आज से ठीक एक साल पहले हिंद-युग्म पर अपनी एक ग़ज़ल आई थी....जिसका मतला था..
शोला-ऐ-ग़म में जल रहा है कोई,
लम्हा लम्हा पिघल रहा है कोई ..
उन दिनों दिमाग कुछ ज्यादा ही हवा में रहने लगा था...ठीक उसी दिन कुछ ऐसा हुआ कि हमने अपनी जॉब ही छोड़ दी ...हालांकि उस वक़्त जॉब छोड़ कर एक सुकून भी मिला ...लेकिन साथ ही मंदी के दौर में नयी जॉब और पेट पालने की फ़िक्र भी हुई..भरी दोपहरी ही उस दिन घर वापस आ गए थे हम...किसी से कुछ कहा नहीं..बस आकर ऊपर वाले रूम में कंप्यूटर ऑन कर के बैठ गए..हिंद-युग्म खोल कर देखा तो अपनी ये ग़ज़ल वहाँ छपी हुई थी..देखकर कुछ ठीक सा महसूस हुआ..
उसी पर नीचे एक कमेन्ट पर नज़र पड़ी...( इसे कहते हैं एक कामयाब ग़ज़ल....)
वाह रे हमारी उस दिन की बेबसी...और ये प्यारा सा कमेन्ट...
उस वक़्त एक शे'र हुआ...जो आगे ग़ज़ल की शक्ल में ना ढल सका...
हर ग़ज़ल कामयाब है उसकी
कितना नाकाम शख्स होगा वो
आज दिल किया ..ये ही अकेला शे'र आपसे साझा करने का...
22 comments:
हर ग़ज़ल कामयाब है उसकी
कितना नाकाम शख्स होगा वो
मनु,
ख़ूबसूरत शेर और एक अकेला ही बहुत कुछ समेटे हुए
शोला-ऐ-ग़म में जल रहा है कोई,
लम्हा लम्हा पिघल रहा है कोई ..
ये ग़ज़ल कब पढ़ने को मिलेगी?
हर ग़ज़ल कामयाब है उसकी
कितना नाकाम शख्स होगा वो
हर ग़ज़ल कामयाब है उसकी
कितना कामयाब शख्स होगा वो
चलिए मनुजी ..अब इसे कुछ इस तरह पढ़ते हैं :))
Ismat ji ki tarah,mujhe bhi wah gazal padhne kaa man ho raha hai!
कलेजा जैसे निकाल के रख दिया है , असमंजस में हूँ क्या लिखूं ......
यही कहूँगा इसके आगे कोई और शे'र जोड़ने की कोशिश ना करना...
अर्श
सवाल- क्या कुछ जुडता है इसके आगे?
वैसे इस एक शे'र पर शोध करने का मन होता है...। क्योंकि बहुत से शायर, गज़लकार मेरी आंखों के सामने चलचित्र कि भांति गुजर गये जो इस शे'र पर 24 कैरेट खरे उतरते हैं। नाक़ामी, पीडा, दर्द..में ही शब्द आखिर क्यों इतने गजब के बन जाते हैं कि रचना कामयाब हो जाती है? वाह री जन्मदात्री नाक़ामी।
ये जो 2 तारीख है..वो दो मायनों में आपके साथ लगी है जो याद बनकर रहती है..एक तो वो 2 जून..और एक यह 2 जुलाई...। खैर..गज़ब का शे'र है मनु भाई। वो गज़ल भी पोस्ट कर दें तो बेहतर होगा...।
( इसे कहते हैं एक कामयाब ग़ज़ल....)यह कमेन्ट आपकी हर ग़ज़ल के लिए सही है...
अर्श जी की बात गौर करने वाली है...
शुक्रिया..
wo comment shayad mera tha..
Aur poori tarah sach, bahut kam qalaam aise hote hain, jinhe main keh deti hun ki kaamyaab hue.. Aapki gazal hi aisi thi, shaandar..
Par us waqt aapki paristhiti ka andaaza nahi tha, aksar aisa mauka aata hai, jab kuch baatein takleef deti hain aur kuch sukoon..
Kahin dhoop to kahin chaanv sukoon ki hai
shayad isi ka naam to zindagi hai..
..
Deep
आज जाने कितने दिनों बाद अपने सबसे फ़ेवरिट शायर को पढ़ने आ पाया हूं..एक ऐसा शायर जिसके बारे में मैं सबसे कहता फिरता हूं कि कमबख्त को खुद ही नहीं पता कि वो कितना बेहतरीन लिखता है और ये तन्हा शेर मेरे कहे की ताकीद करता है "हर ग़ज़ल कामयाब है उसकी
कितना नाकाम शख्स होगा वो"
उफ़्फ़्फ़्फ़, मनु जी...क्या शेर कहा है। विनती है कि दो दिन फुरसत निकाल कर बैठिये इसपर, वर्ना चाय वाली को फ़रमान जारी करना पड़ेगा मुझे।
..और कायदे से आपको हिंदी-युग्म वाला लिंक दे देना चाहिये था यहां। नहीं, खुद के लिये नहीं कह रहा...अब देखिये ना इस्मत जी को पूछना नहीं पड़ता ना इस ग़ज़ल की बाबत, अगर आप लिंक दिये रहते तो... :-)
अब जा रहा हूं छूट गयी पोस्ट पढ़ने।
शुक्रिया ,
अच्छा लगा आपका किलसना ,
इतना बेहतरीन शेर कहने के बाद भी ये लफ्ज़ 'काश ' ?
आपकी याददास्त की दाद देती हूँ ....जो दो वर्ष पहले की बात.... वो भी क्या टिपण्णी थी वो भी .....कमाल है .....!!
कमाल तो ' nice ' पर भी लगा .....पर अब बुरा नहीं लगता .....!!
खैर ....मित्र की बात माने और एक शे'र को मुकम्मल ग़ज़ल में तब्दील कर लें .....!!
हम गैरों की क्या बात करें
अपने ही ...........
........
.....
ye maikadaa hai,
samajh-boojh ke pina o rind
koi girte hue
thaamega na daaman teraa !!
और हाँ ....
कौन रोता है किसी और की खातिर ऐ दोस्त
सब को अपनी ही किसी बात पे रोना आया
हर ग़ज़ल कामयाब है उसकी
कितना नाकाम शख्स होगा वो
...achha, sachcha sher hai....vaah!
..mirja galib ke gam yaad aa gaye.
to me
show details 7:42 AM (37 minutes ago)
MUFLIS has left a new comment on your post "दो जुलाई, आज से ठीक एक साल पहले हिंद-युग्म पर अप...":
........
.....
ye maikadaa hai,
samajh-boojh ke pina o rind
koi girte hue
thaamega na daaman teraa !!
ye do comments,,,muflis ji ne diye the...
magar jaane kyun nahin chhap sake....
show details 7:55 AM (26 minutes ago)
MUFLIS has left a new comment on your post "दो जुलाई, आज से ठीक एक साल पहले हिंद-युग्म पर अप...":
और हाँ ....
कौन रोता है किसी और की खातिर ऐ दोस्त
सब को अपनी ही किसी बात पे रोना आया
ye lo...!!!!!!
hamaare hi comments gaayab ho gaye hamaari post se...
:(
कमेंट्स .... जाने कहाँ गायब हुए जा रहे हैं
दो बार पहले लिखे थे ,, एक भी नज़र नहीं आया
मेरे ब्लॉग पर भी ऐसा ही हो रहा है ... ??!!??
आपकी तहरीर से गुज़रते हुए
मन भारी-सा हो गया था,,,
तब यही लिखा था ......
"ये मैकदा है, समझ बूझ के पीना ऐ रिंद
कोई गिरते हुए, थामेगा न दामन तेरा"
और
"कौन रोता है किसी और की खातिर ऐ दोस्त
सब को अपनी ही किसी बात पे रोना आया"
हर ग़ज़ल कामयाब है उसकी
कितना नाकाम शख्स होगा वो
Nishabd hone par blank comment save nahi hota, kamiyaan hain comment posting tool me. :(
Samajh to gaye hi honge..
Bhale din aaya main :)
are nahin yaar....!!
wo baat nahin...!
ye har blog par ho rahaa hai...
aapkaa swaagat hai ji..aap bhale din hi aaye...
हर ग़ज़ल कामयाब है उसकी
कितना नाकाम शख्स होगा वो
ख़ूबसूरत शेर......!
हर ग़ज़ल कामयाब है उसकी
कितना नाकाम शख्स होगा वो ..
मनु जी,
ये दिन आपके अच्छे हैं आगे भी रहेंगे
२ जुलाई का भी दिन अच्छा रहा होगा वो!!!
कब मिल रहे हैं अब?
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