बे-तख़ल्लुस

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'बेतख़ल्लुस' हूं मुझे कोई भी अपना लेगा

manu

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Monday, August 23, 2010

बाल रचना...


अभी परसों की ही बात है..एक फोन आया..
'फूफा जी, आप कहाँ हो..?'
हमने कहा बेटा काम बोलो...पर फिर वही सवाल...'आप हो कहाँ'
हमने दोबारा कहा...बेटा बात क्या है...?
'ख़ास नहीं, पर पहले ये बताओ कि आप कहाँ हो...?'
अब कहना ही पडा कि एक हफ्ते पहले एक्सीडेंट हो गया था, पाँव में फ्रेक्चर हुआ है...सो तब से घर पर ही हूँ,..अब पहले तो काम बोलो..और दूसरा ये सुन लो कि आप लोग हमारी खैर खबर लेने हरगिज नहीं आयेंगे... हम बखूबी जानते हैं कि तुम लोगों का घर से निकलना बेहद मुश्किल है इन दिनों और तुम ये फोर्मलिटी किये बिना मानोगे नहीं...

काफी कह सुन लेने के बाद हमें बताया गया कि फलां विषय पर कविता लिख कर देनी है..वो भी अभी...कुछ ही देर के अन्दर...!! विषय भी ऐसा जिससे कभी कोई वास्ता नहीं पडा...
अब हमारे इकलौते जमाने पर रखे पांव के भी नीचे से रही सही ज़मीं खिसक गयी...
यूं पहले भी हिंद युग्म पर दिए गये चित्र पर एक दो बार लिखा है..पर एक तो वहाँ एक महीने का समय दिया जाता है...ऊपर से कुछ लिखने का मूड ना भी हो तो कोई जबरदस्ती नहीं होती...

खैर...उन दस-बीस मिनट में जो भी लिखा गया..वही आपके सामने रखते हैं...
काफी वक़्त बाद कुछ नया है तो यही है बस....

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बाल-ह्रदय में पनपे कैसे जीवन का आधार..?
बच्चों को दुश्वार हुआ दादा-दादी का प्यार



बुढ़िया चरखा कैसे काते , कौन कहे अब चाँद की बातें
बच्चे सा ही बच्चा बनकर , कौन है इनका सुख-दुःख बांटे..?
व्यस्त पिता हैं बहुत उन्हें दिखता हरदम व्यौपार...

बच्चों को दुश्वार हुआ दादा-दादी का प्यार...


दादा-दादी भी फुर्सत में, पोता पोती भी फुर्सत में
वृद्धाश्रम में हैं ये तनहा,उधर अकेले हैं वो घर में
'लगे रहो मुन्ना भाई' से कुछ तो सीखो यार

बच्चों को दुश्वार हुआ दादा-दादी का प्यार.....


भौतिकता की ओढ़ के चादर, नैतिकता से मुंह मत मोड़ो
उन्नति की सीढ़ी चढ़ लो ,पर अपने बड़ों का हाथ न छोडो
आखिर वो ही सिखलाते सच्चाई, शिष्टाचार

बच्चों को दुश्वार हुआ दादा-दादी का प्यार.
बाल ह्रदय में पनपे कैसे जीवन का आधार..?

बच्चों को दुश्वार हुआ दादा-दादी का प्यार....


Sunday, August 15, 2010

कसम मेरी जां

ये साकी से मिल, हम भी क्या कर चले
कि प्यास और अपनी बढाकर चले..

खुदाया रहेगी, कि जायेगी जां
कसम मेरी जां की वो खाकर चले

भरम दिल की चोरी का जाता रहा
वो जब आज आँखें चुरा कर चले

चुने जिनकी राहों से कांटे,वो ही
हमें रास्ते से हटाकर चले

तेरे ही रहम पे है शम्मे-उम्मीद
बुझाकर चले या जलाकर चले

रहे-इश्क में संग चले वो मगर
हमें सौ दफा आजमा कर चले

खफा 'बे-तखल्लुस', है उन से तो फिर
जमाने से क्यों मुंह बना कर चले...