नए साल पर एक पुरानी ग़ज़ल डाल रहे हैं
आप सबको नया साल मुबारक हो
क्या अपने हाथ से निकली नज़र नहीं आती ?
ये नस्ल, कुछ तुझे बदली नज़र नहीं आती ?
किसी भी फूल पे तितली नज़र नहीं आती
हवा चमन की क्या बदली नज़र नहीं आती ?
ख़याल जलते हैं सेहरा की तपती रेतों पर
वो तेरी ज़ुल्फ़ की बदली नज़र नहीं आती
हज़ारों ख़्वाब लिपटते हैं निगाहों से मगर
ये तबीयत है कि बहली नज़र नहीं आती
न रात, रात के जैसी सियाह दिखती है
सहर भी, सहर-सी उजली नज़र नहीं आती
हमारी हार सियासत की मेहरबानी सही
ये तेरी जीत भी, असली नज़र नहीं आती
कहाँ गए वो, निशाने को नाज़ था जिनपे
कि अब तो आँख क्या, मछली नज़र नहीं आती
न जाने गुजरी हो क्या, उस जवां भिखारिन पर
कई दिनों से वो पगली, नज़र नहीं आती
ये नस्ल, कुछ तुझे बदली नज़र नहीं आती ?
किसी भी फूल पे तितली नज़र नहीं आती
हवा चमन की क्या बदली नज़र नहीं आती ?
ख़याल जलते हैं सेहरा की तपती रेतों पर
वो तेरी ज़ुल्फ़ की बदली नज़र नहीं आती
हज़ारों ख़्वाब लिपटते हैं निगाहों से मगर
ये तबीयत है कि बहली नज़र नहीं आती
न रात, रात के जैसी सियाह दिखती है
सहर भी, सहर-सी उजली नज़र नहीं आती
हमारी हार सियासत की मेहरबानी सही
ये तेरी जीत भी, असली नज़र नहीं आती
कहाँ गए वो, निशाने को नाज़ था जिनपे
कि अब तो आँख क्या, मछली नज़र नहीं आती
न जाने गुजरी हो क्या, उस जवां भिखारिन पर
कई दिनों से वो पगली, नज़र नहीं आती
22 comments:
मनु जी क्या खूब ग़ज़ल पढ़ाई आपने ... क्या खूब नजाकत से कही है आपने हर शे'र को खायीश है के छोटी नज़र नहीं आती ... नस्ल की बात हो के फूल तितली की बात करूँ, जुल्फ में अभी तक उलझा हुआ हूँ निकलने की बात ना करो सुब्ह की उजालों की बात बाद में कर लेंगे हुज़ूर, मुझे हारना पसंद है मगर वो मछली वाली आँख क्या उस पगली के पास भी था...हर शे'र कमाल के हैं हुज़ूर... मजा आगया ... नव वर्ष के लिए मेरे तरफ से आपको तथा आपके पुरे परिवार को म हार्दिक बढ़ाई और शुभकामनाएं...
हम ही उनको बाम पे लाये ,और हमी महरूम हुए
पर्दा हमारे नाम से उठा आँख लड़ाई लोगों ने ..
आपका
अर्श
waqt hi nahi thaa bas...
bete se kahaa ke aaj hi post karni hai..
us ne hi ki hai post...
parh lee hai.....
zraa kuchh peechhe chalaa gayaa hooN...laut`taa hooN......to kuchh kehtaa hooN....
filhaal....
sub.haan allaah !!
अर्श भाई....
जफ़र का ये शेर आज परेशान कर रहा है...
हम ही उन को बाम पे लाये और हमीं महरूम हुए.. ...........
सुनिए...
12:00 AM
MUFLIS: ek aur sher haazir है
ढलेगी शाम तो वापिस वहाँ ही जाओगे
न सोच बंदिशें कैसी हैं, और घर कैसा
सबसे पहले नए साल की मुबारकबाद.
अब असली मुद्दा- यार ये मछली की आँख तो मुझे घायल कर गयी. जवाब नहीं इस फनकारी का. पूरी गजल ही बहुत मन से मनु ने लिखी है, मुझे तो तारीफ के लिए अल्फाज़ ढूंढें नहीं मिल रहे हैं.
खुबसूरत रचना आभार
नव वर्ष की हार्दिक शुभ कामनाएं ................
बहुत सुंदर रचना, नये साल की घणी रामराम.
रामराम.
माफ़ी चाहूंगा....
पुरानी गजल है...एस एम एस से बनी हुई....
जरूरी काट छांट नहीं कर सका.....इसीलिए कई जगह खटके लगेंगे.....
आज के दिन बस...ये खटके झेल लीजिये......
मनु जी आदाब
आपके ब्लाग पर पहली हाज़िरी है
मेरे मिज़ाज के मुताबिक काफी कुछ है यहां
मालिक ने चाहा, आना जाना लगा ही रहेगा
गज़ल बहुत उम्दा है
हर पैमाने पर खरी
आपको नये साल की बहुत बहुत मुबारकबाद
जज्बात पर भी तशरीफ लाते रहियेगा
शाहिद मिर्ज़ा शाहिद
Hazaron khwaab ...
yah She'r achcha laga
Naya saal mubaarak ho
God bless
RC
ख़याल जलते हैं सेहरा की तपती रेतों पर
वो तेरी ज़ुल्फ़ की बदली नज़र नहीं आती
इस शेर ने लाजवाब कर दिया है...
इस बार तो हम जैसे नासमझों को भी आपकी ग़ज़ल में खटका लगरहा है..
शेर सभी बेमिसाल हैं..बस आप साफ़-सफाई कर लीजिये...तो बात बने..
आपका आभार.....हमेशा की तरह...
@अदा जी,
एकदम मूड नहीं है कुछ देखने का .....
कुछ ठीक करने का....
हमारे लिए इतना ही काफी है के एक ग़ज़ल जैसे तैसे नए साल पे पोस्ट हो गयी....
अभी देर रात गये की ये आप संग बातचीत और अब यहां कुछ जबरद्स्त मिस्रों को पढ़ना...उफ़्फ़्फ़! मनु जी, इन बेमिसाल शेरों को जाया न होने दीजिये प्लीज। बस थोड़ी-सी फुरस्त निकाल कर एक दिन बैठिये और ठीक कर लीजिये...
मुझे ब्लौग की इसी बात से चिढ़ है। ग़ज़ल से जुड़े कुछ बड़े नाम यहां आये और टिप्पणी करके चले गये। यकीन कीजिये किसी ने आपकी रचना पर ईमानदारी से कुछ नहीं कहा... एक अदा जी को छोड़कर।
हमारी हार सियासत की मेहरबानी सही
ये तेरी जीत भी, असली नज़र नहीं आती
ये शेर, इस शेर को कहने का ढ़ंग और छुपे ख्याल के लिये आपको सलाम।
प्लीज मेरा अनुग्रह मानेंगे आप और इस ग़ज़ल पर दुबारा मेहनत करेंगे। आपका वो डायलाग मैंने सीने से लगा रखा है कि "हमलोग तो ग़ज़ल वाले हैं"////उसी डायलाग के सदके....
आपके हुक्म पर ये दो लिंक आपके दर्शनार्थ:-
http://anunaad.blogspot.com/2009/12/blog-post_27.html
और
http://geetchaturvedi.blogspot.com/2009/12/blog-post_14.html
आपका भी एक डायलोग दिल से लगा है मेज़र.........
जो कह दिया है तो देखा जाएगा..
पार्टनर....
Manu ji kamaal ke sher
kya guzri ho bhikharan par.....
hamari haar siayasti........
nishaane par .... machhli nazar ......
khyaal jalte hain...... khoob kaha hai
हमारी हार सियासत की मेहरबानी सही
ये तेरी जीत भी, असली नज़र नहीं आती
बहुत ही भाव भरी ग़ज़ल है....
हमेशा की तरह आपकी गज़ल के लिये शब्द नहीं हैं मेरे पास कुछ बहुत देर से आने के लिये भी शर्मिन्दा हूँ। बहुत व्यस्त थी क्षमा चाहती हूँ आपको नये साल की बहुत बहुत शुभकामनायें आशीर्वाद ।
हमलोग तो नज़्म वाले हैं गजलों की बात क्या जाने ......बस हर इक शे'र लाजवाब लगा .....अदा जी वाला भी ....हजारों ख्वाब....और ये रात ,रात के जैसी वाला भी छू गया .....दो मित्रों की मनुहार अच्छी लगी ....!!
आपको और आपके परिवार को नए साल की हार्दिक शुभकामनायें!
बहुत खुबसूरत रचना!
waise gajlon ka koi khas shauk to nahi hai mujhe..lekin acchhi lagi.....aapko bhi naya saal mubarakh ho......
शुक्रिया ,
भूख और भूक पर आपका कमेन्ट बहुत अच्छा है
आपका ब्लॉग पढ़ने के लिए वक़्त चाहिए ;फिर भी "बिना मतले की ग़ज़ल'' 'और उसकी वजह रुचिकर लगीं .
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