बे-तख़ल्लुस

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'बेतख़ल्लुस' हूं मुझे कोई भी अपना लेगा

manu

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Monday, April 27, 2009

ghazal,,,,,

 
बेखुदी, और इंतज़ार नहीं,
छोड़ आई नज़र क़रार कहीं
 
तेरी रहमत है, बेपनाह मगर
अपनी किस्मत पे ऐतबार नहीं
 
निभे अस्सी बरस, कि चार घड़ी
रूह का जिस्म से, क़रार नहीं
 
सख्त दो-इक, मुकाम और गुजरें,
फ़िर तो मुश्किल, ये रह्गुजार नहीं
 
काश! पहले से ये गुमाँ होता,
यूँ खिजाँ आती है, बहार नहीं
 
अपने टोटे-नफे के राग न गा,
उनकी महफिल, तेरा बाज़ार नहीं
 
जांनिसारी, कहो करें कैसे,
जां कहीं, और जांनिसार कहीं
 

Monday, April 20, 2009

ghazal........

खाली प्याले, निचुड नीम्बू, टूटे बुत सा अपना हाल

कब सुलगी दोबारा सिगरेट ,होकर जूते से पामाल


रैली,परचम और नारों से कर डाला बदरंग शहर

वोटर को फिर ठगने निकले, नेता बनकर नटवरलाल


चन्दा पर या मंगल पर बसने की जल्दी फिक्र करो

बढती जाती भीड़, सिमटती जाती धरती सालों साल


गांधी-गर्दी ठीक है लेकिन ऐसी भी नाचारी क्या

झापड़ खाकर एक पे आगे कर देते हो दूजा गाल


यार, बना कर मुझको सीढी, तू बेशक सूरज हो जा

देख कभी मेरी भी जानिब,मुझको भी कुछ बख्श जलाल


उनके चांदी के प्यालों में गुमसुम देखी लालपरी

अपने कांच के प्याले में क्या रहती थी खुशरंग-जमाल

Monday, April 6, 2009

Satpal ji ke Tarhi Mushaayre se

कभी इन्कार चुटकी मे,कभी इक़रार चुटकी मे
हज़ारों रंग बदले है निगाहे-यार चुटकी में

मैं रूठा सौ दफ़ा लेकिन मना इक बार चुटकी में
ये क्या जादू किया है आपने सरकार चुटकी में

बड़े फ़रमा गए, यूँ देखिये तस्वीरे-जाना को,
ज़रा गर्दन झुकाकर कीजिये दीदार चुटकी में

कहो फिर सब्र का दामन कोई थामे भला कैसे,
अगर ख़्वाबों में हो जाए विसाले-यार चुटकी में

ग़ज़ल का रंग फीका हो चला है धुन बदल अपनी
तराने छेड़ ख़ुशबू के, भुलाकर ख़ार चुटकी में

न होना हो तो ये ता-उम्र भी होता नहीं यारो
मगर होना हो तो होता है ऐसे प्यार चुटकी में

वजूद अपना बहुत बिखरा हुआ था अब तलक लेकिन
वो आकर दे गया मुझको नया आकार चुटकी में


जो मेरे ज़हन में रहता था गुमगश्ता किताबों-सा
मुझे पढ़कर हुआ वो सुबह का अखबार चुटकी

कभी बरसों बरस दो काफ़िये तक जुड़ नहीं पाते
कभी होने को होते हैं कई अश'आर चुटकी में