ पता नहीं क्या निकलेगा .....
क्या हुआ है उमा जी को .....???
सब ठीक तो है न ....???
अपने अन्दर दोबारा घटित होती है वो सारी घटनायें जो कलमबद्ध होने को होती है। और जब कलम बद्ध हो जाती है तो फिर से दृश्यमान हो उठती हैं। इस बार बहुत सी बातें घिर घिर कर आती हैं। आगे-पीछे तमाम तरह की,.. जिसमें भावी शंकायें-आशंकाये, दुख-सुख जैसी कई तरह की बदलियां घुमडते आती हैं। बदली संग कुछ बून्दे भी होती हैं जिसमे हम भीगते है, भीग कर एक हल्का सा संतोष खींच आता है। मानों हमने अपना दुख रीलीज़ कर दिया हो। उफ्फ..कैसी मानवीय रचना, अद्भुत होता है जीवन भी।
रचना के उद्गम के स्त्रोत के बारे में मुझे कुछ नहीं पता, किंतु जितना इससे जाना, शायद जाना है आपको, आपकी संगीनी को। चूंकि 'संगीनी' है तो साथ कैसे छूट सकता है। जिन्दगी के उबड-खाबड रास्ते हों या सीधे-सपाट से..., लांग ड्राईव है। पूरे जीवनभर...इस लांग ड्राईव में कोई रुकावटे न हो, सिर्फ आनंद हो, बाइक हो, और मिरर आपकी तरफ ही मुडा हो, ट्रेफिक जीवन का राग है, चलता रहेगा जी। बडे बडे ट्रक, ब्ल्यु लाईन की खतरनाक बसें...अपना रास्ता खुद अख्तियार करेंगी, आपकी ड्राईव..अनवरत..खुशियों से भरी-पूरी रहे..., आमीन।
कथा, सिर्फ कथा नहीं लगती मुझे। कुछ ऐसा है इसमे जो खींचता है, मर्म तक पहुंचाता है।
बेहतरीन लेखन...सुपर!
अच्चा जी तों उस दिन यानि आठ अप्रेल को मनुजी की मंगनी हुई थी?
पर किससे ? ये तों बताया ही नही .
उमा बता रही थी उनकी सगाई भी उसी दिन हुई थी.अरे वाह क्या संजोग है दोनों पति पत्नी की सगाई एक ही दिन .
और शादी?
अरे !क्या बात करते हो वो भी दोनों की एक ही दिन हुई थी.
अरे फिर तों लॉन्ग ड्राइव पर जा सकते हो .वरना सच्ची में मोहल्ले वाले मुझे ताने देते .
और देहली जैसे शहर में रहते हो इतना सोचते भी हो कि अपने मोहल्ले में यूँ नही बैठूंगी ,आगे जा कर बैठूंगी.
अच्छा लगता हिये सब भी कभी कभी.
इन्बातों में भी एक खूबसूरती ही .
इस बात के लिए उमा को ढेर सारा प्यार .जिंदगी को यूँ ही इंजॉय करते रहो.शब्द-चित्र ही खींच दिया तुमने तों.
क्या कहते हैं इसे?
रिपोर्ताज?
sahi he
बहुत खूब
bahut khub
http://kavyawani.blogspot.com/
shekhar kumawat
एक छोटी सी चीख सुनाई दी कानों में..
अगर ये ब्रेक नहीं लगता...
तो ये चीख काफ़ी ऊंची हो सकती थी.
मनु जी, कितना बड़ा पैग़ाम दिया है आपने मज़ाक़ में.
सच कहा है....जान है...जहान है.
प्रशंसनीय ।
manu ji
aapne itna accha likha hai ki saari ghatnaaye jaise aankho ke saamne hi ghatit hui jaa rahi ho ....aapke man ki bhaavnaao ka shaandaar chitran hai ... mera salaam kabul kare .....
MAY GOD BLESS YOU BOTH AND MAY YOU HAVE SUCH LONG DRIVES FOR THE REST OF YOUR LIFE . jisme sirf aur sirf khushiya hi ho ....
aabhar aapka
vijay
आह! ये तो नया ही रंग-रूप दिखा यहां। सिर्फ शेर कहना नहीं, जिंदगी के हर पहलु को कहानी में बदल देने की इस अद्भुत कला पे पहले भी दो-एक बार अचंभित हो चुके हैं हम।
...हम्म्म्म तो ये आठ अप्रैल वाला खासम-खास दिन था।
बहुत ही सहज प्रस्तुति, लेकिन अपनी सहजता में मन की गहराईयों को छूती हुई। चाय वाली को एक कड़क सैल्युट....
उधर हम आपके एक शेर का इंतजार कर रहे हैं। सिर्फ "नाइस" से काम न चलेगा....
ब्लॉग्गिंग में कभी-कभी ऐसा भी हो जाता हैं ...........सोचते ही सोचते कोई रिश्ता बन जाता हैं .............मनु भाई प्रणाम ! सच ! आपकी किस्सागोई छमता अदभुत हैं ................ और सहजता के हम हुए दीवाने . वाकई अदभुत ............मनु भैया जॉब तो नई हो या पुरानी कम्बखत बेवफा हैं .........
आदित्य...
इतने दिन बाद आये हो...!
कहाँ रहे....?
जब तुम्हारे कमेन्ट देखते थे पहले हर जगह... कि तुम्हारी जॉब चली गयी है...
तो सोचते थे कि अरे यार क्या हो गया चली गयी है तो...और मिल जायेगी...इसमें बार बार कमेन्ट में कहने कि क्या बात है....
ऐसा सोचते थे....
फिर तुम एक दम गायब हो गए....हमें बहुत फ़िक्र हुई तब.....क्या हुआ होगा...कहाँ होगा..आदि आदि...
काफी दिन बाद तुम्हें अदा जी के ब्लॉग पर देखा तो बहुत ख़ुशी हुई...
खैर...
अब अच्छा लग रहा है...
मस्त पोस्ट है.. मजा आ गया पढ़कर... और बाइक में बैठाने का अंदाज..! बिलकुल यही जैसा मैं चाहता था! हाँ, अब डर नहीं लगता।
Manu ji...
wah n wah n wah !! ab aage kya kahun...
shuru se hee kaha thaa na aapse ke gazab likhteyn hain aap roz ke kisse ko
jeete huyi zindagii pal pal ..
Awesome !
Manu ji...
wah n wah n wah !! ab aage kya kahun...
shuru se hee kaha thaa na aapse ke gazab likhteyn hain aap roz ke kisse ko
jeete huyi zindagii pal pal ..
Awesome !
Ha ha ha.....
Behad khoobsoorat!
Jaane apni long drive kab aaegi?
Ha ha ha.....
क्या शानदार लिखा है !
अच्छा लगा !
इतनी मुद्दत बाद आपको पढ़ रहा हूँ..सुकून मिल रहा है !
आभार ।
कमाल है!! अभी तक कहां थी मैं?
विवाह की वर्ष्गांठ पर बधाई स्वीकार करें.
मैं देर क्या बहुत बहुत देर से आ रहा हूँ, एकदम उस भूले की तरह जो सुबह का था लेकिन शाम को नहीं लौटा.
दिल्ली का ट्रैफिक और बाइक पर महिला सवारी, एक नर्म-नाज़ुक सी पोस्ट पर कितनी संजीदगी से हंसते-मुस्कुराते व्यंग्य कर गए.
मैं लम्बे अरसे से आप के ब्लॉग तक नहीं आ सका था. आप बहुत बड़े दिल के मालिक निकले. मेरे ब्लॉग पर आ ही गए, न सिर्फ आए बल्कि अपने कीमती कमेन्टस से भी नवाज़ा, मैं शर्मिंदा भी नहीं हो सका, स्तब्ध हो गया.
उम्मीद है आपका प्यार बरकरार रहेगा.
:)
हुज़ूर...विवाह में अभी समय है...
आठ अप्रैल को सगाई हुई थी...
मनु जी आपके जैसा इधर अपना भी हाल है, जिन्दगी की "लॉन्ग ड्राइव" का तो अपुन को पता नहीं,पर हम भी कार ड्राइव सीख रहें हैं ,और हमे हलकी सी चीख नहीं,जरा सी गलती पर पूरे शेर वाली दहाड़ सुननी पड़ती है ,अब और क्या कहें ??आपकी हमसफर हमेशा आपकी जिन्दगी की ड्राइव में हमेशा हँसते हुए आपका साथ देती रहे इसी दुआ के साथ ......
अच्छी पोस्ट अच्छी बयानी के साथ
बहुत अच्छा लिखा है आपने
safar jari rakhiye ...log judte rahengen ! :)
bahut khub....
yeh bhi khub rahi...
utkrisht rachna...
yun hi likhte rahein...
meri kavitaon ko bhi aapki pratikriya ka intzaar hai........
wonderfully written !
sabase pahale safety hai .. :) mazaa aa gayaa :)
Post a Comment