मेरी निगाह ने वा कर दिए बवाल कई,
हुए हैं जान के दुश्मन ही हमखयाल कई
हुए हैं जान के दुश्मन ही हमखयाल कई
नज़र मिलाते ही मुझसे वो लाज़वाब हुआ,
कहा था जिसने के, आ पूछ ले सवाल कई
कहा था जिसने के, आ पूछ ले सवाल कई
उलट पलट दिया सब कुछ नई हवाओं ने,
कई निकाल दिए, हो गए बहाल कई
कई निकाल दिए, हो गए बहाल कई
कहीं पे नूर, कहीं ज़ुल्मतें बरसती रहीं,
दिखाए रौशनी ने ऐसे भी कमाल कई
दिखाए रौशनी ने ऐसे भी कमाल कई
है बादे-मर्ग की बस्ती ज़रा अदब से चल,
यहाँ पे सोये हैं, तुझ जैसे बेमिसाल कई
यहाँ पे सोये हैं, तुझ जैसे बेमिसाल कई
19 comments:
bahut acche
bahut sunder rachna hai...
कहीं पे नूर, कहीं ज़ुल्मतें बरसती रहीं,
दिखाए रौशनी ने ऐसे भी कमाल कई
मनु जी सुभान अल्लाह...क्या शेर कहा है...जिंदाबाद भाई वाह...सलामत रहो और लिखते रहो...यूँ ही...
नीरज
ARE HUZUR KAHAR BARPAA RAHE HO AAP TO HINDI YUGM PE KAL JAAN LE LEE AUR AB YAAHAA PE UFFFFF... KIS SHE'R PE DAAD PAHALE DUN ISSI ULJHAN ME LAGAA PADAA HUN....
DIL LOGE KE JAAN LOGE MERI JAAN
YAHAAN TO HAR SHE'R PE ARSH KURBAAN
AAPKAA
ARSH
manu bhai ,,
bhai main aapke andaaz ki tareef karun ya aapke gazal ki ..
do baar padh chuka hoon , leki n man nahi bhara bhai ..
kya khoob likha hai ..saheb .
नज़र मिलाते ही मुझसे वो लाज़वाब हुआ,
कहा था जिसने के, आ पूछ ले सवाल कई
meri dil se badhai sweekar kariyenga
vijay
www.poemsofvijay.blogspot.com
मनु जी .......लाजवाब लिखा है...........हर शेर कुछ नयापन लिए है..........आपके शेरों में जीवन का दर्शन छलक के आता है..........हम ख्याल भी कभी कभी दुश्मन बन जाते हैं.........और ये शेर तो गज़ब का है ..........
कहीं पे नूर, कहीं ज़ुल्मतें बरसती रहीं,
दिखाए रौशनी ने ऐसे भी कमाल कई
है बादे-मर्ग की बस्ती ज़रा अदब से चल,
यहाँ पे सोये हैं, तुझ जैसे बेमिसाल कई
waah manuji,,,
isme yathaarthvadi darshan he/
upar ke sher bhi gazab ke he//
aapke andaaz ki to baat hi kya//
कहीं पे नूर, कहीं ज़ुल्मतें बरसती रहीं,
दिखाए रौशनी ने ऐसे भी कमाल कई
bahut khuub !kya khuub sher kaha hai!
achchee ghazal lagi.
बहुत बढ़िया ग़ज़ल. मन को भाई.
"नज़र मिलाते ही मुझसे वो लाज़वाब हुआ/कहा था जिसने के, आ पूछ ले सवाल कई" ---अहा!!
मनु जी, क्या कहूँ...और चुप तो रहने ही नहीं देगी ये ग़ज़ल आपकी..
"नई हवाओं के उलट-पुलट" से डगमगाती अर्थ-व्यवस्था की ओर के इशारे का अंदाज़ तो क्या खूब बना है सरकार।
और आखिरी शेर पे बस उफ़्फ़्फ़ कर के खामोश हो जाता हूँ...
कलम बेतखल्लुस की कहर बरपा रही है बीते कुछ दिनों से
एक बहुत ही शानदार , उस्तादाना कलाम
सुखन का , कहन का , बे-मिसाल नमूना
अदबी लिहाज़ से नायाब ग़ज़ल ......
मुबारकबाद कुबूल फरमाएं .............
"हर एक रंग सलीके से ही निभाया है
गज़ब की सोच नई, खुशनुमा ख़याल कई
तमाम शेर तआरुफ़ हैं 'बे-तखल्लुस' का
बस इक ग़ज़ल ही में वो कर गया कमाल कई "
---मुफलिस---
बहुत बहुत शुक्रिया मनु जी आपकी टिपण्णी के लिए! बस कल ही ये पेंटिंग मैंने ख़तम किया और उसी पर चार शायरी लिख डाली!
बहुत बढ़िया रचना लिखा है आपने जो प्रशन्ग्सनिय है! आप इतना अच्छा कविता लिखते हैं की कहने के लिए अल्फाज़ कम पर जाते हैं!
Bhai Vah Vah ! kya khoob sher kahte hain aap !
Bahunar Bashoor gazal !
Maza aaya ! aapke blog par !
कहीं पे नूर, कहीं ज़ुल्मतें बरसती रहीं,
दिखाए रौशनी ने ऐसे भी कमाल कई..
अरे, आप तो कमाल का लिखते है. काश समय होता तो इन पर धुन बनाने की ज़ुर्रत कर बैठता.
अरे अर्श जी मैं अभी - अभी 'jaan' पर ही कमेन्ट देकर आई हूँ मुफलिस जी ब्लॉग पे वो भी मनु जी का ही चुरा कर और यहाँ आप भी जान की ही बात कर रहे हो...!?!
मनु जी आप और मुफलिस जी निगाहें , जान और बवाल के बीच....लाजवाब लाजवाब शे'र कहते जा रहें हैं ....क्या इरादे हैं ...??
नज़र मिलाते ही वो मुझसे लाजवाब हुआ ....?????
कहीं पे नूर कहीं पे जुल्मतें बरसतीं रहीं ....?????
वाह जी वाह .....यूँ हीं बरसती रहें जी ये जुल्मतें और आप यूँ ही बढिया-बढिया गज़लें लिखते रहें.......!!!
hi manoj
aaj maine aakhir teri site khole hi lee. aab lagta hai kitni der se login kiya.
aab pura padh kar agla comment likhunga.
suchi bhai
नज़र मिलाते ही मुझसे वो लाज़वाब हुआ,
कहा था जिसने के, आ पूछ ले सवाल कई
subhan allah..
behtareen...
aap likhte rahiye
ham aate rahenge
कहीं पे नूर, कहीं ज़ुल्मतें बरसती रहीं,
दिखाए रौशनी ने ऐसे भी कमाल कई
kyaa baat hai !!!
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