हसरतों की उनके आगे यूँ नुमाईश हो गई
लब न हिल पाये निगाहों से गु्ज़ारिश हो गई
उम्र भर चाहा किए तुझको खुदा से भी सिवा
यूँ नहीं दिल में मेरे तेरी रिहाइश हो गई
अब कहीं जाना बुतों की आशनाई कहर है
जब किसी अहले-वफ़ा की आज़माइश हो गई
घर टपकता है मेरा, अब अब्र वापस जाएगा
हम भरम पाले हुए थे और बारिश हो गई
जब तलक वो ग़ौर फ़रमाते मेरी तहरीर पर
तब तलक मेरे रक़ीबों की सिफ़ारिश हो गई
बे-तख़ल्लुस
manu

Tuesday, May 25, 2010
purani ghazal...
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