ये साकी से मिल, हम भी क्या कर चले
कि प्यास और अपनी बढाकर चले..
खुदाया रहेगी, कि जायेगी जां
कसम मेरी जां की वो खाकर चले
भरम दिल की चोरी का जाता रहा
वो जब आज आँखें चुरा कर चले
चुने जिनकी राहों से कांटे,वो ही
हमें रास्ते से हटाकर चले
तेरे ही रहम पे है शम्मे-उम्मीद
बुझाकर चले या जलाकर चले
रहे-इश्क में संग चले वो मगर
हमें सौ दफा आजमा कर चले
खफा 'बे-तखल्लुस', है उन से तो फिर
जमाने से क्यों मुंह बना कर चले...
15 comments:
वाह!
तग़ज़्ज़ुल क़ायम है पूरी ग़ज़ल में
ख़ास तौर पर
चुने जिनकी राहों से कांटे,वो ही
हमें रास्ते से हटाकर चले
बहुत ख़ूब !
हासिले ग़ज़ल शेर है
काबिलेतारीफ बेहतरीन
स्वतंत्रता दिवस के मौके पर आपका हार्दिक अभिनन्दन एवं शुभकामनाएँ.
खुदाया रहेगी , के जायेगी जां
कसम मेरी जां की वो खाकर चले
वाह...खूबसूरत शेर है जनाब...
तेरे ही रहम पे है शम्मे-उम्मीद
बुझाकर चले या जलाकर चले
शानदार....
रहे-इश्क में संग चले वो मगर
हमें सौ दफा आजमा कर चले
हम्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म....
मनु जी, मेरा एक शेर देखें-
मेरी वफ़ा पे भरोसा तू कर न कर लेकिन
ये रोज़ रोज़ मेरा इम्तहान रहने दे.
15 अगस्त पर लगभग हर ब्लॉग मालिक देशभक्ति के रंग में रंगे हुए हैं। ताज़्ज़ुब..यह कि 15 अगस्त के बाद क्या????
खैर..।
चुने जिनकी राहों से कांटे,वो ही हमें रास्ते से हटाकर चले..
शहीदों पर आज जो कुछ भी चल रहा है क्या वो इस पंक्ति से स्पष्ट नहीं हो सकता..?? वैसे भी दिन आज़ादी के रंग से सराबोर जो है।+
आपके अशआर पर हमारी सोच आपकी पहली पंक्ति को उठाकर कि-
ये साक़ी से मिल, हम भी क्या कर चले कि, प्यास और अपनी बढाकर चले...।
स्वतंत्रता दिवस के शुभ अवसर पर हार्दिक अभिनन्दन एवं शुभकामनाएँ...!
स्वाधीनता दिवस पर हार्दिक शुभकामानाएं.
अच्छी ग़ज़ल।
ये साकी से मिल, हम भी क्या कर चले
क प्यास और अपनी बढ़ा कर चले ...
हुज़ूर .. दिल में हसरतों का हुजूम हो
तो साकी को भी सताने का मौक़ा मिल ही जाया करता है
खूबसूरत शेर से आगाज़ हुआ है ग़ज़ल का...वाह !
चुने जिनकी राहों से कांटे,वो ही
हमें रास्ते से हटाकर चले .....
अब.. यही वफ़ा का सिला है, तो कोई बात नहीं
खफा 'बे-तखल्लुस', है उन से, तो फिर
जमाने से क्यों मुंह बना कर चले...
भई,,, यहाँ....
इस "चले" का अपना ही मक़ाम हुआ चाहता है
sher अपनी बात खुद कह गया है
बाक़ी....नज़र अपनी-अपनी,,,ख़याल अपना-अपना !!
एक पुर-असर ग़ज़ल पर बधाई
चुने जिनकी राहों से कांटे,वो ही
हमें रास्ते से हटाकर चले
वाह मनु जी वाह...अरसे बाद ही सही...लेकिन बेहतरीन ग़ज़ल कही है आपने...हर शेर एक से बढ़ कर एक है....दाद कबूल करें...
नीरज
रहे-इश्क में संग चले वो मगर
हमें सौ दफा आजमा कर चले
खफा 'बे-तखल्लुस', है उन से तो फिर
जमाने से क्यों मुंह बना कर चले...
Azab gazab hain Manuji .ye do sher to !!
Realy wonderful !
मुझे ग़ज़ल की समझ नहीं है मगर इस्मत जैदी जैसे लोग तारीफ़ करें तो इसकी उत्कृष्टता पर क्या संदेह ...हाँ इसके भाव बेहतरीन हैं इन मधुर भावनाओं पर मेरी हार्दिक शुभकामनायें !
ये साकी से मिल , हम भी क्या कर चले
कि प्यास और अपनी बढाकर चले ......
सच्च में साकी से ही मिले थे या ....और थी ....प्यास बढ़ाने वाली .....????
खुदाया रहेगी, कि जाएगी जां
कसम मेरी जां कि वो खाकर चले
ओये होए ......!!
तुमने किसी कि जां को जाते हुए देखा है .......
भ्रम दिल कि चोरी का जाता रहा
वो जब आज आँखें चुरा कर चले
बड़े कम्बखत हैं जी ....ऊपर प्यास बढ़ा कर नीचे आँखें भी चुरा लीं ......?
चुने जिनकी राहों से कांटे वो ही
हमें रस्ते से हटाकर चले
आप हैं ही इतने भोले ......
तो फिर वो क्या करें .....
हर शे'र नगीना है ....सीधा दिल में उतरता हुआ ...
पर एक बात बताइए .....
ये १५ अगस्त पे किसे आज़ाद कर रहे हैं ......?
बेहतरीन अभिव्यक्ति...:(
manu ji..itni sundar gazal... vaah..
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