बे-तख़ल्लुस

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'बेतख़ल्लुस' हूं मुझे कोई भी अपना लेगा

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Tuesday, May 25, 2010

purani ghazal...


हसरतों की उनके आगे यूँ नुमाईश हो गई
लब न हिल पाये निगाहों से गु्ज़ारिश हो गई

उम्र भर चाहा किए तुझको खुदा से भी सिवा
यूँ नहीं दिल में मेरे तेरी रिहाइश हो गई

अब कहीं जाना बुतों की आशनाई कहर है
जब किसी अहले-वफ़ा की आज़माइश हो गई

घर टपकता है मेरा, अब अब्र वापस जाएगा
हम भरम पाले हुए थे और बारिश हो गई

जब तलक वो ग़ौर फ़रमाते मेरी तहरीर पर
तब तलक मेरे रक़ीबों की सिफ़ारिश हो गई


14 comments:

manu said...

aap logon ke aagrah par..aadesh par..
ek puraani ghazal daal rahe hain...



jaane kahaan kahaan se mail box chhaan kar mili hai...

bas copy pest kar ke chipkaa hi di.....

:)

इस्मत ज़ैदी said...

घर टपकता है मेरा, अब अब्र वापस जाएगा
हम भरम पाले हुए थे और बारिश हो गई

हासिले ग़ज़ल शेर है ये तो वाह!

अब कहीं जाना बुतों की आशनाई कहर है
जब किसी अहले-वफ़ा की आज़माइश हो गई

बहुत ख़ूब !

एक अच्छी ग़ज़ल के लिए मुबारक्बाद क़ुबूल करें

Himanshu Pandey said...

शानदार गज़ल !
इस शेर ने आनन्द दिया -
"जब तलक वो ग़ौर फ़रमाते मेरी तहरीर पर
तब तलक मेरे रक़ीबों की सिफ़ारिश हो गई" ।
आभार ।

दिगम्बर नासवा said...

घर टपकता है मेरा, अब अब्र वापस जाएगा
हम भरम पाले हुए थे और बारिश हो गई

मनु जी ... बहुत पसंद आया आपका ये शेर ...
वैसे पूरी ग़ज़ल जानदार है ...

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' said...

घर टपकता है मेरा, अब अब्र वापस जाएगा
हम भरम पाले हुए थे और बारिश हो गई
क्या कहने मनु जी. वाक़ई शेर हुआ है जनाब.

Ria Sharma said...

हसरतों की उनके आगे यूँ नुमाईश हो गई
लब न हिल पाये निगाहों से गु्ज़ारिश हो गई

kya baat hai ...ahaaaaa:))))
jai ho manuji

kshama said...

Bahut dinon baad aapke blog pe aayi hun..aur jee bhar ke padha..tippanee karne jitni qabiliyat hee nahee!

देवेन्द्र पाण्डेय said...

घर टपकता है मेरा, अब अब्र वापस जाएगा
हम भरम पाले हुए थे और बारिश हो गई
..खूबसूरत गजल का नायब शेर.
..बधाई.

स्वप्न मञ्जूषा said...

खूबसूरत प्रस्तुति है आपकी..
सारे शेर बहुत सुन्दर बने हैं....
आपका आभार....!!

daanish said...

हसरतों की उनके आगे यूँ नुमाईश हो गई
लब न हिल पाये निगाहों से गु्ज़ारिश हो गई

वाह जनाब !!
मतला तो बहुत ही खूबसूरत कहा है ...वाह !
पुराना नहीं लगता किसी भी तरह से
लफ्ज़ लफ्ज़ से नयापन झलक रहा है ...
और
तब तलक मेरे रक़ीबों की सिफ़ारिश हो गई

इस में "तब तलक" का इस्तेमाल क़हर ढा रहा है
काम कर ही गए ये दो लफ्ज़ .....

परम्परागत अंदाज़ में कही गयी इस ग़ज़ल पर
ढेरों मुबारकबाद .

daanish said...

और हाँ ...!!
आ पाना बड़ी देर से हुआ
मुआफी....
वजह ,,,,
आप जानते हैं (:

श्रद्धा जैन said...

अब कहीं जाना बुतों की आशनाई कहर है
जब किसी अहले-वफ़ा की आज़माइश हो गई


kya baat kah di waah ........
aise hi chhaan chhan kar kuch achcha padwaate rahe

हरकीरत ' हीर' said...

हसरतों की उनके आगे यूँ नुमाइश हो गयी
लब न हिल पाए निगाहों से गुजारिश हो गयी

वाह...वाह....सुभानाल्लाह .....!!

नहीं आती तो नहीं आती जो आती है तो क़त्ल करती हुई .....!!
ये निगाहें कहीं उमा जी की तो नहीं .....?
तौबा !इन बुतों की आशनाई की ......
आपकी तहरीर तो आपकी तकदीर है जनाब रकीबों की तो ऐसी तैसी ......
मुद्दत बाद निगाहों में मुस्कराहट तैर गयी .....

गौतम राजऋषि said...

कमाल ही हो गया ये तो। हम ग़ज़ल-ग़ज़ल की फ़रमाईश करते रहे और कुछ दिनों के लिये गुमशुदा क्या हुये कि जनाब ने एक-के-बद-एक ग़ज़ल निकाल रखी है।

मेरी पसंदीदा बहर और हर शेर लाजवाब बुना गया है। ईर्ष्या-जलन पैदा करने वाली हद तक लाजवाब। "अब कहीं जाना बुतों की आशनाई कहर है
जब किसी अहले-वफ़ा की आज़माइश हो गई" ये शेर अपना-सा लगा। लेकिन आखिरी शेर की अदायगी तो...उफ़्फ़्फ़्फ़्फ़ वाली है।