बे-तख़ल्लुस

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'बेतख़ल्लुस' हूं मुझे कोई भी अपना लेगा

manu

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Monday, February 16, 2009

जुनूने-गिरिया का ऐसा असर भी, मुझ पे होता है
कि जब तकिया नहीं मिलता, तो दिल कागज़ पे रोता है

अबस आवारगी का लुत्फ़ भी, क्या खूब है यारों,
मगर जो ढूँढते हैं, वो सुकूं बस घर पे होता है

तू बुत है, या खुदा है, क्या बाला है, कुछ इशारा दे,
हमेशा क्यूँ मेरा सिजदा, तेरी चौखट पे होता है

अजब अंदाज़ हैं कुदरत, तेरी नेमत-नवाजी के
कोई पानी में बह जाता, कोई बंजर पे रोता है

दखल इतना भी, तेरा न मेरा उसकी खुदाई में
कि दिल कुछ चाहता है, और कुछ इस दिल पे होता है |

21 comments:

daanish said...

"तू बुत है या खुदा है
क्या बला है कुछ इशारा दे ,
हमेशा क्यूं मेरा सिजदा
तेरी चौखट पे होता है "

वाह वाह !!
क्या लाजवाब शेर कहा है ....
मैं ख़ुद आपको सिजदा करता हूँ हुज़ूर ...!!
एक उम्दा और उस्तादाना कलाम . . . .

मुबारकबाद ...........
---मुफलिस---

अमिताभ श्रीवास्तव said...

अजब अंदाज़ हैं कुदरत, तेरी नेमत-नवाजी के कोई पानी में बह जाता, कोई बंजर पे रोता है...

मनु उवाच पर पहली बार आया.
सच कहू तो आपका अंदाजे बया कुछ और है..
बहुत खूब लिखते हो जनाब.. दिल को सुकून मिलता है...
अब आता रहूँगा इस वादे के साथ, आपको शुभकामनाये..
कभी वक्त मिले तो मेरे ब्लॉग पर भी आने का कष्ट करे,
आभारी रहूँगा .

दर्पण साह said...

EK UTKRISHT NAZAM MAIN KUCH NIKRISHT(BE SIR PER KE) SHER:

MERE SITAMGAR KO KOI TO SAMJAHOO YAARON,
KE BANDA WAHI KATATA HAI JO KABHI BOTA HAI,


NAHI HAI DARD SE AB SOKOON 'DARSHAN'
DOOSRA JAAG JATA HAI, JAB WO PEHLA SOTA HAI.

MAUT,ZINDAGI,ISHQ,RAQUEEB O QUTIL SE DARNA KAISA,
KI WAHI HOTA HAI JO MANZOOR-E-KHUDA HOTA HAI

हरकीरत ' हीर' said...

जुनूने-गिरिया का ऐसा असर भी , मुझ पे होता है
कि जब तकिया नहीं मिलता,तो दिल कागज पे रोता है

सुभान अल्‍लाह...! मनु जी...क्‍या कहूँ आपको...? बस मजा आ गया..!!

और ये शे'र...

अजब अंदाज है कुदरत तेरी नेमत नवाजी के
कोई पानी में बह जाता कोई बंजर पे रोता है

माशा अल्‍लाह...!! एक इल्‍तजा थी अर्थ भी लिख देते तो हम अल्‍प ज्ञान वालों को असानी होती...!

गौतम राजऋषि said...

मनु जी मनु जी मनु जी मनु जी मनु जी.....भई हम तो नत-मस्तक हुए
लाजवाब,"अबस आवारगी का लुत्फ़ भी, क्या खूब है यारों/मगर जो ढूँढते हैं, वो सुकूं बस घर पे होता है"
उफ़्फ़्फ़्फ़्फ़ कातिलाना गज़ल है ये तो
ये ही अंदाज़ है तेरा जमाने से बगावत का
बरसते आँसुओं से सब गज़ल अपनी भिगोता है

सैल्युट साब

vijay kumar sappatti said...

kya baat hai bhaiyya. bade chaaye hue ho...

हमेशा क्यूं मेरा सिजदा
तेरी चौखट पे होता है "

ulti mate hai , kolkatta airport par baithkar aapki gazal padh raha hoon aur aapke liye wah wah nikal rahi hai ..

aaj matmaila paani ,meri taraf se huzoor, kabul farmaayen..
wah wah dil se wah

kumar Dheeraj said...

क्या शेर है दिल की गहराई को छुआ है दिल कहता है इस पर बहुत कुछ लिख दू लेकिन इस नज्म को पढ़कर सबकुछ बेगाना सा लगता है ....शानदार मतला है इसी तरह लिखते रहिए आभार

रज़िया "राज़" said...

अबस आवारगी का लुत्फ़ भी, क्या खूब है यारों,मगर जो ढूँढते हैं, वो सुकूं बस घर पे होता है
तू बुत है, या खुदा है, क्या बाला है, कुछ इशारा दे, हमेशा क्यूँ मेरा सिजदा, तेरी चौखट पे होता है
वाह!खूब लिखा है आपने!
हमारे ब्लोग पर आप आये न होते तो हम आपकी इस ग़ज़ल से महेरूम रहे जाते!
बधाइ आपके इस शेर के लिये.

Dev said...

"तू बुत है या खुदा है
क्या बला है कुछ इशारा दे ,
हमेशा क्यूं मेरा सिजदा
तेरी चौखट पे होता है "
दिल को छू लेने वाली रचना..आभार प्रस्तुति का.
शुभकामनाएं........

दिगम्बर नासवा said...

अबस आवारगी का लुत्फ़ भी, क्या खूब है यारों,
मगर जो ढूँढते हैं, वो सुकूं बस घर पे होता है

बहुत लुत्फ़ है आपकी शायरी में, आपका अंदाज़ अलग है. बहुत मस्ती में लिकते हैं आप, ऐसा अहसास होता है. हर शेर कुछ अलग तरह की गुस्ताखी करता हुवा लगता है.

कायल हो गए आपके

Prakash Badal said...
This comment has been removed by the author.
Prakash Badal said...

आहा! दिल को चीरती रचना किस पंक्ति को सराहूँ किसे छोड़ दूँ। जीओ मनु भाई जीओ। ग़ज़ल जिगर के पार गो गई।

नीरज गोस्वामी said...

मनु भाई...आप नहीं जानते आपने क्या ग़ज़ल लिख दी है...वाह..वा...उस्तादों वाले तेवर आपके हर शेर में नज़र आ रहे हैं...भाई मुरीद हो गए हम तो आपके....ब्लॉग पर बहुत अरसे बाद इतनी खूबसूरत ग़ज़ल पढने को मिली है...किसी एक शेर की बात नहीं करूँगा क्यूँ की इस से दूसरे बाकी के शेरों के साथ ना इंसाफी हो जायेगी...सब के लिए दिल से दाद दे रहा हूँ....

.आज बहुत दिनों बाद आप के ब्लॉग पर आना हुआ...इस गलती के लिए कान पकड़ कर माफ़ी मांगता हूँ...इस से नुक्सान मेरा ही हुआ क्यूँ की इस ब्लॉग पर उपलब्ध विलक्षण रचनाओं से मैं इतने दिनों दूर रहा...आज पूरी कसर निकाल ली है....एक तृप्ति का भाव मन में आ गया है...सब अब तक छूटी हुई रचनाएँ पढ़ कर...
आप लिखते रहें हम पढ़ते रहेंगे...

नीरज

महावीर said...

मनु जी
आपकी यह ग़ज़ल पढ़ी और दाद दिए बग़ैर नहीं रह सका। गिरह का मिस्रा ख़ूब है और आखरी शेर भी बहुत पसंद आया। हर लफ़्ज़, हर शेर दिल को छूता हुआ लगा। एक अच्छी ग़ज़ल इनायत करने के लिए दाद क़ुबूल कीजिए।
मेरे ब्लाग पर दस्तक देने के लिए शुक्रिया!
महावीर शर्मा

RAJ SINH said...

MANU BHAYEE MERE ,

AAP KEE TARAH MAIN BHEE BINA PADHE TIPPANEE NAHEEN DETA TO KAH DOON KI AAPKEE YE GAZAL PADHEE . AUR KUCH KAHOON ?

AAJA SHAB-E- GULISTAN LAGALOON TUJHE GALE ,
MEREE TARAH SE TOOBHEE LUTA HAI BAHAR ME ?

MILTE RAHENGE !

गौतम राजऋषि said...

तेरी उमर की फूलवारी में खिला नया एक फूल.............मुबारक सालगिरह !!!!

कडुवासच said...

... प्रभावशाली गजल है,प्रसंशनीय!!!!!

"अर्श" said...

Manu ji namaskar,
kasam se kya likha hai aapne ,har she'r umda ,har lafj khubsurat.... kahar barpa rahe ho aap to sahab....
kamaal ka likha hai aapne... aapke blog pe pahali dafa aaya hun aur dil ko jaise ek taskin si mili hai ...yahan aake ... nahi aake kya paap kiya hai ye ab pata chala....

arsh

Riya Sharma said...

तू बुत है, या खुदा है, क्या बाला है, कुछ इशारा दे, हमेशा क्यूँ मेरा सिजदा, तेरी चौखट पे होता है


बहुत उम्दा गज़ल मनुजी
हर शेर का गाम्भीर्य अद्भुत .
बहुत सुन्दर !!!!

Prakash Badal said...

मनु भाई को होली की हार्दिक शुभकामनाएं और परिवार वालों को भी और आपकी पैंटिंग देखी आज ब्लॉग़ पर उफ्फ हाय ओय हाय रे मार डाला>>>>>..........।

Anonymous said...

शे'रों को वापस नही दोहराना चाहती थी जिनका ज़िक्र लोग पहले ही कर चुके हैं .
फिर भीकुछ ने गहरा असर छोड़ा तों है-
"तू बुत है या खुदा है ....ये तों वो जाने जिसे मोहोब्बत की,आशिक़ खुदा और उसका दर इबादतगाह बन जाता है ,सिजदा करने के लिए सोचने की ना जरूरत होती है ना वक्त .

कि जब तकिया नहीं मिलता,तो दिल कागज पे रोता है'
बस समझो ईश्वर ने आपको अपनी शानदार नेमत से नवाज़ा है,कवि बन चुके हैं.
मगर जो ढूँढते हैं, वो सुकूं बस घर पे होता है '-ये खूब कही.
बेहतरीन इंसान हो और जानते ,मानते हो की सुकून अपने घर में ही मिलता है.
चलो एक टेंशन खत्म. बाबा बिगडेगा नही .हा हा हा
क्या शे'र लिखते हो तुम तों 'शे'रों' के भी 'शेर' निकले.
अच्छा लिखते हो .पोत करने से पहले एक बार करेक्शन कर लिया करो.
'बला'को 'बाला' बना दिया.
'दश्त' को कभी........
अच्छा लिखते हो.अब तों पुरानी सारी पोस्ट देखनी ही पडेगी तुम्हारी सारी की सारी.इतने दिन कहाँ छुपे हुए थे ?
पर....बधाई