अभी पिछले दिनों की तो बात ही है....
एक सवाल .....
किया था तुमने मुझ से...
तुम कितना बेजार थे उस दिन....!
कितनी उम्मीद थी ....
आवाज़ में तुम्हारी.. ...
और..
सवाल में तुम्हारे....
कितनी बेचारगी ....!
और मैंने भी समझा था तुम्हारी पीडा को..
जाना था हाल....
तुम्हारे भीतर का.....
हाँ...बेशक...
या.
शायद.......!!!!!!
उस दिन..एकाएक मैं, मैं से उठकर....मैं से थोडा आगे बढ़कर...
कोई सुकरात..या
शायद..
कोई अरस्तू हो गया था मैं..
क्या गफलत थी उस ऊंचाई की...
मैंने चुटकी में सुलझा डाला था ..तुम्हारा हर सवाल.....
कितने लाजवाब हो गए थे तुम भी....
या
शायद ज्ञानी.....................
जैसे जान गए हो स्रष्टी का हर भेद...
हर तौर-तरीका...ब्रह्माड का..
पूरी कायनात का..............
तुम्हे उस हाल में देख ...
मैं अपने मैं से कितना और ऊपर उठ गया था...
नहीं.....?????
ह्म्म्म्म्म
क्या यार...
एकदम वही सवाल तो लादे
खडा हूँ मैं आज...
ठीक तुम्हारे ही सामने...
क्या तुम भी मुझे वैसे ही बहला दोगे....
या बनोगे मेरे .....
सच्चे अरस्तू....!!!!