उस दिन फिर से उसके रूम में..खिड़की के पास रखी टेबल पर..जाना पहचाना सा तुड़ा मुडा कागज़ नजर आया....
और उस दिन फिर देख लिया उसे खोल कर.... प्राची के पार की शुरूआती पोस्ट थी वो...
मयकदे में जाते ही, इक कहानी हो गयी
कातिलाना शोखियाँ हैं, मय जवानी हो गयी....
नज्म उलझी होती थी उन दिनों उसकी....फिर पता ही नहीं चला के कब धीरे धीरे ...
हम...मुफलिस जी..मेजर साब.... और DWIJ भाई... अपने अपने ढंग से उसकी नज्मों को सुलझाने की कोशिश करते करते....इस भोली आँखों वाले बचवा के काफी करीब आ गए...आये तो और भी कई लोग थे उन दिनों....पर...जाने दीजिये...उन्हें शायद सिर्फ और सिर्फ गजल से वास्ता रहा होगा....!
तो मैं कह रहा था के उस दिन उस कागज़ को फिर से वहीँ पड़े देख के ख्याल आया...खुली खिड़की के आगे टेबल पे ये कागज़ अभी तक गुम क्यूँ नहीं हुआ...? इस रूम में क्या क्या नहीं गुम हो जाता...माचिसों के पूड़े के पूड़े गुम होते देखे हैं हमने...ढेरों डिब्बियों में से ढूंढना पड़ता है के किसमें सिगरेट है और किसमें सिर्फ राख.....!!
कितने लोग आते जाते हैं यहाँ पर...एकाध ऐसा भी जिसे इस कागज़ के पुर्जे से कोई वास्ता नहीं॥कोई लेना देना नहीं....
और वो नटखट संजू....!!!!!!!!!!!!!!!!हे राम....!क्या जाने कभी इसी नज्म का हवाई जहाज बना के गली में उड़ा दे तो.......!!!!!!!!!!!!!!
हालांकि हमारे रूम से भी काफी कुछ खो जाया करता है...पर उस वक़्त जाने क्या सोच कर हमने वो कागज़ सहेजा अपनी जेब में डाल लिया... एकदम अजीब सा...बेमतलब का कान्फिडेंस आ गया के शायद ये हमारे पास ज्यादा ठीक रहेगा...
आप भी पढ़ें...हमारे jhon के हाथ से लिखी उलझी नज्म...
मयकदे में जाते ही, इक कहानी हो गयी
कातिलाना शोखियाँ हैं, मय जवानी हो गयी
ढूंढूं तो ढूंढूं किसे इस शहरे-नामुराद में
याद में मेरी सुना है, वो दीवानी हो गयी
कहता हूँ आज लोगो, आपसे, ईमान से
ज़िन्दगी जीने में मुझसे, बेईमानी हो गयी
गम भी अब मिलते हैं मुझको, खुशियों के वर्क ओढ के
मौत तो मासूम है , ये जिंदगी सयानी हो गयी
आईने ने जब सुनाई उसको सच्ची दास्ताँ शर्म से
वो, आज फिर से, पानी पानी हो गयी
पी भी ले दो घूँट ''दर्शन'' उस खुदा का नाम ले.........
मक्ता कुछ साफ़ साफ़ नहीं दिख रहा है ....बाकी सारी गजल ज्यूँ की त्यूँ उतार दी है कागज़ से पढ़कर....बिना कोई करेक्शन किये.......किसी का दिल चाहे तो करेक्शन कर सकता है...हम नहीं करेंगे..... हमें अपने ब्लॉग की सालगिरह का पता ही नहीं चला के कब आई और कब गयी.....पिछले महीने थी नवम्बर में...दिन याद नहीं है....
पर आज 28 दिसंबर है....दर्पण के ब्लॉग की सालगिरह....... दिल किया के अपने ब्लॉग पे ही मना लूं ये दिन.... :)
15 comments:
Darpan Bachwa ke blog ki saal girah ki bahut bahut badhai...
ye raha mera pahla comment fir aate hain...mere bachwa ki baat hai
aDaDi..
मुबारक हो। अच्छी रचना। बहुत-बहुत धन्यवाद
आपको नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं।
अरे मनुजी .....
ये भोली-सी आँखों वाला बचवा...
जाने कब दिल की अथाह गहराईओं में उतर कर
हम सब की सोच का एक हिस्सा बन गया
पता ही नहीं चला....
बात करता है तो किये ही जाता है,,,
और जो नहीं कुछ कहता ,,,
तब भी न जाने कितना कुछ कह देता है,,,
और वो सब समझ भी आ जाता है हमें..
'गुलज़ार साहब' की
तर्ज़ का तो दीवाना है .....
जब कुछ लिखता है....कुछ पढता है...
तो मानो किसी फूल की नर्म-नाज़ुक़ पंखुड़ियां
बरसने लगती हैं...
मैं समेटने की कोशिश में लगा रहता हूँ
जी चाहता है ,
कभी पूछ लूं उससे .....
तू इतना मासूम क्यूं है रे............
ओहो बधाईयाँ जी मनु जी...और दर्पण भाई को भी देख आऊं जरा ..:)
abhaar !!
अगर दर्पण ना कहता तो संदूक कहता उसे ... सच बचवा निश्छल है और प्यारा भी गुनाह मैंने की है के उसका एक बारी अपहरण कर चुका हूँ और किसी दिन आप भी हो सकते है ... बधाई बा लाडले को ...
अर्श
#~#~...माचिसों के पूड़े के पूड़े गुम होते देखे हैं हमने...ढेरों डिब्बियों में से ढूंढना पड़ता है के किसमें सिगरेट है और किसमें सिर्फ राख.....!!कितने लोग आते जाते हैं यहाँ पर...एकाध ऐसा भी जिसे इस कागज़ के पुर्जे से कोई वास्ता नहीं॥कोई लेना देना नहीं....और वो नटखट संजू....!!!!!!!!!!!!!!!!हे राम....!क्या जाने कभी इसी नज्म का हवाई जहाज बना के गली में उड़ा दे तो.......!!!#~#~
वाह! यह तो कविता से भी बढ़ कर चीज हो गई.दर्पण अच्छा क्या बहुत सन्दर रचता है (लिखता नहीं) लेकिन वायवीयता से भी आगे जाने की आवश्यकता है. हो जाएगा, अभी उम्र क्या हुई?
बेनामी जी.....
ये वायवीयता क्या होती है जी....?
अर्थ समझाए तो आसानी होगी आपकी बात समझने में...
ज़रा सा रचता/लिखता में फर्क भी बता दीजिये....
आभार...
मनु...
अच्छी रचना
बहुत बहुत आभार
ओह... दर्पण... अपनी तो समझ में बस ये नही आता कि वो बंदा जो मुझसे बात करता है वो कौन है.... ? दर्पण तो नही होगा..... दर्पण तो कोई बहुत संजीदा,जाने कितने तज़ुर्बों से निकला हुआ बंदा है। और ये जो मुझसे दर्पण बन कर बात करता है, वो तो एक भोलाभाला शख्स है, जिसे जैसे दुनिया का कोई तज़ुर्बा ही ना हो.. ज़रा सा प्यार दो और मोल ले लो उसे....!
A very sweet guy..... GOD BLESS YOU...उसके लिये अपने आप ये बात आ जाती है मन में....!
खुदा बचाये बुरी नज़र से..
और मनु भईया पहली बार आई आपके घर पर। मेरा शगुन ....?? :):)
आपकी पेंटिग्स देखी....AMAZING.....
आप दर्पण से बहुत प्यार करते हैं। माफी दीजिए जो आप को दुखाया हो। प्यार आदर , बस आदर के लायक होता है।
दर्पण भाई के ब्लॉग के एक साल - संवेदना ने हर रंग देखा है वहाँ ! सालगिरह की बधाईयाँ !
आभार |
नववर्ष मंगलमय हो।
वाह मनु जी आप यहाँ सालगिरह मनाये बैठे हैं और हमें फोन तो क्या एक sms तक नहीं ....?
क्या बात है इधर सागर ,दर्पण और अब आप भी .....??
खैर दर्पण जी को बहुत बहुत बधाई ....अपना तो आप सा ही हाल रहा .....!!
हाँ ....ये 'वाय' संस्कृत का शब्द है जिसका अर्थ है बुनना ....!!
कितनी यादें ताजा हो उठी "नज़्म उलझी" से। सचमुच क्या दिन थे वो भी..
मयकदे में जाते ही एक कहानी हो गयी...वो अब भी लिखता है क्या उस पोस्ट पर! जिंदगी को लेकर इतना संजीदा लड़का कि रश्क होने लगे उसकी सोचों से, उसकी सोचों के उन्वान से। वो शाम जो नहीं आती उस रोज उस तपते जून की वो उन्नीस तारीख वाली शाम, वो सिगरेट के धुओं में और खुलती बोतलों में नहायी हुई शाम....दर्पण फिर कैसे और किस तरह से शामिल होता चला गया हमसब की जिंदगी में।
शुक्रिया मनु जी, आपका...हमसब को इस तरह से जोड़े रखने के लिये दर्पण के बहाने!
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